सम्पादकीय

क्‍यूबा की सड़कों पर लग रहे सरकार विरोधी नारे, क्‍या ये एक युग के अंत की आहट है?

Gulabi
15 July 2021 1:52 PM GMT
क्‍यूबा की सड़कों पर लग रहे सरकार विरोधी नारे, क्‍या ये एक युग के अंत की आहट है?
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जुलाई, 1953 में जब फिदेल कास्‍त्रो और उनके क्रांतिकारी साथियों ने क्‍यूबन क्रांति की शुरुआत की तो उनकी क्रांति का नारा था

मनीषा पांडेय। जुलाई, 1953 में जब फिदेल कास्‍त्रो और उनके क्रांतिकारी साथियों ने क्‍यूबन क्रांति की शुरुआत की तो उनकी क्रांति का नारा था – "Patria o Muerte." इसका अर्थ था होमलैंड या डेथ. मातृभूमि या मृत्‍यु. 5 साल बाद 1958 में क्रांतिकारियों ने आखिरकार बतिस्‍ता की सत्‍ता को उखाड़ फेंका और एक कम्‍युनिस्‍ट राज की स्‍थापना की और खुद फिदेल कास्‍त्रो ने 46 सालों तक उस कम्‍युनिस्‍ट मुल्‍क की कमान संभाले रखी. और आज उस क्रांति के तकरीबन 6 दशक बाद 11 जुलाई को एक बार फिर सैकड़ों की संख्‍या में लोग हवाना की सड़कों पर उतर आए थे. इस बार वो "Patria o Muerte" का नारा नहीं लगा रहे थे. वे कह रहे थे- "Patria y Vida" जिसका अर्थ था- होमलैंड और लाइफ. मातृभूमि और जिंदगी.

