सम्पादकीय

अपना भारत : राम और राम राज्य का स्मरण पर्व, जीवन की ऊर्जा के विकास चरम का अवसर

Neha Dani
10 April 2022 1:52 AM GMT
अपना भारत : राम और राम राज्य का स्मरण पर्व, जीवन की ऊर्जा के विकास चरम का अवसर
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इसके बाद वह राम राज्य की बराबर चर्चा करने लगे थे।

प्रभु या ईश्वर तो 'अजन्मा' हैं! उनका जन्म लेना या रामनवमी जैसे महापर्व पर प्रभु राम का जन्मोत्सव ईश्वर की उस वाणी या वचन का पालन है, जिसमें कहा गया- जब जब होई धरम कै हानी...तब-तब धरि प्रभु विविध शरीरा... या महाभारत (गीता) में प्रभु श्री कृष्ण ने स्वयं कहा- यदा यदा हि धर्मस्य गलानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्। रामनवमी तिथि को राम का प्रकट होना भारत की धार्मिक, आध्यात्मिक और जीवन की ऊर्जा के विकास चरम का अवसर है।

तुलसी ने लिखा-विप्र धेनु सुर संतहित लीन्ह मनुज अवतार। प्रभु प्रकट हुए। राम की माता कौशल्या ने इस अवतार को नमन करते हुए प्रार्थना की- कीजै शिशु लीला...! प्रभु ने शिशु रूप धारण किया और शिशु लीला से रामो विग्रहवान् धर्मः! तक के रूप में, राजा राम के रूप में, केवल अयोध्या में ही नहीं, जनमानस के कोने-कोने में प्रतिष्ठित हुए। राम भारत के रोम-रोम में व्याप्त हैं। रामनवमी का पर्व राम और रामराज्य के स्मरण का पर्व है। गांधी ने भारतीय परिवेश में जिस रामराज्य की मौलिक, आदर्श संकल्पना को व्यावहारिक धरातल पर उतारने के लिए अपना जीवन समर्पित किया, वह थी- दैहिक दैविक भौतिक तापा। रामराज्य काहू नहिं व्यापा।
आज आजादी के अमृत महोत्सव के संदर्भों में रामराज्य और राम के राजा रूप और चरित्र का स्मरण स्वाभाविक है और आवश्यक भी। वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस राम के गुणगान से जुड़े प्रमुख ग्रंथ हैं। वैसे तो राम से जुड़े शताधिक ग्रंथ और रचनाएं हैं, पर सभी के केंद्र रामायण और मानस ही हैं। मानस भारतीय जनजीवन में व्यवहार का मानक और प्रेरक आदर्श ग्रंथ है। 'पितु आयसु' यानी पिता की आज्ञा से एक भावी राजा का राजतिलक से ठीक पहले 14 वर्षों के लिए वनगमन वर्तमान राजनीति का भी एक सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक पक्ष है।
राम ने इसे व्यवहार में लाकर राजनीति ही नहीं, संपूर्ण मानवता को शाश्वत संदेश दिया। भरत को राजधर्म का मर्म समझाते हुए भगवान राम कहते हैं-मुखिया मुख सों चाहिए, खान-पान कहुं एक। पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित विवेक। राजा को मुंह की तरह विवेकशील होना चाहिए। मुंह खाता है, पर उसे विवेकपूर्ण ढंग से वितरित करने से समस्त अंगों का पोषण होता है। राम के राज्याभिषेक से एक दिन पहले उनके पिता महाराजा दशरथ ने राजधर्म की जो दीक्षा दी थी-वह आज भी प्रासंगिक है।
दशरथ ने राम से कहा था- आपके मस्तक पर राजमुकुट होगा और राज्याभिषेक के बाद आप राजा होंगे, परंतु हे पुत्र राम! यह स्मरण रखना कि राजमुकुट धारण करने वाला, स्वयं को अपनी प्रजा तथा अपने राज्य को समर्पित कर देता है। राजा होने का अर्थ है, त्यागी-संन्यासी हो जाना। राजा का अपना तो कुछ होता ही नहीं। सब कुछ राज्य का हो जाता है। जो राज्य की प्रजा के लिए सब कुछ त्याग कर सके, उसे ही कर (टैक्स) लेने का अधिकार है।
राजा जैसा आचरण करता है, प्रजा उसका अनुगमन करती है। किसी भी राजा की मूल शक्ति, दंड देने की मूल शक्ति नहीं, बल्कि पक्षपात रहित न्याय है। राजा प्रजा का भगवान है। इसलिए राजा में करुणा-दया, उदारता, क्षमा, और वीरता के गुण आवश्यक हैं। ऋषि-मुनियों, विचारकों, शिक्षकों तथा रचनाकारों के समक्ष उसे सदा नतमस्तक होना चाहिए। उसे अपनी कमियों को जानने के लिए आलोचकों की भी महत्व देना चाहिए।
वाल्मीकि रामायण के अयोध्याकांड-सर्ग-67 में राजा और राज्य के दायित्वों का वर्णन करते हुए, राम वनगमन के बाद उत्पन्न सांविधानिक संकट तथा अराजकता के निवारण के लिए भरत को राज्य सौंपने की प्रक्रिया प्रारंभ हुई। इस पर अनिच्छुक-अन्यमनस्क भरत के सामने अनेक समस्याएं थीं। जन और धन की सुरक्षा, अपराध नियंत्रण, मुक्त व्यापार, सत्कर्म में प्रजा की संलग्नता, भयमुक्त समाज आदि समस्याओं के मामले में राजाविहीन अयोध्या के राजकाज के राजगुरु वशिष्ठ द्वारा निर्देशित शासनक्रम ही राम राज्य के मूल आधार बने।
14 वर्षों तक राम को आदर्श राजा मानते हुए निर्लिप्त भाव से भरत ने राजकाज संभाला। यह निर्लिप्तता आज भी राजनीति और शासन में अनुकरणीय उदाहरण है। तुलसी ने लिखा-भरतहिं होइ न राजमदु विधि हरिहर पद पाई। महात्मा गांधी ने इसे ही 'ट्रस्टीशिप' सिद्धांत के रूप में परिभाषित किया। राम भारत की नीति-राजनीति के आदर्श हैं। महात्मा गांधी रघुपति राघव राजा राम का स्मरण करते हुए स्वाधीनता संघर्ष में कूदे और राम का अनुकरण करते हुए संघर्षों में कभी विचलित नहीं हुए।
गांधी ने 1943 में मूक फिल्म राम राज्य देखी। पहले 40 मिनट तक ही फिल्म देखने का कार्यक्रम था, पर 90 मिनट की पूरी फिल्म देखी। गांधी ने विजय भट्ट निर्देशित इस फिल्म को मुंबई में देखने के बाद राम राज्य के सिद्धांतों को व्यावहारिक और अनुकरणीय बताया था और इसके बाद वह राम राज्य की बराबर चर्चा करने लगे थे।

सोर्स: अमर उजाला

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