सम्पादकीय

अप्रैल 18 , 1986: मैच की वो अंतिम गेंद आखिर गई कहां?

Rani Sahu
23 Oct 2021 2:46 PM GMT
अप्रैल 18 , 1986: मैच की वो अंतिम गेंद आखिर गई कहां?
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भारत को टी-20 वर्ल्ड कप (World Cup) का पहला मैच कल यानि रविवार (24 अक्टूबर) को दुबई में पाकिस्तान (Pakistan) के खिलाफ खेलना है

बिक्रम वोहरा भारत को टी-20 वर्ल्ड कप (World Cup) का पहला मैच कल यानि रविवार (24 अक्टूबर) को दुबई में पाकिस्तान (Pakistan) के खिलाफ खेलना है. क्रिकेट के इतिहास में कल के इस मैच को रिकॉर्ड संख्या में लोग देखेंगे. दुबई में रिंग ऑफ फायर स्टेडियम में करीबन 17,000 लोग इस मैच का आनंद लेंगे. वहीं दुनिया भर में एक अरब से अधिक लोग धड़कते दिल से टीवी पर ये मैच देखेंगे.

कोई कितना भी समझदार या परिपक्व होने और सिर्फ खेल भावना से इस मैच को देखने का दावा करे, लेकिन हकीकत यही है कि जोश का ये महौल आपको अपनी गिरफ्त में ले ही लेता है. मैच का दिन आते ही हमारा शिष्टाचार बेहिसाब उत्साह की आड़ में कहीं छिप जाता है… और फिर हमारी निराशा बिलियर्ड गेंदों की तरह बेतरतीब हो जाती है.
क्या हुआ था 1986 के उस मैच में
18 अप्रैल, 1986 को शारजाह स्टेडियम में मैच देखते मुझे काफी अच्छा लग रहा था और आत्मसंतुष्टि की अनुभूति हो रही थी. भारत ने 245 रन बनाए थे जो कि उन दिनों एक विशाल स्कोर माना जाता था. जब पाकिस्तान 3 विकेट पर 61 रन बनाकर बैकफुट पर चला गया, तो मैंने अपने मशहूर पाकिस्तानी स्पोर्ट्स एडिटर रेहान सिद्दीकी का रुख किया और उनसे सहानुभूति का इजहार किया. 4 विकेट पर 110 रन और 25 ओवर बाकी, उस वक्त मैच पूरी तरह हमारी मुट्ठी में दिख रहा था.
लेकिन इसके बाद जावेद मियांदाद आए. उनकी 116 रन की मैच जीतने वाली पारी 110 पर रुक जानी चाहिए थी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. दुबई के एक अखबार के संपादक के रूप में मैंने उसी दिन थोड़ी देर पहले उन्हें एक अवॉर्ड दिया था और बाकी खिलाड़ियों के साथ उनसे बातचीत की. उन दिनों आप मैच के दौरान खिलाड़ियों के साथ बैठ सकते थे या वे आपके स्टैंड में शामिल हो सकते थे.
बहरहाल, खेल के बीच में स्टेडियम के बॉस और मेरे बहुत अच्छे दोस्त कासिम नूरानी ने पूछा क्या आपनी हेडलाइन्स तैयार कर ली है. जब भी ये दोनों देश खेल रहे होते थे हम पहले ही हेडलाइन्स तैयार कर लिया करते थे और नतीजों के मुताबिक उसका इस्तेमाल करते थे. क्योंकि उन दिनों संपादकीय स्टाफ मिला-जुला होता था और हम किसी तरह की गड़बड़ी की संभावना नहीं रहने देना चाहते थे.
मैच को लेकर भारतीय प्रशंसक बेहतर महसूस कर रहे थे. स्टेडियम के चेयरमैन सुईट में यूएई में क्रिकेट के अगुआ माने जाने वाले अब्दुलरहमान बुखारी बोर्ड के सदस्यों के साथ जमे हुए थे, सभी शारजाह की पारंपरिक मेहमाननवाजी का लुत्फ उठा रहे थे. सामान्य भावना यह थी कि मैच भारत के कब्जे में था.
