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- मनमानी पर चोट
credit byy Jansatta | सुप्रीम कोर्ट ने नोएडा में सुपरटेक की चालीस-चालासी मंजिला दो इमारतों को गिराने का आदेश देकर साफ कर दिया है कि अब बिल्डरों की मनमानी नहीं चलने वाली। ये दोनों इमारतें सारे नियम-कायदे तोड़ते हुए प्राधिकरण की मेहरबानी से खड़ी कर ली गई थीं। पर अब इन्हें तीन महीने के भीतर ढहा दिया जाएगा। अदालत के इस फैसले को एक सख्त संदेश के रूप देखे जाने की जरूरत है। संदेश यह है कि बिल्डरों से लेकर प्राधिकरणों तक को अब नियम-कानूनों के तहत ही काम करना होगा, वरना ऐसी ही कड़ी कार्रवाई होगी। अदालत ने साफ कर दिया कि घर खरीदारों के हितों से ऊपर कुछ नहीं है।
सर्वोच्च अदालत का यह फैसला राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सहित देशभर के उन सभी बिल्डरों के लिए एक बड़ा सबक है जो घर खरीदने वालों के सपनों को एक दु:स्वप्न में बदल देते हैं। सुप्रीम कोर्ट से पहले 11 अप्रैल, 2014 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी अवैध रूप से बनी इन दोनों इमारतों को गिराने का निर्देश दिया था। पर तब सुपरटेक ने इस उम्मीद में सर्वोच्च अदालत का दरवाजा खटखटाया कि वहां कुछ राहत मिल जाए। लेकिन अदालत ने निवेशकों के दर्द को महसूस किया। इसलिए सुपरटेक को निर्देश दिया कि वह इस परियोजना के घर खरीदारों को बारह फीसद ब्याज के साथ पूरा पैसा दो महीने के भीतर लौटाए।
गौरतलब है कि पिछले दो दशकों में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बड़ी संख्या में आवासीय परियोजनाएं खड़ी हो गई हैं। इनमें ज्यादातर परियोजनाएं नोएडा और ग्रेटर नोएडा में हैं। नामी-गिरामी बिल्डर लाखों लोगों को घर देने का सपना देकर अरबों का कारोबार खड़ा करते गए। ज्यादातर खरीदार इस उम्मीद में पैसे लगाते रहे कि एनसीआर में उनके पास भी एक छत हो जाएगी। लेकिन देखने में आया कि लोगों को लंबे समय तक घर ही नहीं मिला।
खरीदारों के पैसे से बिल्डर एक के बाद एक जमीनें खरीदते रहे। हालांकि पिछले कुछ सालों में सर्वोच्च अदालत ने कुछ बड़े बिल्डरों के खिलाफ सख्त कदम उठाया। पर आज भी आज भी लाखों लोग घर के इंतजार में भटक रहे हैं। एक मोटे अनुमान के मुताबिक नोएडा में डेढ़ लाख और ग्रेटर नोएडा में दो लाख लोगों को फ्लैटों का कब्जा नहीं मिला है। बिल्डर कानूनी लड़ाई में लगने वाले समय का फायदा उठा रहे हैं और निवेशक रो रहे हैं।
सर्वोच्च अदालत ने अपने आदेश में बिल्डरों के साथ प्राधिकरण के संबंधित अधिकारियों पर भी कार्रवाई करने को कहा है। बिल्डरों और प्राधिकरण के अधिकारियों की सांठगांठ से चलने वाले संपत्ति कारोबार की जड़ें काफी गहरी हैं। कोई भी इमारत प्राधिकरण के अफसरों की इजाजत के बिना खड़ी नहीं की जा सकती। अगर कोई बिल्डर नियम कायदों को तोड़ते हुए चालीस मंजिलें खड़ी कर लेता है तो जाहिर है बिना बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार के यह संभव नहीं हो सकता।
आखिर कैसे नियम-कायदों को ताक पर रखते हुए बिल्डरों को योजना में बदलाव करने और अवैध निर्माण की इजाजत देने का खेल चलता रहा, इसकी गहन जांच होनी चाहिए। अदालत के आदेश के बाद उत्तर प्रदेश सरकार की नींद खुली है। मुख्यमंत्री ने प्राधिकरण के संबंधित अफसरों पर कार्रवाई की बात कही है। लेकिन प्राधिकरणों में अनवरत चलते रहने वाला यह भ्रष्ट कारोबार किसी से छिपा नहीं है। अगर सरकार अपनी ताकत का इस्तेमाल करे और भ्रष्ट अफसरों पर निगरानी रखे तो न अवैध इमारतें ही खड़ी हो पाएंगी और न ही कोई बिल्डर लोगों को ठगने का दुस्साहस कर पाएंगे। पर यह सब करे कौन, यही बड़ा सवाल है।