सम्पादकीय

क्या जो समुदाय या राज्य जनसंख्या नियंत्रण कर रहे हैं वो अपने साथ गुनाह कर रहे हैं?

Gulabi
24 Aug 2021 9:54 AM GMT
क्या जो समुदाय या राज्य जनसंख्या नियंत्रण कर रहे हैं वो अपने साथ गुनाह कर रहे हैं?
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क्या जनसंख्या नियंत्रण (Population Control) करना किसी भी राज्य या समुदाय के लिए गुनाह साबित हो सकता है

संयम श्रीवास्तव।

क्या जनसंख्या नियंत्रण (Population Control) करना किसी भी राज्य या समुदाय के लिए गुनाह साबित हो सकता है. दरअसल मद्रास हाई कोर्ट (Madras High Court) के जस्टिस एन किरूबाकरण (Justice N Kirubakaran) और जस्टिस बी पुगलेंथी (Justice B Pugalendhi) की खंडपीठ ने जनसंख्या नियंत्रण पर टिप्पणी करते हुए कहा कि जो लोग अपनी जनसंख्या घटा रहे हैं, उन्हें एक व्यक्ति एक वोट के आधार पर होने वाले चुनाव में नुकसान होगा. मद्रास हाई कोर्ट का कहना है कि जब तमिलनाडु (Tamil Nadu) और आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) ने अपने यहां जनसंख्या को नियंत्रित किया तो संसद में उनकी सीटें कम और जिन राज्यों ने जनसंख्या बढ़ाईं जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश तो उनकी सीटें ज्यादा क्यों हैं?


कोर्ट ने आगे कहा, "सैद्धांतिक रूप से, 5 सालों में संसद सदस्य का योगदान कम से कम 200 करोड़ रुपये के रूप में लिया जा सकता है, हालांकि इसे मौद्रिक रूप से निर्धारित नहीं किया जा सकता है. इसलिए, हर चुनाव के लिए, तमिलनाडु को दो राजनीतिक प्रतिनिधियों की कमी के लिए 400 करोड़ रुपये की राशि का मुआवजा दिया जाना चाहिए. अगर ऐसा है, तो तमिलनाडु को 14 चुनावों में दो सीटों के नुकसान का मुआवजा मिलना है, यानी 28 सीटें, जो लगभग 5,600 करोड़ रुपए है."


क्या उन राज्यों को प्रोत्साहन या आर्थिक रूप से क्षतिपूर्ति नहीं की जानी चाहिए जिन्होंने अपने यहां जनसंख्या नियंत्रण सही तरीके से किया. मद्रास हाई कोर्ट ने तो यहां तक कह दिया कि तमिलनाडु को मुआवजे के रूप में लगभग 5600 करोड़ रुपए तक मिलने चाहिए. क्योंकि उसने 1962 से अब तक 14 चुनावों में लगभग 28 सीटों का नुकसान सहा है. मद्रास हाईकोर्ट ने हालांकि ये सवाल राज्यों की लिहाज से उठाया है पर इसका प्रभाव समुदायों पर भी पड़ेगा. हाईकोर्ट की इस टिप्पणी के बाद उम्मीद है उन समुदायों से भी ऐसी मांग उठे जिनकी जनसंख्या दिन प्रति दिन कम होती जा रही है.

दरअसल मद्रास हाई कोर्ट का कहना था कि 1962 तक तमिलनाडु के लोकसभा सदस्यों की संख्या 41 थी. लेकिन जब बाद में इनकी जनसंख्या में कमी आई तो तमिलनाडु में लोकसभा की सीटों की संख्या घटाकर 39 कर दी गई. मद्रास हाई कोर्ट का सवाल सीटों की संख्या घटाए जाने से था. कोर्ट का कहना है कि लोकतंत्र में हर वोट के अपने मायने होते हैं. उसने 1999 में अटल बिहारी वाजपेई सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव का जिक्र करते हुए कहा कि, जब 1999 में एक वोट से अटल बिहारी वाजपेई की सरकार गिर गई थी तो समझिए की हर सीट के कितने मायने होते हैं. मद्रास हाई कोर्ट का साफ कहना है कि तमिलनाडु के कोटे से राज्यसभा में सीटों की संख्या बढ़ायी जानी चाहिए. कोर्ट का यहां तक कहना है कि जनसंख्या नियंत्रण संसद में राज्य का प्रतिनिधित्व तय करने का आधार नहीं हो सकता.

