सम्पादकीय

सेना और राजनीति-2

Rani Sahu
8 April 2022 7:10 PM GMT
सेना और राजनीति-2
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बीते सप्ताह वैश्विक राजनीति में काफी उलटफेर देखने को मिला

बीते सप्ताह वैश्विक राजनीति में काफी उलटफेर देखने को मिला। जहां यूक्रेन में हुए बूचा नरसंहार ने पूरे विश्व को स्तब्ध कर दिया तथा यूक्रेन का मानना है कि इस नरसंहार के लिए रूसी सेना जिम्मेदार है, जबकि रूस का मानना है कि इसकी जांच होनी चाहिए। मगर विश्व के ज्यादातर देशों का विचार लिया जाए तो शक की सुई रूसी सेना के चेचन लड़ाकों पर जाती है जो कि भूतकाल में भी इस तरह के वीभत्स अत्याचार और गतिविधियों के लिए जिम्मेदार रहे हैं। यूएनओ रूस को पूरे विश्व से अलग-थलग करना चाहता है और चाहता है कि विश्व का हर देश रूस के खिलाफ तथा अमेरिका के साथ खड़ा हो। भारत ने एक बार फिर वोटिंग के दौरान अनुपस्थित होकर तटस्थ बने रहने की कोशिश की है। वोटिंग से पहले अमेरिका और रूस दोनों देशों ने भारत पर दबाव बनाया था कि उनको वोटिंग में शामिल होना चाहिए और दोनों गुटों में से किसी एक की तरफ साफ तौर पर अपना सहयोग जाहिर करना चाहिए। इन चीजों की परवाह किए बिना भारत ने फिर से वोटिंग से अनुपस्थित होने का फैसला किया जो शायद भारत की स्वतंत्र व गुटनिरपेक्षता की नीति के लिए ठीक है।

यूएनओ का गठन भारत की स्वतंत्रता से पहले हुआ था और भारत ने गुटनिरपेक्षता की नीति को अपनाने का निर्णय शुरू में ही ले लिया था। बीच-बीच में भारत की इस नीति का देश के अंदर ही विरोध हुआ, पर आज उन सब विरोधियों के लिए यह एक सबक है कि शायद दूसरे के फटे में टांग अड़ाने और बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना बनने से अच्छा है कि अपने घर में संयम रखें और वक्त आने पर सही निर्णय लें। पिछले दिनों पाकिस्तानी संसद में भी बहुत हो-हल्ला और हंगामा हुआ। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के खिलाफ लाए जा रहे अविश्वास प्रस्ताव को खारिज करते हुए वहां के डिप्टी स्पीकर ने असेंबली को भंग कर दिया तथा राष्ट्रपति ने 90 दिन के अंदर चुनाव कराने की घोषणा कर दी। पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा असेंबली को बहाल कर देने से इमरान खान की मुश्किलें बढ़ गई हैं। इसमें एक सबसे जरूरी बात जो इमरान खान ने अपने संबोधन में कही कि भारत द्वारा अपनाई गई गुटनिरपेक्षता की नीति का परिणाम है कि आज भारत अमेरिका द्वारा रूस पर लगाए गए कई प्रतिबंधों के बावजूद वहां से कच्चा तेल आयात कर रहा है। इसके अलावा हमारे पड़ोसी देश श्रीलंका की स्थिति भी दयनीय नजर आ रही है और किसी भी वक्त वहां भी तख्तापलट हो सकता है।
देश की स्थिति इतनी भयावह हो चुकी है कि महंगाई और बेरोजगारी से त्रस्त युवा सड़कों पर हैं। राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने अपनी राजनीतिक सूझबूझ से मंत्रिमंडल में विपक्षी दलों को भी भागीदारी की बात कही है। गोटाबाया राजपक्षे अगर इस स्थिति में देश को संभाल लेते हैं तो यह एक बहुत बड़ी कामयाबी होगी। राजपक्षे एक सैन्य अधिकारी रहे हैं और एक सैनिक की राजनीतिक सूझबूझ कितनी सकारात्मक होती है, इसके सबूत विश्व के बहुत सारे देशों में पहले भी देखने को मिले हैं। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन कैनेडी तथा जॉर्ज एचडब्ल्यू बुश, ग्रेट ब्रिटेन के विंस्टन चर्चिल, पाकिस्तान के जिया उल हक और मुशर्रफ, युगांडा के ईदी अमीन, सूडान के ओमर अल बशीर आदि वह सब नाम हैं जिन्होंने संकट की घड़ी में देश को संभाला और दोबारा पैरों पर खड़ा किया। इनमें से कुछ लोग तानाशाह बन गए तो कुछ ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया अपनाकर विश्व को अपनी राजनीतिक सूझबूझ तथा काबीलियत का प्रमाण दिया।
कर्नल (रि.) मनीष धीमान
स्वतंत्र लेखक
Rani Sahu

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