पाकिस्तान को आखिरी तीन ओवरों में 31 रनों की जरूरत थी और उन दिनों ये एक बड़ा सवाल था कि क्या तीन ओवरों में 31 रन बनाया जा सकता है? 48वें ओवर में 13 रन बने, 49वें ओवर में 10 और वसीम रन आउट हो गए. जीत के लिए एक ओवर में आठ रन की जरूरत थी. धड़कनों की रफ्तार तेज हो रही थी. उत्तेजना देखते ही बनता था. तौसीफ अहमद आखिरी बल्लेबाज थे. उन्होंने और जावेद ने पिच के बीच में आकर काफी देर तक बात की. चेतन ने पांच शानदार गेंद फेंकी और जुलकरनैन को वापस पैवेलियन भेज दिया था. इसके बाद मुझे लगता है वे रोजर बिन्नी थे जिन्होंने बेहतरीन बाउंड्री रोकी थी और तौसीफ बुरी तरह फंस गए थे. लेकिन अजहर का थ्रो स्टंप से चूक गया. अगर गेंद स्टंप पर लग गई होती तो मैच वहीं खत्म हो गया होता.
उसके बाद आखिरी गेंद थी. पाकिस्तान को एक बाउंड्री की जरूरत थी और हमें एक विकेट की. दिलों की धड़कन तेज होती जा रही थी. हर तरफ तिरंगा लहरा रहा था. पाकिस्तान समर्थक अपेक्षाकृत उदास और मायूस थे. वसीम खुद से नाराज थे और इमरान रूखे और गंभीर लग रहे थे. हालात हमारे पक्ष में थे. तनाव बढ़ता जा रहा था…
तीन मिनट और बीस सेकंड तक कपिल देव मैदान को सेट और रीसेट करते रहे. और इधर चेतन आखिरी गेंद लेकर दौड़ने को तैयार थे. विकेट के पास जमा होकर टीम के बड़े खिलाड़ी चेतन के साथ मंत्रणा कर उनका हौसला बढ़ा रहे थे. इस बीच दो बार उनका रन-अप थोड़ा थमा भी. और फिर… दुनिया जैसे जम गई. जैसे पूरे मैदान को पाला मार गया है. सब निस्तब्ध और स्थिर थे. पता नहीं क्या हुआ… मेरे आस-पास के आधे लोगों ने आंखें बंद कर लीं. बल्ले की चमक के साथ ही स्टेडियम में एक साथ भयानक कराह और हैरान कर देने वाला जयघोष सुनाई दिया.
हमने देखा कि गेंद गायब हो गई थी. शायद ही किसी ने देखा हो कि हवा में तैरती वो गेंद कहां ओझल हो गई. भारतीय विश्वास और उम्मीद को ग्रहण लग चुका था. हम दंग रह गए. हम गहरे सदमे में थे. मियांदाद अपने बल्ले को तलवार की तरह लहराते हुए बेतहाशा पैवेलियन की ओर दौड़ रहे थे. रॉयल फोटोग्राफर नूर अली राशिद उनका पीछा कर रहे थे. रेहान मेरे कंधे पर लटक रहे थे. उन्होंने कहा, बॉस हम जीत गए. भारतीय कटे हुए फूलों की तरह मुर्झा से गए थे. मैं इतना दुखी हो गया कि रोने लगा. और फिर वे कासिम थे जिन्होंने मेरी पीठ थपथपाते हुए कहा, यह केवल एक खेल है.
नहीं, ऐसा नहीं है. हम रास्ते में कंकड़ मारते हुए अपनी कारों की तरफ जाने लगे. खुद से सफाई मांग रहे थे. फिर वहीं डिनर के दौरान कपिल ने मुझे बताया कि उन्हें लगा कि गेंद चेतन के हाथ से फिसल कर फुल टॉस में बदल गई थी. इमरान बहुत कम बोले. इमरान खान मैच के बजाय कैंसर अस्पताल के लिए अपनी योजनाओं पर चर्चा के लिए ज्यादा उत्सुक नजर आ रहे थे.
भारतीय और पाकिस्तानी खिलाड़ी अब एक साथ नहीं बैठते, लेकिन आपस में वे मिलते-जुलते जरूर हैं. और उस वक्त तो ऐसा होता ही था. जब किसी पार्टी या समारोह में आप उन्हें बिना लाग-लपेट के एक साथ हंसते और बातचीत करते हुए देखते हैं, तो आपको अच्छा लगता है. शायद यही खेल खेलने का तरीका है न कि एक गेंद आपके दिलोदिमाग को वर्षों तक जलाता–भुनाता रहे. जबकि हमने जरूरत से ज्यादा लंबे समय तक इसे क्रिकेट पर हावी होने दे दिया है. आइए, कल सिर्फ मैच खेलते हैं और इसे इससे ज्यादा कुछ नहीं बनाते. कप के लिए खेलो… फिलहाल तो बस यही इरादा होना चाहिए.
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