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यह वृत्तांत दो प्रसिद्ध वैज्ञानिकों की वैचारिक प्रतिद्वंद्विता का है
डॉ चन्द्रकांत लहारिया। यह वृत्तांत दो प्रसिद्ध वैज्ञानिकों की वैचारिक प्रतिद्वंद्विता का है। दोनों ही जर्मनी के थे और 19वीं शताब्दी के। पहले का नाम रोबर्ट कॉक है। ये चिकित्सक थे और इन्होंने टीबी, हैजा और एंथ्रेक्स जैसी बीमारियों के कीटाणुओं की पहचान की थी। कॉक का एक महत्वपूर्ण योगदान 'बीमारियों का रोगाणु सिद्धांत' है, जिसके अनुसार किसी भी बीमारी को होने के लिए रोगाणु का होना 'जरूरी और पर्याप्त' है। उन्होंने जब सिद्धांत दिया, तब संक्रामक बीमारियां चरम पर थीं।
दुनिया में हैजा वैश्विक महामारी के रूप में फैल रहा था और लाखों लोगों को मौत का शिकार बना रहा था। 'बीमारियों का रोगाणु सिद्धांत' की बात मैक्स पैटनकोफर को बिलकुल नहीं जमीं, वह कॉक के समकालीन जर्मनी के ही प्रसिद्ध केमिस्ट थे। पैटनकोफर का मानना था कि बीमारी फैलने में आसपास के वातावरण तथा गंदगी की रोगाणुओं से भी बड़ी भूमिका होती है। कौन सही है इसको कैसे सिद्ध किया जाए? पैटनकोफर ने इसका तरीका निकाला।
उन्होंने रोबर्ट कॉक को पत्र लिखकर हैजा के कीटाणु का सैंपल भेजने को कहा और लिखा कि मैं उसे सबके सामने पियूंगा। अगर मुझे कुछ नहीं हुआ, मतलब तुम्हारा सिद्धांत गलत है। दोनों प्रतिद्वंद्वी थे, कॉक ने ख़ुशी-ख़ुशी हैजा कीटाणु का सैंपल भेज दिया। पैटनकोफर के शुभचिंतकों ने उन्हें सलाह दी कि वे उसे न पिएंं, लेकिन वो जि़द पर अड़े रहे। तर्क दिया कि जिस विचार में वो विश्वास रखते हैं, उसको सिद्ध करने के लिए वो अपनी जान की बाजी लगाने को भी तैयार हैं।
खैर, 7 अक्टूबर 1892, जब उनकी उम्र 74 साल थी, भीड़ के सामने पैटनकोफर ने जीवित हैजा कीटाणु से संक्रमित सैंपल को गटक लिया। इसके दस दिन बाद, कॉक को पत्र लिखकर सूचित किया कि मुझे कुछ नहीं हुआ, मैं अभी भी जिंदा हूं और तुम्हारा सिद्धांत गलत है। (पैटनकोफर की मृत्यु, नौ साल बाद, 1901 में हुई। ) इस साल भारत के कई राज्यों में डेंगी (आम भाषा में डेंगू) की बीमारी फैली।
लोग अस्पतालों में भर्ती हुए और कुछ की मृत्यु हुई। सवाल उठता है कि डेंगी का वायरस तो देश के सभी हिस्सों में है, तो फिर कुछ ही राज्य क्यों प्रभावित होते हैं? परिवार में कुछ ही सदस्य क्यों प्रभावित होते हैं, सभी क्यों नहीं? यही बात अन्य संक्रामक बीमारियों जैसे टीबी, चिकुनगुन्या और मलेरिया पर भी लागू होती है। इसी तरह, ज़ीका विषाणु के भारत में होने के सबसे पहले सबूत 1952-53 में मिले लेकिन मनुष्यों में संक्रमण का सबसे पहला मामला 2017 में मिला।
2021 मे तीन राज्यों - केरल, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में ज़ीका के मामले आए हैं। सवाल है कि विषाणु तो इतने सालों से था, बीमारी अब क्यों हो रही है? गैर संक्रामक बीमारियों के लिए भी यही स्थिति होती है। परिवार के लोग एक ही प्रकार का खाना खाते हैं, लेकिन कुछ को उच्च रक्तचाप हो जाता है। एक ही ठेले से गोलगप्पे खाने पर कुछ का पेट ख़राब हो जाता है और अन्य का नहीं। इन सबका जवाब, 'महामारी विज्ञान त्रिकोण' से समझा जा सकता है।
इस त्रिकोण के अनुसार कोई भी बीमारी - कारक (रोगाणु या अन्य वजह); व्यक्ति (और उसकी आदतें) तथा आसपास की परिस्थितियों के सम्मिश्रण से निर्धारित होती है। बात आती है कि अगर हम यह सब जानते हैं तो इन बीमारियों से बचने के तरीके क्यों नहीं अपनाते? एक वजह है चिकित्सा विज्ञान की प्रगति, जिससे कई बीमारियों का इलाज संभव है, तो लोगों और सरकारों ने उनसे बचाव पर ध्यान देना कम कर दिया है।
दूसरा, चूंकि रोगाणु और उनको फैलाने वाले वाहक (जैसे मच्छर), हर व्यक्ति को प्रभावित कर सकते हैं लेकिन इस बात को जानने का कोई तरीका नहीं हैं कि कौन व्यक्ति बीमार पड़ जाएगा। हर व्यक्ति सोचता है, वह नहीं बल्कि दूसरे बीमार पड़ेंगे। कुछ ही लोग बचाव के तरीकों का पालन करते हैं। कोविड-19 महामारी ने हमें याद दिलाया है कि बीमारी केे बचाव से बेहतर कोई तरीका नहीं है। एक बार बीमारी हो गई, कोई नहीं जानता कि उसके बाद क्या होगा?
कोई नहीं जानता कि मानव प्रजाति का क्या भविष्य होगा, लेकिन विषाणु और कीटाणु लंबे समय तक रहेंगे। इसलिए स्वस्थ जीवन और समाज के लिए जरूरी है कि हर व्यक्ति बीमारियों से बचाव के लिए कदम उठाए। नियमित व्यायाम, संतुलित आहार, धूम्रपान बंद करना, समय पर सोना और पर्याप्त नींद तथा चिंता कम करने से कई रोगों से निजात पा सकते हैं।
उसी तरह अगर राज्य सरकारें और नगर निगम रोगाणुओं के लिए सुदृढ़ निगरानी तंत्र विकसित करें, समय पर मौसमी बीमारियों को रोकने के लिए कदम उठाएं, मच्छरों को पनपने से रोकें, तो कई बीमारियां रोकी जा सकती हैं। कॉक और पैटनकोफर के चर्चित विवाद से आज हमें बीमारियों को रोकने के लिए बेहतर समझ विकसित हुई है। समय है इसे अमली जामा पहनाया जाए। अगर हम सब स्वस्थ जीवनशैली अपनाएं और सरकारें बीमारियों की रोकथाम पर अधिक ध्यान दें, तो रोगाणु हमारे आसपास तो रहेंगे, लेकिन बीमार होने की आशंका कम होगी।
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Rani Sahu
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