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देश विरोधी ताकतें किसानों का कंधा इस्तेमाल ना कर पाएं, ये चुनौती किसान और सरकार दोनों के लिये है
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | आंदोलन की पवित्रता साधन और साध्य दोनों पर निर्भर होती है. किसान आंदोलन 26 नवंबर 2020 को शुरू हुआ था. अब करीब 240 दिन बीतने के मौके पर इसका ईमानदार अवलोकन ज़रुरी है. सरकार के साथ जनवरी तक 11 दौर की बातचीत हुई. सरकार के नए कानून के स्थगन के फैसले के बावजूद आंदोलन जारी है. ये बात और है कि इसमें मौजूद रह कर हिस्सा लेने वालों की तादाद घटी है. जिसके बारे में कभी कहा गया कि किसान गेहूं की कटाई के लिये गए हैं, लेकिन जल्द वापस आएंगे.
आंदोलन के बीच, आंदोलन की जगहों पर स्थानीय लोगों को तकलीफ सहित आवाजाही की समस्या, और लोगों की रोजीरोटी तक पर बन आने की खबरें आईं. एक युवती से बलात्कार, टीकरी बॉर्डर पर एक युवक को जिंदा जलाए जाने जैसी घटनाओं ने तो सवाल उठाए ही थे, लेकिन सबसे ज्यादा चौंकाया गणतंत्र दिवस पर लालकिले के उस उपद्रव ने जिसमें "सिख फॉर जस्टिस" का हाथ नज़र आया. 2007 में बना खालिस्तान समर्थक एक ऐसा संगठन, जो विदेशी जमीन से भारत के लोगों को भड़का कर अलग खालिस्तानी देश बनाने के एजेंडे को आगे बढ़ाना चाहता है.
किसान आंदोलन के पर्दे के पीछे भी इस संगठन के लोग देश में अशांति फैलाना चाहते हैं. इस संगठन के तार पाकिस्तान तक से जुड़े बताए जाते हैं. इसका संस्थापक गुरपतवंत सिंह पन्नू अमेरिका में वकील है. किसान आंदोलन के दौरान उसकी सक्रियता एसएफजे के पोस्टर्स और ऑडियो से लगातार ज़ाहिर हुई है. यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधि निरोधी कानून) के तहत इस संगठन से 2019 से ही बैन लगा हुआ है. इस संगठन पर देश में गड़बड़ी फैलाने की कोशिश सहित दुनिया में कई जगहों पर खालिस्तान के नाम पर देश की छवि धूमिल करने की कोशिशों का आरोप है.
पोस्टर्स बताते हैं कि 15 अगस्त को भी इस संगठन का इरादा दिल्ली में आजादी के जश्न के कार्यक्रमों में खलल डालने का है. 26 जनवरी को दिल्ली में ट्रैक्टरों का तांडव कर लाल किले में उपद्रव के पीछे भी इसी संगठन से प्रभावित या जुड़े लोगों का हाथ था. इसी सिलसिले में एनआईए ने पंजाब में कई जगहों पर छापे मारे थे और हाल ही में दिल्ली पुलिस ने दीप सिंह सिद्धू समेत 17 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दायर की है.
बीते दिनों संयुक्त किसान मोर्चे में भारतीय किसान यूनियन हरियाणा के रुलदू सिंह मानसा को सस्पेंड कर दिया गया. मानसा ने मोर्चे के मंच से संबोधन के दौरान किसान आंदोलन में खालिस्तानी मानसिकता के लोगों के शामिल होने और प्रभावी हो जाने के संदर्भ में चिंता जाहिर की थी. इस बात से खफा लोगों ने मानसा को ना सिर्फ 15 दिनों के लिये मोर्चे से निलंबित करा दिया बल्कि मानसा के कैंप पर हमला बोल कर उनके एक समर्थक गुरविंदर सिंह को बुरी तरह घायल कर दिया गया. ये घटना किसान आंदोलन में एसएफजे के प्रभाव की ओर इशारा भी करती है.
मानसा के बयान पर 32 सिख संगठनों की आलोचना भी ये दिखाती है कि हमारी एजेंसियों और सरकारों के साथ-साथ किसान संगठनों को भी चौकन्ना रहने की ज़रुरत है. साउथ एशियन पॉलिटिकल एंड मिलिट्री अफेयर्स की अमेरिकी इंचार्ज सी क्रिस्टीन फैरी का भी कहना है कि पाकिस्तान लगातार खालिस्तानी ग्रुपों को बनाने और बढ़ाने में सहयोग दे रहा है.
किसानों के मुद्दों के नाम पर ये संगठन अब खालिस्तान के साथ कश्मीर, बंगाल, महाराष्ट्र और असम के अलगाव की बात भी कर रहा है. हाल ही में हिमाचल के नैनादेवी के पास माइलस्टोन्स पर कई जगह "ये खालिस्तान की सरहद" है और "खालिस्तान विच त्वाडा स्वागत ऐ" जैसे नारे लिखे मिले हैं, और अब सोशल मीडिया के जरिये 15 अगस्त पर प्रधानमंत्री को झंडा ना फहराने देने और दिल्ली को घेरने की साजिशें रची जा रही हैं.
सरकार इस खतरे को भांप रही है. दिल्ली में अब 18 अगस्त तक के लिये राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के प्रावधान लागू रहेंगे, जिसमें पुलिस को विशेष शक्तियां दी जाती हैं. सिर्फ शक के आधार पर गिरफ्तारी और बिना मुकदमें के हिरासत में रखा जा सकता है. किसानों के हित की बात करना जाहिर है, देश के हित की बात करना है. लेकिन जिस तरह से किसान आंदोलन के दौरान हत्या, बलात्कार, देश और प्रधानमंत्री के खिलाफ नारे लगाने और देश में विभाजनकारी आवाजों को मुखर बनाने की कोशिशें हुई है उस बारे में जिम्मेदारी से सोचने, और आंदोलन को भटकने या इस्तेमाल ना होने देने के बारे में भी किसान मोर्चे को गंभीरता से सोचने की जरूरत है.
एसएफजे जानता है कि कार्रवाई होने पर उसके लोगों के पास किसानों पर ज्यादती होने की दुहाई का कवच होगा. ऐसे हालात में किसान संगठनों को नीर-क्षीर विवेक से काम लेना होगा. साथ ही सरकार के लिये भी ये चुनौती लगातार बनी हुई है कि आंदोलन का इस्तेमाल करने वाले देश विरोधी और आपराधिक तत्वों पर कानून का चाबुक चलाया जाए, लेकिन देश के लोगों के लिये अनाज उगाने वाले किसान इसमें घुन की तरह पिसने ना पाएं. चुनौती दोनों तरफ के लोगों के लिये बड़ी है. और आज़ादी के जश्न का दिन देश के लिये अपने फर्ज की कसौटी में अपने कामों को कसने का सबसे बेहतरीन मौका.