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- सेना और सुधार
पिछले सप्ताह में मानसून के अलावा ओलंपिक की चर्चा भारत ही नहीं पूरे विश्व में रही। चानु के बाद सिंधु और फिर लवलीना ने मेडल जीत कर भारत के राष्ट्रीय ध्वज को टोक्यो में ऊंचा रखा है। अभी भी लड़कियों को लड़कों से कम समझने वालों की सोच पर यह एक गहरा तमाचा है और यह एक प्रमाण है कि अगर बेटियों को मौका दिया जाएगा तो वे आंख के तारों से कई गुना ज्यादा ऊंचाई पर जाकर सूरज की तरह चमकने का माद्दा रखती हैं। एक तरफ तो बेटियां पूरे विश्व में भारत की अस्मिता की लाज रख रही हैं, दूसरी तरफ हमारे मुल्क हिंदोस्तान की राजधानी इंद्रप्रस्थ में जीवन जीने की शैली के नियम और कानून बताने में अपना एकाधिकार तथा अपने को भगवान का संदेश वाहक बताने वाले पुजारी ने एक नौ साल की बच्ची की अस्मिता लूट कर सूर्यास्त के बाद जला कर हिंदू धर्म का तो अपमान किया ही है, पर मानवता को भी शर्मसार किया है। इस कुकृत्य पर रोष तथा पीडि़त परिवार के साथ सांत्वना तो सब जाहिर कर रहे हैं, पर ऐसे लग रहा है कि चालीस साल बाद हाकी में मिले कांसे की चमक में गुडि़या के इंसाफ की मशाल की लौ मंद पड़ जाएगी। संसद में चल रहा मानसून सत्र हर रोज कुछ समय के लिए स्थगित हो जाता है, जिसमें विपक्ष पैगासस जासूसी, कृषि कानून, महंगाई, बेरोजगारी आदि पर चर्चा करना चाहता है, जबकि सरकार इसके लिए तैयार नहीं है। विपक्षी नेता कभी ट्रैक्टर तो कभी साइकिल पर संसद पहुंच रहे हैं, पर सदन में चर्चा बिलों पर नहीं बल्कि पापड़ी चाट और फिश करी पर हो रही है।