मद्रास हाई कोर्ट का सवाल कितना जायज है
कुल मिलाकर देखा जाए तो मद्रास हाईकोर्ट यह कहना चाह रहा है कि जिन राज्यों ने अपने जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम को सफल तरीके से लागू किया उन्हें संसद में राजनीतिक तौर पर बेहतर प्रतिनिधित्व मिलने की जगह उनका प्रतिनिधित्व कम कर दिया गया. यह एक तरह से उनके लिए दंड साबित हुआ. जबकि वहीं दूसरे राज्य जिन्होंने अपने यहां जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम को ठीक से नहीं लागू किया और वहां की जनसंख्या बढ़ी और उन्हें संसद में अधिक राजनीतिक प्रतिनिधित्व मिला.

यानि यह बात वैसे ही हो गई कि एक तो चोरी ऊपर से सीना जोरी. हाई कोर्ट का सवाल कुछ हद तक जायज भी है अगर जिन राज्यों ने अपने यहां जनसंख्या नियंत्रण कार्यक्रम को बेहतर ढंग से लागू किया उनके साथ इस तरह का व्यवहार कि उन्हें राजनीतिक तौर पर कमजोर कर दिया जाए उचित नहीं है. अगर ऐसा ही रहा तो जाहिर सी बात है आने वाले समय में बहुत से ऐसे राज्य हैं जो अपने जहां जनसंख्या घटाने की जगह बढ़ाना शुरू कर देंगे. क्योंकि उनके राज्य को आने वाले समय में देश की राजनीति में अधिक प्रतिनिधित्व मिलने लगेगा. लेकिन इससे देश गर्त में चला जाएगा, क्योंकि जिस तरह से हिंदुस्तान की जनसंख्या बढ़ रही है उसे अब लगाम लगाने की जरूरत है बढ़ने देने की नहीं.

संसद में हर वोट के मायने हैं
देश की राजनीति का मूल मंत्र रहा है कि जिस प्रदेश में सबसे ज्यादा लोकसभा की सीटें होंगी केंद्र की सरकार में उस प्रदेश का सबसे ज्यादा दखल होगा. उत्तर प्रदेश में इस वक्त सबसे ज्यादा 80 लोकसभा सीटें हैं. इसलिए केंद्र की राजनीति में उत्तर प्रदेश का वर्चस्व हमेशा दिखाई देता है. कहते हैं कि अगर आपको दिल्ली की गद्दी चाहिए तो उत्तर प्रदेश का दिल जीतना पड़ेगा. लेकिन वहीं तमिलनाडु के साथ उल्टा हुआ. 1962 तक जहां तमिलनाडु में 41 लोकसभा के सांसद थे, परिसीमन के बाद जनसंख्या में कमी के कारण तमिलनाडु के निर्वाचन क्षेत्रों की संख्या घटाकर 39 कर दी गई.

यानि पूरे 2 सीट कम कर दिए गए. जबकि संसद में एक-एक सीट का महत्व होता है. 1999 आपको याद होगा जब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी. लेकिन जब बहुमत साबित करने की बात आई तो अटल बिहारी वाजपेयी महज एक सीट से चूक गए और उनकी सरकार गिर गई. सोचिए जब एक सीट से केंद्र की सरकार गिर सकती है तो 2 सीट कम करने के कितने बड़े मायने हो सकते हैं.

देश जनसंख्या विस्फोट से जूझ रहा है
भारत में बेरोजगारी, भुखमरी, क्राइम के पीछे कहीं ना कहीं जनसंख्या विस्फोट भी है. अपने क्षेत्रफल और आर्थिक स्थिति के मुकाबले भारत की जनसंख्या बहुत ज्यादा है. इसलिए यहां हमेशा तरह-तरह की परेशानियां खड़ी होती रहती हैं. आज हिंदुस्तान जनसंख्या के मामले में चीन के बाद दूसरे नंबर पर है. यहां की आबादी लगभग 138 करोड़ है. अगर जल्द ही हिंदुस्तान ने अपने यहां जनसंख्या नियंत्रण पर जोर नहीं दिया तो आने वाले समय में हम चीन को भी पीछे छोड़ देंगे.

जितने भी टॉप के डिवेलप और खुशहाल देश हैं उनके यहां आप देखेंगे तो उनकी जनसंख्या हमारे मुकाबले बेहद कम है. चाहे अमेरिका हो, ब्रिटेन हो, फ्रांस हो या फिर जर्मनी. इन सभी देशों की जनसंख्या हमसे बेहद कम है. इसलिए यह देश आज खुशहाल हैं और आर्थिक रूप से बेहद मजबूत भी.
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