सम्पादकीय

क्या दंगे प्रायोजित हैं?

Rani Sahu
18 April 2022 7:21 PM GMT
क्या दंगे प्रायोजित हैं?
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यह सवाल फिजूल या निर्मूल नहीं है। कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एक अंग्रेजी अख़बार में लेख लिखकर सांप्रदायिक टकराव को नफरत और विभाजन का वायरस करार दिया है

यह सवाल फिजूल या निर्मूल नहीं है। कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एक अंग्रेजी अख़बार में लेख लिखकर सांप्रदायिक टकराव को नफरत और विभाजन का वायरस करार दिया है। उनका आरोप है कि यह वायरस फैलाया जा रहा है। जिन राज्यों में कांग्रेस की सरकार है या पार्टी साझा सरकार में है, उनके संदर्भ में पूछा जाए कि वहां सांप्रदायिक ज़हर का वायरस कौन फैला रहा है? आम आदमी पार्टी निर्बाध रूप से भाजपा को गुंडों और दंगेबाजों की पार्टी आरोपित कर रही है। देश में नगण्य हो रहे वामपंथी दलों ने इन दंगों को आरएसएस के 'हिंदू राष्ट्र' के एजेंडे का हिस्सा माना है। विपक्ष के एक दर्जन से ज्यादा दलों ने 'शांति की अपील' वाला साझा बयान तो जारी किया, लेकिन उनके निशाने पर भी भाजपा रही। कोई भी विपक्षी दल आरोपित चेहरों और संगठनों पर टिप्पणी तक नहीं कर सका। हमारी समझ में नहीं आता कि देश भर में तनाव और रंजिश का माहौल क्यों है? सामाजिक सद्भाव बिखरता क्यों जा रहा है? कई क्षेत्र जल रहे हैं, लोग मारे जा रहे हैं। वहां सांप्रदायिक टकराव उफान पर है। मज़हबी सह-अस्तित्व मानो समाप्त होता जा रहा है! यह दुर्भाग्य और विडंबना ही है कि देश के सामने कई महत्त्वपूर्ण मुद्दे हैं, कोरोना वायरस एक बार फिर आंखें तरेर कर भयभीत और चिंतित कर रहा है, आर्थिक विषमताएं और विसंगतियां हैं, लेकिन दंगों के विश्लेषण करने पड़ रहे हैं। चूंकि सांप्रदायिक सौहार्द्र और देश की चिंता प्राथमिक विषय हैं, लिहाजा दंगों के कारणों को खंगालने की कोशिश की जा रही है कि आखिर दंगे या नफरती हिंसा क्यों भड़क रही है?

भारत में तो विभिन्न समुदाय एक बेहद लंबे वक्त से साथ-साथ रहते आए हैं। यही हमारी संस्कृति और सामंजस्य की खूबसूरती है, लेकिन पिछले एक अरसे से, खासकर हिंदू त्योहारों पर, मप्र, गुजरात, झारखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार से लेकर देश की राजधानी दिल्ली तक सामुदायिक और सांप्रदायिक टकराव हो रहे हैं। क्या ये किसी साजि़श का हिस्सा हैं? अथवा दंगों को प्रायोजित कराया जा रहा है? क्या पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया सरीखे अलगाववादी, जेहादी संगठन मुसलमानों को उकसा रहे हैं? आखिर शहरों में ही हिंदू-मुसलमान विभाजन इतना गहरा और व्यापक दिखाई क्यों देता है? गांवों में तो ऐसे टकरावों की स्थिति नहीं है। एकदम सामाजिक भाईचारा छिनता हुआ क्यों लग रहा है? राजधानी दिल्ली के जहांगीर पुरी इलाके में जो हिंसा भड़की थी, उसमें गोलियां तक चलाई गईं। दंगाइयों की गोली ने पुलिस के एक उपनिरीक्षक को भी घायल कर दिया। वह उपचाराधीन हैं। मुस्लिम घरों की छतों से औरतों ने भी पत्थर मारे, बोतलें फेंकी! मस्जिद, मदरसों से भी हमले किए गए। तलवारें लहराई गईं। यह पहली बार नहीं हुआ है। अलबत्ता इस बार नफरत की पराकाष्ठा रही है। यह हिंदुओं पर हमलों की पुरानी पद्धति रही है कि शोभा-यात्रा को निशाना बनाया जाता रहा है।
इस बार तो भद्दी गालियां भी दी गईं, जिन्हें हमारी नैतिकता लिखने से रोकती है। मज़हबी ज़हर इस कदर फैला कि उपद्रवियों ने श्रीराम और बजरंगबली के प्रति आस्थाओं पर सवाल किए। औरतें यह कहते सुनी गईं कि इन देवताओं की शोभा-यात्रा क्यों निकलने दी जाए? मुसलमानों को यह आपत्ति कब से होने लगी? इस्लाम का 'पाक महीना रमजान' भी जारी है। कोई दंगा इस आधार पर नहीं भड़का कि गैर-इस्लामी लोगों ने रोजे या इफ्तारी को नापाक किया है। दिल्ली पुलिस ने जो तलवारें और पिस्टलें बरामद की हैं, आखिर वे कहां से आईं? क्या मुस्लिम घरों में इनका संग्रह पहले से ही तैयार रहता है? क्या हमले की सुनियोजित साजि़श तय की गई थी? पुलिस कमोबेश दिल्ली के संदर्भ में यह निष्कर्ष जरूर दे कि मुस्लिम घरों में हथियार मौजूद रहते हैं क्या? कई राज्यों में भड़की हिंसा के संदर्भ में यह सवाल उठता रहा है, लेकिन आज तक अनुत्तरित है। पुलिस ने 20 से ज्यादा आरोपियों को अदालत के सामने पेश किया था, जिनमें दो को ही मात्र एक दिन के लिए पुलिस हिरासत में भेजा गया है, शेष न्यायिक हिरासत में हैं। राजधानी में 2020 में भी दंगा किया गया था। क्या उसी की कड़ी में मौजूदा दंगे हैं या कोई अन्य कारण हैं? ठोस निष्कर्ष सामने आना चाहिए।

क्रेडिट बाय दिव्याहिमाचल

Rani Sahu

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