- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- क्या यूपी में बीजेपी...

x
मोहम्मद अली जिन्ना (Muhammad Ali Jinnah), जिसने भारत को बांटकर अपनी आज़ादी की लड़ाई की कीमत वसूल ली
अंकुर झा मोहम्मद अली जिन्ना (Muhammad Ali Jinnah), जिसने भारत को बांटकर अपनी आज़ादी की लड़ाई की कीमत वसूल ली. जिसने कट्टरवादियों का मुल्क बनाकर धर्मनिरपेक्षता से नाता तोड़ लिया. पाकिस्तान बनाकर जिसने हिंदुस्तान को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया. जिस जिन्ना को कायदे से अपने तक याद नहीं करते, उस जिन्ना को हिंदुस्तान में फिर से 'ज़िंदा' करने की कोशिश की जा रही है. उत्तर प्रदेश के नेता सियासी बूटी सूंघाकर जिन्ना को जीवित कर, वोट को साधने की फिराक़ में हैं.
शुरूआत समाजवादी शिरोमणि मुलायम सिंह यादव के बेटे और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने की. उन्होंने जहरीले जिन्ना की तुलना उस सरदार पटेल से की, जो राष्ट्रवाद के पर्याय हैं. फिर साइकिल छाप पार्टी के दूसरे नेता रामगोविंद चौधरी ने उसे आगे बढ़ाया. उन्होंने जिन्ना को हिंदुस्तान को आज़ादी दिलाने वाले पहली पंक्ति का नेता बताया. अब यूपी में पीला गमछा लेकर राजनीति करने वाले ओमप्रकाश राजभर (Om Prakash Rajbhar) समाजवादियों से दो कदम आगे बढ़ गए हैं. उन्होंने तो यहां तक कह दिया है कि जिन्ना को प्रधानमंत्री बना दिया होता तो देश का बंटवारा ही नहीं होता.
जिन्ना हमेशा से पाकिस्तान के कट्टर पैरोकार रहे
इतिहास बताता है कि मोहम्मद अली जिन्ना ने भारत के प्रधानमंत्री बनने की कभी लड़ाई ही नहीं लड़ी. अंग्रेजों से आज़ादी लेते-लेते जिन्ना तो 23 मार्च 1940 को ही पाकिस्तान के कट्टर पैरोकार बन गए थे. 1940 के बाद जिन्ना बंटवारे की लकीर पर सन् 47 तक चलते रहे. ऐसे में मोहम्मद अली जिन्ना के हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री बनने का कोई सवाल ही नहीं है. लेकिन सुहैलदेव पार्टी वाले ओपी राजभर को लगता है कि देश से बड़ी गलती हो गई.
जाहिर है कि 40 साल से राजनीति कर रहे ओमप्रकाश राजभर का जिन्ना को लेकर कथन, सत्य और तथ्य से दूर है. ओमप्रकाश अपने इतिहास ज्ञान को राज़ भर ही रहने देते तो अच्छा था. लेकिन राजनीति शास्त्र का ज्ञाता बन चुके ओपी राजभर, चुनावी तैयारी करते-करते जिन्ना ज्ञान की गंगा बहाकर यूपी की राजनीति को उसी राह पर लेकर गए हैं, जिसकी भविष्यवाणी की जा रही है.
जिन्ना के जिन के पीछे है मुस्लिम वोटबैंक
अब ज़रा समझिए कि यूपी में जिन्ना को बार-बार तमाम नेता अपने-अपने हिसाब से जीवित करने की कोशिश क्यों कर रहे हैं. इसकी वजह हैं मुस्लिम वोट बैंक. असल में देश के सबसे बड़े सूबे में 19.3 फीसदी आबादी मुसलमानों की है. इनका 140 विधानसभा सीटों पर असर है. पिछले चुनाव में सबसे ज्यादा 23 सीटों पर अखिलेश यादव की पार्टी ने जीत हासिल की थी. जबकि कांग्रेस और बीएसपी को 2-2 और अपना दल को 3 सीटें मिली थीं. वहीं मुस्लिम गोलबंदी का फायदा बीजेपी को इस कदर हुआ था कि इन 140 सीटों में से 109 सीटें भगवा पार्टी को मिली थीं.
