सम्पादकीय

एंटी-सीएए प्रोटेस्ट फिर

Gulabi
22 Dec 2020 12:12 PM GMT
एंटी-सीएए प्रोटेस्ट फिर
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नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ पिछले साल हुआ जोरदार विरोध आंदोलन मार्च में कोरोना महामारी की मार की वजह से दब गया था

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ पिछले साल हुआ जोरदार विरोध आंदोलन मार्च में कोरोना महामारी की मार की वजह से दब गया था। लेकिन उस पर लोगों के मन में मौजूद विरोध खत्म नहीं हुआ, इसकी झलक अब मिलने लगी है। ये कानून संसद में 11 दिसंबर 2019 को पास हुआ था। उसकी सालगिरह पर इस बार कोलकाता और दिल्ली समेत कई जगहों पर विरोध जताने की खबरें आईं। लेकिन जहां ये आग ज्यादा सुलगती दिख रही है, वह उत्तर पूर्व का इलाका है। इसे देखते हुए कहा जाने लगा हैकि असम में अगले साल होने वाले विधान सभा चुनाव में यह एक बड़ा मुद्दा होगा। असम में बीते साल यह आंदोलन हिंसक हो उठा था। तब पुलिस की फायरिंग में पांच युवकों की मौत हो गई थी। उसी घटना की बरसी के मौके पर इस आंदोलन को वहां नए सिरे से शुरू किया गया। आंदोलन की शुरुआत काला दिवस मनाने के साथ हुई। नार्थ ईस्ट स्टूडेंट्स आर्गनाइजेशन (नेसो) की अपील पर 18 संगठनों ने पूर्वोत्तर में काला दिवस मनाया।


अब इस आंदोलन को और तेज करने की योजना है। नेसो के बैनर तले इकट्ठा हुए इलाके के तमाम संगठनों ने केंद्र सरकार को चेतावनी दी है कि इस कानून के खिलाफ पूरा पूर्वोत्तर एकजुट है। इस विवादास्पद कानून को लागू करने के किसी भी प्रयास का कड़ा विरोध किया जाएगा। नए सिरे से शुरू होने वाले इस आंदोलन से असम में भाजपा की अगुवाई वाली सरकार के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं। नेसो के पदाधिकारियों का कहना है कि कोरोना महामारी और लॉकडाउन की वजह से उन्होंने सीएए के खिलाफ अपना आंदोलन रोक दिया था। लेकिन अब पहले से भी बड़े पैमाने पर इसे जारी रखा जाएगा। इस संगठन का आरोप है कि बांग्लादेशियों के वोट के लालच में केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर के लोगों पर जबरन इस कानून को थोपा है। असम में ये भावना आम है कि वहां के लोग इस राज्य को बांग्लादेश से आए हिंदुओं के लिए "कचरे का डब्बा" नहीं बनने देंगे। वहां के संगठनों का यह भी कहना है कि इलाके के लोग धर्म के आधार पर नागरिकता देने वाले ऐसे किसी कानून को स्वीकार नहीं करेंगे। इस इलाके के लोगों को डर है कि भाजपा इस कानून की आड़ में बांग्लादेश से बड़े पैमाने पर आने वाले घुसपैठियों को नागरिकता देने की योजना बना रही है। क्या सरकार उनकी संवेदनशीलतां का ख्याल करेगी?


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