क्‍यूबा के इतिहास में पिछले 30 सालों में यह पहला मौका था, जब लोग सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरे. कभी जिस मातृभूमि की कीमत उनकी जान से ज्‍यादा थी और वो उसके लिए मरने को तैयार थे, उसी मातृभूमि से अब वो अपने लिए जिंदगी मांग रहे थे.
11 जुलाई को हवाना और सांतियागो में शुरू हुआ यह सरकार विरोधी प्रदर्शन कुछ ही दिनों के भीतर देश भर में फैल गया है. यहां तक कि चिली, अर्जेंटीना और मियामी में भी लोग क्‍यूबा की जनता के पक्ष में और सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. चिली में रह रहे क्‍यूबा के लोगों ने क्‍यूबन काउंसलेट के सामने विरोध प्रदर्शन किया. मियामी में रहे लोगों ने अमेरिकी सरकार से मांग की कि वो क्‍यूबा की जनता को सहयोग करें. यहां तक कि अर्जेंटीना की राजधानी ब्‍यूनस आयर्स में भी लोग क्‍यूबन एंबैसी के सामने एकत्रित हुए और सरकार विरोधी नारे लगाए. क्‍यूबन मेरिकन रैपर, सिंगर और बिजनेसमैन पिटबुल ने सोशल मीडिया पर एक भावुक कर देने वाला गीत शेयर किया और पूरी दुनिया से संकट के इस समय में क्‍यूबन जनता की मदद करने की मांग की.
दुनिया के बाकी हिस्‍सों से भी लोग लगातार ट्विटर पर अपनी प्रतिक्रियाएं दे रहे थे. एक यूजर ने सपेनिश भाषा में लिखा, "हम इतिहास को अपनी आंखों के सामने घटते देख रहे हैं. यह सिर्फ सरकार विरोधी प्रदर्शन भर नहीं है, यह एक युग के अंत का संकेत भी है. हर समस्‍या के लिए अमेरिकन एंम्‍बार्गो को दोषी ठहराकर क्‍यूबन सरकार की दमनकारी नीतियों का बचाव नहीं किया जा सकता."
इस सरकार विरोधी प्रदर्शन की एक खास वजह भी है. पिछले कुछ सालों में और खासतौर पर कोविड 19 महामारी के पूरी दुनिया में फैलने के बाद क्‍यूबा की अर्थव्‍यवस्‍था पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है. प्रभाव इतना गहरा है कि भोजन और दवाई तक का संकट खड़ा हो गया है. 2020 में यह आर्थिक संकट इतना गहरा गया कि क्‍यूबा की अर्थव्‍यवस्‍था 10.9 फीसदी सिकुड़ गई. उसके अगले साल यानि 2021 में यह दो फीसदी और सिकुड़ गई. क्‍यूबा ने दूसरे देशों से वैक्‍सीन की मदद लेने से इनकार कर दिया था. उन्‍होंने अपनी वैक्‍सीन खुद बनाई, लेकिन बनाने की यह प्रक्रिया थोड़ी लंबी चली और इस दौरान महामारी और विकराल रूप लेती रही. वैक्‍सीन बहुत धीमी गति से लोगों तक पहुंच रही थी. आज की तारीख में भी वहां सिर्फ 15 फीसदी नागरिकों का ही वैक्‍सीनेशन हो पाया है.
हालांकि क्‍यूबा के लोगों के लिए यह स्‍वास्‍थ्‍य संकट बहुत नया था क्‍योंकि वो तो एक सरकारी व्‍यवस्‍था को जानते थे, जहां हर 300 मीटर की दूरी पर एक हेल्‍थ क्लिनिक और डॉक्‍टर हमेशा उपलब्‍ध रहता था. जहां स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएं सभी नागरिकों के लिए पूरी तरह मुफ्त थीं. जिस देश ने क्रांति के तुरंत बाद सबसे पहले दुनिया का सबसे मजबूत हेल्‍थ इंफ्रास्‍ट्रक्‍चर खड़ा किया था, जब उसके देश के लोग गरीबी, मुखमरी और बीमारियों से मर रहे थे और अमेरिका के इशारे पर दुनिया के बाकी देशों से क्‍यूबा को दवाइयों तक की मदद देने से इनकार कर दिया था. आज भी क्‍यूबा में शिशु और मातृ मृत्‍यु दर दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका से भी कम है. क्‍यूबा का हेल्‍थकेयर सिस्‍टम हार्वर्ड और कैंब्रिज जैसे विश्‍वविद्यालयों के लिए अध्‍ययन का विषय रहा है.
एक ऐसा देश, जिसके हेल्‍थकेयर सिस्‍टम की मिसालें दी जाती रही हों, वो अगर अचानक ऐसी स्थिति में पहुंच जाए कि दवाइयों का संकट खड़ा हो जाए तो संकट शायद कहीं और ही है. क्‍यूबा की अर्थव्‍यवस्‍था डूबने की कई तात्‍कालिक वजहें रही हैं. सबसे बड़ी वजह बनी क्‍यूबा के सहयोगी देश वेनेजुएला से मिलने वाली मदद का बंद हो जाना. क्‍यूबा की अर्थव्‍यवस्‍था का एक बड़ा हिस्‍सा टूरिज्‍म पर निर्भर था, जिस पर सबसे ज्‍यादा नकारात्‍मक प्रभाव कोविड महामारी का पड़ा. टूरिज्‍म बिजनेस पूरी तरह थप्‍प हो गया और इससे सीधे-सीधे लाखों की संख्‍या में लोगों के रोजगार खत्‍म हो गए. ये सब कुछ तात्‍कालिक वजहें हैं, लेकिन डूबती हुई अर्थव्‍यवस्‍था की और भी वजहें होंगी, जो सरकारी नीतियों और लीडरशिप की वजह से पैदा हुई होंगी.
फिलहाल सरकार विरोधी नारों में हवाना की सड़कों पर उतरी जनता एक नारा और लगा रही थी और वह था- कम्‍युनिज्‍म विरोधी नारा. लोग व्‍यक्तिगत आजादी, अभिव्‍यक्ति की आजादी की बात कर रहे थे. कम्‍युनिस्‍ट सरकार की सेंसर‍शिप से लोग तंग आ चुके हैं. यह बात दीगर है कि कम्‍युनिस्‍ट सरकारें ज्‍यादा न्‍यायपूर्ण और बराबरी का समाज बनाने पर जोर दे रही होती हैं, लेकिन साथ ही व्‍यक्गित आजादी की उनकी डिक्‍शनरी में कोई जगह नहीं है. असहमति और विरोध की कोई जगह नहीं है. क्‍यूबा में भी फिलहाल सरकार ने व्‍हॉट्सएप, फेसबुक और सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगा रखा है. दुनिया के कई देश और यूरोपियन यूनियन ने क्‍यूबा की जनता के पक्ष में बयान दिया है और अपने बचाव में क्‍यूबन सरकार यही कह रही है कि ये सब अमेरिकन प्रपोगंडा है, अमेरिका की साजिश है.
क्‍यूबा की कहानी सिर्फ एक कम्‍युनिस्‍ट देश के बनने की कहानी नहीं है. वो कई मायनों में एक मिसाल भी है. इतिहास में देर तक और दूर तक याद रखी जाने वाली मिसाल. लेकिन वो मिसाल अब धीरे-धीरे खुद इतिहास होने की ओर अग्रसर है. जैसाकि लोग ट्विटर पर लिख रहे हैं- संभव है कि यह एक युग के अंत की शुरुआत हो.
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