140 सीटों पर असदुद्दीन ओवैसी की नज़र है. आक्रामक राजनीति कर रहे ओवैसी के टारगेट पर अखिलेश यादव हैं. अखिलेश को नुकसान का डर है. लिहाजा वो जिन्ना को जिंदा करने की कोशिश कर रहे हैं. इस बार बीजेपी से जुदा होकर चुनाव लड़ रहे राजभर भी इसी में अपनी उम्मीद देख रहे हैं. लेकिन सवाल है कि क्या हिंदुस्तान के मुसलमान जिन्ना के नाम पर वोट करेंगे? जिनके पुरखों ने जिन्ना के टू नेशन थ्योरी को दरकिनार कर हिंदुस्तान में अपना अस्तित्व देखा, क्या वे जिन्ना को अपना आइकॉन मानेंगे?
बड़ी बात ये है कि मौजूद राजनीति में जो असदुद्दीन ओवैसी खुद को मुसलमानों के मसीहा साबित करने में जुटे हैं, वे भी जिन्ना की कभी चर्चा नहीं करते. क्योंकि इससे फायदे से ज्यादा नुकसान के बारे में वो जानते हैं. जिन्ना को लेकर उदारवादी होने की भूल लालकृष्ण आडवाणी को कितनी महंगी पड़ी थी, वो सबके सामने है. वैसे भी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को छोड़ दीजिए तो जिन्ना की कहीं चर्चा तक नहीं होती. AMU में भी जिन्ना कितने विवादास्पाद हैं, ये सबको पता है.
कांग्रेस हिंदुत्व को ISIS और बोको हरम से जोड़ रही है
इतना ही नहीं अखिलेश यादव और ओमप्रकाश राजभर जब जिन्ना राग गा रहे हैं, तब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद हिंदुत्व की तुलना खूंखार आतंकी संगठन से कर रहे हैं. यूपी से ही ताल्लुक रखने वाले सलमान खुर्शीद ने एक किताब लिखी है. जिसमें उन्होंने हिंदुत्व की तुलना आतंकी संगठन ISIS और बोको हरम से की है. वो आतंकी संगठन जो गर्दन काटने के लिए कुख्यात हैं. जो बम धमाके करता है. लोगों की हत्या करता है. उसे कांग्रेसी नेता साधु-संत और हिंदुत्व से जोड़ रहे हैं.
तो सवाल यहीं से उठता है कि क्या चुनाव से बीजेपी विरोधियों की घबराहट चरम पर है? क्या विरोधी वही कर रहे हैं जो बीजेपी के लिए मुफीद है? क्या यूपी में बीजेपी को विरोधी वॉक ओवर देने की तैयारी में हैं? क्योंकि यूपी में चुनाव के ठीक 4 महीने बचे हैं. अगर यूं ही विरोधी जिन्ना के ईर्द-गिर्द घूमते रहे या फिर हिंदुत्व पर सीधा प्रहार करते रहे तो पूरा चुनाव हिंदू-मुसलमान पर आ टिकेगा. क्योंकि बीजेपी भी कमोबेश यही चाहती है.
योगी आदित्यनाथ का चाहे अब्बाजान वाला बयान हो या फिर कैराना में सहानुभूति की सियासत. 5 सालों के विकास की व्याख्या करते-करते बीजेपी हिंदुत्व पर खड़ी है. ऐसे में अगर अखिलेश यादव हों, ओमप्रकाश राजभर हों या कांग्रेस का कोई नेता. यूपी में हिंदू-मुसलमान की सियासत शुरू हुई तो यकीन मानिए बीजेपी पहले से ज्यादा ताकत के साथ यूपी की सत्ता में लौटेगी. क्योंकि मौजूदा राजनीति में हिंदू-मुसलमान की पिच पर बीजेपी से जबर खिलाड़ी कोई नहीं है.

Rani Sahu
Next Story