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कोरोना वायरस (Corona Virus) को दुनिया में आए दो साल से ज्यादा का समय बीत चुका है
पंकज कुमार कोरोना वायरस (Corona Virus) को दुनिया में आए दो साल से ज्यादा का समय बीत चुका है. इस बीमारी का सबसे पहला मामला दिसंबर 2019 में चीन में आया था. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने 11 मार्च 2020 में कोरोना को महामारी घोषित किया था. उस दौरान यह सवाल उठाए गए थे कि WHO ने कोरोना को महामारी (Pandemic) घोषित करने मे कई महीनों का समय क्यों लगाया. पिछले दो साल में विश्व स्वास्थ्य संगठन कोरोना को लेकर कई बयान जारी कर चुका है. लेकिन देखा जा रहा है कि संगठन की बातों में विरोधाभास है. इसका ताजा उदाहरण हाल ही में दिए गए दो बयान हैं.
दो दिन पहले WHO के यूरोप निदेशक हंस क्लूज ने कहा था कि ओमिक्रॉन वैरिएंट ने यूरोपीय देशों में महामारी को एक नए चरण में स्थानांतरित कर दिया है और यह समाप्त हो सकती है. उन्होंने कहा था कि मुझे भरोसा है कि यूरोप में इस महामारी की समाप्ति तय है चाहे इसके लिए कुछ वक्त का इंतजार ही करना क्यों न पड़े. लेकिन अब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी देते हुए कहा है कि ओमिक्रोन वैरिएंट इस महामारी का अंत नहीं है. कोरोना महामारी फिर अपना रूप बदल सकता है. अगर कोई नया वैरिएंट सामने आया तो एक बार फिर दुनिया को मुश्किल दौर का सामना करना पड़ सकता है.
लोगों तक सही जानकारी नहीं पहुंचा पा रहा है WHO
दो दिनों में ही WHO की तरफ से कोरोना के अंत को लेकर अलग-अलग बयान दिए गए हैं. पिछले दो साल के इतिहास पर गौर करें तो इससे पहले भी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना को लेकर कई असंगत बयान दिए हैं. सितंबर 2020 में डब्लूएचओ ने कहा था कि क्लिनिकल ट्रायल के एडवांस स्टेज में पहुंची कोई भी वैक्सीन 50 फीसदी भी कोरोना वायरस के खिलाफ प्रभावी नहीं है, लेकिन टीकाकरण होने के बाद अधिकतर देशों में टीके का असर दिखाई दिया.
वैक्सीन की वजह से लोगों में कोरोना से गंभीर लक्षण नहीं आए. संक्रमण से मौतें और हॉस्पिटलाइजेशन काफी कम हुआ. इससे पहले जब दक्षिण अफ्रीका में ओमिक्रॉन वैरिएंट का मामला आया था तो WHO ने इसे वैरिएंट ऑफ कंसर्न कहा था. यानी इस वैरिएंट को डेल्टा, बीटा और गामा वैरिएंट के समकक्ष कहा गया था, लेकिन देखा जा रहा है कि भारत और दुनियाभर में इस वैरिएंट से हॉस्पिटलाइजेशन और मौतें नहीं बढ़ी हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कोरोना महामारी को लेकर WHO ने लोगों तक सही जानकारी नहीं पहुंचाई है?
इस विषय पर सफदरजंग अस्पताल के मेडिसिन विभाग के एचओडी प्रोफेसर डॉ. जुगल किशोर का कहना है कि महामारी की शुरुआत के समय से ही विश्व स्वास्थ्य संगठन के बयानों में विरोधाभास है. इससे संगठन की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हो रहे हैं. WHO की तरफ से कभी भी इस महामारी को लेकर सटीक जानकारी नहीं दी गई.
WHO के बयानों में विरोधाभास रहा है
दुनियाभर के देशों ने अपने-अपने तरीकों से इस वायरस से जंग लड़ी. वैक्सीनेशन, मास्क और कोरोना के अलग-अलग वैरिएंट्स पर WHO के बयानों में विरोधाभास रहा है. अब संगठन की तरफ से कहा गया है कि यूरोप में महामारी का अंत हो सकता है, लेकिन ऐसा मुश्किल ही है. डॉ. के मुताबिक, यह कहना जल्दबाजी है कि महामारी हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी. क्योंकि एक बार अगर कोई वायरस या बीमारी आ गई तो वह कभी पूरी तरह खत्म नही होती है. चूंकि कोरोना एक संक्रामक बीमारी है ऐसे में हो सकता है कि यह हमेशा हमारे बीच रहे.
एम्स के एक डॉक्टर ने नाम ना छापने की शर्त पर बताया कि WHO इस तरह के बयान जानबूझकर देता है. हो सकता है कि इन बयानों में संगठन के बड़े अधिकारियों का कोई निजी फायदा हो. इस संगठन का काम दुनियाभर में महामारी की सही जानकारी पहुंचाना था, लेकिन ऐसा नहीं हो सका.
पाबंदियां हटाने का समय
डॉ. जुगल किशोर का कहना है कि हमें WHO के बयानों की तरफ अधिक ध्यान ना देकर इस महामारी के साथ जीने की आदत डालनी होगी. अब समय आ गया है कि कोरोना को लेकर लगाई गई पाबंदियों को हटाया जाए. बच्चों के लिए स्कूलों को खोला जाए. जिससे आम जन जीवन फिर से पटरी पर लौट सके.
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