सम्पादकीय

बुनियादी ढांचे के विकास को मिले रफ्तार, जोखिम उठाने के अलावा और सरकार के पास नहीं है कोई उपाय

Gulabi
9 Oct 2020 11:24 AM GMT
बुनियादी ढांचे के विकास को मिले रफ्तार, जोखिम उठाने के अलावा और सरकार के पास नहीं है कोई उपाय
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चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के सामनेआने के बाद तमाम संस्थाओं ने भारतीय अर्थव्यवस्था
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के आंकड़े सामने आने के बाद तमाम संस्थाओं ने भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर आशंकाएं व्यक्त करना शुरू कर दिया। समीक्षाधीन तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर में 23.9 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। इस पर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, एशियाई विकास बैंक और आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन जैसी संस्थाओं के अलावा स्टैंडर्ड एंड पुअर्स, मूडी और फिच जैसी क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों और तमाम दिग्गज अर्थशास्त्रियों ने यही अनुमान व्यक्त किया कि चालू वित्त वर्ष भारत की जीडीपी वृद्धि दर में आठ से 16 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है। भले ही गिरावट का जो स्तर रहे, लेकिन इससे यही बात जाहिर होगी कि कई वर्षों तक तेज आर्थिक वृद्धि के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था को गिरावट की तपिश झेलनी होगी।

तीन दशक तक जोरदार वृद्धि ने लाखों-करोड़ों लोगों को गरीबी के दुष्चक्र से बाहर निकाला है। गिरावट की यह स्थिति अप्रत्याशित आकस्मिक कारणों के चलते उत्पन्न हो रही है। सरकार जीवन, आजीविका और अर्थव्यवस्था के लिए उत्पन्न हुए जोखिम को दूर करने की दिशा में सक्रिय है। अर्थव्यवस्था को पहुंचे भारी नुकसान की तीव्रता का नाता काफी हद तक देश की राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक मोर्चे से जुड़ी ढांचागत विशेषताओं से भी है। अक्लमंदी इसी में है कि नुकसान को कम से कम कैसे किया जाए। इस सिलसिले में मोदी सरकार द्वारा उत्साह और उपयोगिता की दृष्टि से किए जा रहे विभिन्न ढांचागत, क्रमबद्ध और संस्थागत सुधारों का भी संज्ञान लिया जाना चाहिए। नरसिंह राव और वाजपेयी सरकार को जिस किस्म की चुनौतियां झेलनी पड़ी थीं, मौजूदा वक्त भी कुछ उसी किस्म का है, जो अर्थव्यवस्था के लिए दूरगामी सुधारों की मांग कर रहा है। ये सुधार राजनीतिक रूप से संवेदनशील भी हैं। भूमि, श्रम और पूंजी जैसे उत्पादन के तीनों पहलुओं से जुड़े ये सुधार उत्पादकता को बेहतर बनाएंगे। इनसे आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत प्रतिस्पर्धी बढ़त की स्थिति भी बनेगी।

अनिश्चितताओं के चलते खरीदारी के लिए अभी भी बाहर निकलने से कतरा रहे लोग

फिलहाल अर्थव्यवस्था मांग, आपूर्ति, निवेश और सकल पूंजी निर्माण जैसे सभी पहलुओं पर चुनौतियों से दो-चार है। इन सबसे निपटने के लिए राजकोषीय गुंजाइश का भी अभाव है। विकसित अर्थव्यवस्थाओं के उलट भारत सरकार राजकोषीय घाटे को लेकर एक हद से अधिक उदार नहीं हो सकती, परंतु उसका बढ़ना तय है। इसका समाधान विकास के सभी माध्यमों को गति देने में ही निहित है। लोग अनिश्चितताओं के चलते खरीदारी के लिए अभी भी बाहर निकलने से कतरा रहे हैं। एक तो उन्हें कोरोना संक्रमण का खतरा है। दूसरे, आय में अनिश्चितता को लेकर भी वे खर्च करने से सकुचा रहे हैं। सरकार ने गरीबों के खाते में जो रकम जमा कराई है, वह भी बैंकों में जमा राशि का स्तर ही बढ़ा रही है। ऐसे में वास्तविक ग्राहक माने जाने वाले निम्न एवं निम्न मध्यम वर्ग के मन में रोजगार को लेकर जो आशंकाएं घर कर गई हैं, उन्हें बाहर करना होगा।

