सम्पादकीय

सेना और राजनीति-1

Rani Sahu
1 April 2022 7:03 PM GMT
सेना और राजनीति-1
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शायद भाजपा का उत्थान, क्षेत्रीय दलों का बढऩा तथा अभी आप का शंखनाद रियासत, सियासत और विरासत की सोच पर विराम लगाते हुए

पतझड़ के जाने, वसंत के आने से अब खेतों में फसलें कटने को तैयार हैं। हिमाचल में एक तरफ मेले और छिंजों का दौर शुरू हुआ है तो दूसरी तरफ नवरात्रों के आगमन से मंदिरों में भी चहल-पहल बढऩा शुरू हो गई है। जिस तरह मौसमी बदलाव से गर्मी का पारा बढ़ रहा है उसी तरह पंजाब में हुए सियासी बदलाव से हिमाचली राजनीति का पारा भी चरम सीमा पर दिख रहा है। अभी तक प्रादेशिक राजनीति में तीसरे पक्ष को नकारने वाले बड़े-बड़े राजनीतिक जानकार भी जनता में चल रही सुगबुगाहट से वर्षों पुरानी दो पार्टियों की परिपाटी में तीसरे दल के अस्तित्व की बात मान रहे हैं। राज्य मेंं एक तरफ महंगाई, बेरोजगारी, पुरानी पेंशन योजना, जोइया मामा प्रकरण, पेंशन के लिए नौकरी छोडक़र इलेक्शन लडऩे की सलाह आदि से भाजपा का ग्राफ नीचे गिर रहा है तो दूसरी तरफ कांग्रेस में चेहरा बनने की होड़ में दर्जनों नेताओं के दिल्ली और शिमला के दौरों से जनता गुमसुम सी टकटकी लगाकर भविष्य में खुलने वाली परतों को निहार रही है। इसके साथ ही पंजाब में बने नए नवेले मुख्यमंत्री द्वारा ताबड़तोड़ फैसलों से जनता यह सोचने पर मजबूर है कि क्या सरकार ऐसे निर्णय भी ले सकती है। शायद अभी राजनीति बदल गई है, पिछले 70 वर्षों जैसे भारत का सर्वांगीण विकास हुआ है तो वैसे ही जनता को भी चुनाव की अहमियत पता चलने लग गई है। अंग्रेजों व राजा-महाराजाओं की रियासतों से जब भारत आजादी के बाद गणतंत्र बना तो वही रियासत के रखवाले सियासत के कर्णधार बन गए और लोगों ने उनका खुले मन से स्वागत किया। समय बदलता गया और रियासत से सियासत में आए लोगों ने राजनीति को भी अपनी विरासत मान लिया।

शायद भाजपा का उत्थान, क्षेत्रीय दलों का बढऩा तथा अभी आप का शंखनाद रियासत, सियासत और विरासत की सोच पर विराम लगाते हुए, जाति एवं क्षेत्र के दायरे से बाहर निकल कर एक मोबाइल फोन रिपेयर वाले आम आदमी में अगर योग्यता है तो उसे भी मौका मिलना चाहिए। शायद यह एक अच्छी राजनीतिक शुरुआत है। जब 2015 में दिल्ली में आम आदमी पार्टी जीत कर आई थी तो कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष श्री राहुल गांधी जी ने इस बात को स्वीकारा था कि हमें इस नई पार्टी से भी अच्छी चीजें सीखनी पड़ेंगी, पर शायद राहुल गांधी के सिपहसालार यह सारी बातें सीखने के लिए राजी नहीं हैं और परिणाम वर्तमान में सर्वविदित है। राजनीति को राज करने वाली नीति के नाम से जाना जाता है और राजनीतिक दल यह मानते रहे हैं कि इसमें एक विशेष वर्चस्व के लोग ही कामयाब हैं, पर एक बदलाव जरूर आया कि एक आम नागरिक जिसकी बोलचाल तथा लोगों से मेल-मिलाप अच्छा हो तो वह भी चुनावी राजनीति में नेता बन सकता है। राजनीतिक योग्यता की कसौटी पर शिक्षा एवं चरित्र को सबसे नीचे रखा गया, जबकि महत्व बोलचाल और मेल मिलाप को दिया गया। इसी संदर्भ में सेना से आने वाले योग्य और अनुशासित लोगों ने जब भी सेना में राजनीति में अपनी किस्मत आजमाने की कोशिश की तो परिणाम विशेषकर भारत में इतने अच्छे नहीं रहे। अगर हम भारत की राजनीति की बात करें तो सेना से कुछ एक चुनिंदा चेहरे ही दिखते हैं जैसे जनरल वीके सिंह, कर्नल राज्यवर्धन सिंह, जसवंत सिंह, मेजर जनरल बीसी खंडूरी और हिमाचल की राजनीति में कर्नल धनीराम, कर्नल इंद्र सिंह तथा मेजर विजय सिंह, महेंद्र सिंह आदि गिने-चुने नाम हैं जिन्होंने राजनीतिक सूझबूझ और पैठ से अपना लोहा मनवाया है।
कर्नल (रि.) मनीष धीमान
स्वतंत्र लेखक


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