- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- थल सेनाध्यक्ष की...

बीते सप्ताह एक तरफ हिमाचल के सबसे बड़े जिले कांगड़ा में ज्यादातर लोग कडक़ती धूप और गर्मी में गेहूं की फसल इक_ा करने में दिन-रात जुटे रहे, तो उसी दौरान भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जगत प्रकाश नड्डा तथा आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक श्री अरविंद केजरीवाल की कांगड़ा में हुई रैलियों में उमड़ी भीड़ को देखकर बड़ी सरदारी तथा जिम्मेदारी में उलझे कांग्रेसी दिग्गजों ने आपस में समन्वय स्थापित कर लिया और कांग्रेस हाईकमान ने वादियों की कांग्रेसी राजनीति को नया रंग देते हुए नए प्रदेश अध्यक्ष, जो चुनाव नहीं लड़ेंगे, के साथ 46 लोगों की भारी भरकम कार्यकारिणी के साथ चुनावी दंगल के लिए कमर कस ली प्रतीत हो रही है। रोचक बात यह है कि हिमाचल की राजनीति में अब तक तीसरे मोर्चे की बात को नकारा जाता रहा है, पर इस बार लोगों में तीसरे मोर्चे के प्रति उत्साह अप्रत्याशित महसूस हो रहा है। खेतों में पसीने से लथपथ किसानों की वार्ता में अक्सर 'इबैं सठ कने अठ होणियां न' (इस बार साठ और आठ होंगी) की बात सुनने को मिल रही है। अभी भविष्य ने अपनी चद्दर में क्या छिपा रखा है, इसका पता तो वक्त के साथ ही चलेगा। अगर वक्त की बात करें तो राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय सेना के थल सेना अध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवने भी इस महीने के आखिर में सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