एमएमटी का लिया जा रहा है सहारा

गुणवत्तापरक बुनियादी ढांचे का अभाव भी भारतीय अर्थव्यवस्था को धार देने की राह में एक बड़ा अवरोध है। बेरोजगारी का बढ़ता दायरा भी सामाजिक असंतोष को हवा दे रहा है। संप्रति आधुनिक मौद्रिक सिद्धांत यानी एमएमटी का सहारा लिया जा रहा है। इसमें अर्थव्यवस्थाओं को सुरक्षित रखने के लिए बड़े पैमाने पर प्रोत्साहन पैकेज दिए जा रहे हैं। इसका यही पैमाना है कि अगर अर्थव्यवस्था में शिथिलता महसूस हो तो राजकोषीय घाटे का आकार कोई मायने नहीं रखना चाहिए। साथ ही यदि नॉमिनल जीडीपी वृद्धि देय ब्याज दर से अधिक है तो ऋण राशि किसी समस्या का सबब नहीं होनी चाहिए। भारतीय अर्थव्यवस्था में भारी शिथिलता व्यापक बेरोजगारी, अल्प-बेरोजगारी और क्षमताओं का पूरी तरह उपयोग न होने में प्रतिबिंबित हो रही है। सड़कों, बंदरगाहों, हवाई अड्डों, रेलवे, सार्वजनिक आवास, अस्पताल और स्कूल जैसी तमाम परिसंपत्तियां विकसित करने में इसे भुनाया जाना चाहिए।

आर्थिक अनिश्चितता के छंटेंगे बादल

वास्तव में इस समय केंद्र सरकार बुनियादी ढांचा विकास के कार्य को पूरी गति से आगे बढ़ाए, भले ही इसके लिए नई मुद्रा ही क्यों न जारी करनी पड़े। सरकार प्रत्येक व्यक्ति को रोजगार की पेशकश करे। यहां तक कि मनरेगा के तहत होने वाले मामूली से कामों के बजाय उसे बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं से भी जोड़ा जा सकता है। ऐसा करके अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों को तत्काल राहत मिलेगी और आर्थिक अनिश्चितता के बादल छंटेंगे। वस्तुओं एवं सेवाओं की मांग भी बढ़ेगी। साथ ही साथ इससे लाखों एमएसएमई को जीवनदान मिलेगा। वहीं अर्थव्यवस्था की संभावित वृद्धि को न केवल सहारा, बल्कि तेजी भी मिलेगी।

यूरोपीय आयोग भी 825 अरब डॉलर के कोरोना राहत पैकेज की कर रहा तैयारी

जहां तक प्रमुख देशों के राजकोषीय घाटे का सवाल है तो वर्ष 2020 में अमेरिका का राजकोषीय घाटा बढ़कर उसकी जीडीपी का 15.3 प्रतिशत, ब्रिटेन का 18.2 प्रतिशत, कनाडा का 12.6 प्रतिशत, जापान का 11.3 प्रतिशत और सिंगापुर का 13.6 प्रतिशत रहा। इन सभी देशों में अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए अतिरिक्त संसाधनों के आवंटन की संभावनाएं अभी भी कायम हैं। अमेरिकी केंद्रीय बैंक के चेयरमैन जेम्स पॉवेल का कहना है कि अर्थव्यवस्था को सहारा देने की कोशिशें रोकी नहीं जाएंगी और ब्याज दरें तब तक नहीं बढ़ाई जाएंगी, जब तक पूर्ण रोजगार की स्थिति बहाल नहीं होती या महंगाई बर्दाश्त के बाहर नहीं चली जाती। यूरोपीय आयोग भी 825 अरब डॉलर के कोरोना राहत पैकेज की तैयारी कर रहा है।

जिले और शहर में बुनियादी ढ़ांचे की स्थिति है कमजोर

भारत की बात करें तो देश के प्रत्येक राज्य, जिले और शहर में बुनियादी ढांचे की स्थिति कमजोर ही है। ऐसे में सभी को रोजगार दिया जाए और बुनियादी ढांचे से जुड़ी बड़ी परियोजनाएं विकसित की जाएं। कहने का अर्थ यह भी नहीं कि सभी किस्म की सावधानियों को दरकिनार ही कर दिया जाना चाहिए। इसमें सफलता इसी पहलू से तय होगी कि इन परियोजनाओं को कितनी तेजी से फलीभूत किया जाएगा और इनमें संसाधनों के रिसाव को कैसे रोका जाएगा। इन दोनों मोर्चों पर मोदी सरकार ने उल्लेखनीय प्रदर्शन किया है। हालांकि इस राह में जोखिम कम नहीं हैं, लेकिन उन्हें उठाना ही श्रेयस्कर होगा। कोई वैकल्पिक रणनीति बेहतर परिणाम नहीं दे सकती।

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