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हिमाचल में शिक्षण संस्थानों का जन्म घटना या दुर्घटना के मानिंद होता आया है
divyahimachal .
हिमाचल में शिक्षण संस्थानों का जन्म घटना या दुर्घटना के मानिंद होता आया है और इसी के प्रारूप में स्कूल, कालेजों के बाद अब विश्वविद्यालय जैसे संस्थान भी अचानक जन्म ले रहे हैं। प्रदेशभर में निजी विश्वविद्यालयों की खेप उतारने के बाद अब सरकारी तिजोरी से उपहार के रूप में शिक्षा के उच्च संस्थान अपनी राजनीतिक वकालत कर रहे हैं। जयराम सरकार ने मंडी में मेडिकल यूनिवर्सिटी उतारने के बाद अब एक अन्य राज्य विश्वविद्यालय को आकार देना शुरू किया है। अब तक की कलस्टर यूनिवर्सिटी को नए रूप में विस्तारित किया जाएगा। जाहिर है यह संस्थान शिमला विश्वविद्यालय से अलग शिक्षा का एक नया मंजर पैदा कर सकता है, लेकिन यह भी मानना पडे़गा कि फैसले की कोख में सियासत का लाभ पैदा करने की यह एक और कोशिश मानी जाएगी। उपचुनाव परिणामों की खेती में उजड़े चमन पर फिर फूल उगाने के लिए शिक्षा को बोया जा रहा है। प्रदेश की भौगोलिक स्थिति को देखते हुए तीन दशकों से भी पूर्व शिमला विश्वविद्यालय का एक अध्ययन केंद्र धर्मशाला में स्थापित हुआ था, लेकिन उच्च अध्ययन की श्रृंखला में आज कमोबेश हर कालेज स्नातकोत्तर स्तर की पढ़ाई का केंद्र बना दिया गया है। ऐसे में विश्वविद्यालय परिसर और कालेज में उच्च अध्ययन के फासले बढ़ जाते हैं।
अगर प्रदेश में एक अन्य विश्वविद्यालय खोला जा रहा है, तो कल धर्मशाला के विश्वविद्यालय अध्ययन केंद्र को भी राज्य विश्वविद्यालय बना देना होगा। इसके अलावा संस्कृत विश्वविद्यालय की वकालत को पूरा करने की भी तो रेस शुरू है। इसी तरह अनुराग ठाकुर चाहंे तो एक अदद खेल विश्वविद्यालय भी खुल सकता है। शिक्षा के हित में विश्वविद्यालयों की कतार बनाने से पहले यह सोचा जाए कि किस उद्देश्य के लिए राज्य का बजट खर्च किया जा रहा है। अगर दो-तीन राज्य विश्वविद्यालय बना दिए जाएं, तो साधारण कालेजों को स्नातकोत्तर बनाने की क्या वजह रह जाएगी। भौगोलिक दृष्टि से मंडी विश्वविद्यालय की रूपरेखा में शिक्षा की गुणवत्ता की उम्मीद की जा सकती है, लेकिन पूर्व में तकनीकी शिक्षा को अहमियत देती टेक्निकल यूनिवर्सिटी हमीरपुर के उदय के बाद तमाम इंजीनियरिंग कालेजों का क्या हुआ। हैरत तो यह कि आईटीआई तथा पोलीटेक्नीक कालेजों की काबिलीयत में न छात्र मिल रहे और न ही प्रशिक्षण के बाद रोजगार। तकनीकी विश्वविद्यालय के तहत बिजनेस स्कूल तो बढ़ गए, लेकिन हिमाचल से एमबीए की उपाधि हासिल करके रोजगार का कोई आधार प्राप्त करना कठिन हो चुका है।
लगभग अपनी रैंकिंग में नीचे गिर रही शिमला यूनिवर्सिटी के उत्थान के लिए एक और विश्वविद्यालय की जरूरत कितनी जायज है, यह तो राज्य सरकार को ही मालूम होगा, लेकिन शिक्षा के प्रसार में सियासी महत्त्वाकांक्षा ने अवमूल्यन जरूर किया है। आज भी प्रदेश के दो-तीन बड़े कालेज ही हिमाचली छात्रों की काबिलीयत का अनुपात बढ़ाते हैं, जबकि दर्जनों अन्य सिर्फ उपाधियां ही बांट रहे हैं। पहले ही स्नातकोत्तर कालेजों ने शिक्षा के माहौल को कबूतरखानों में कैद कर रखा है, सो अब नए पैमाने तय होंगे। मंडी विश्वविद्यालय का तमगा बेशक जयराम सरकार का उद्घोष करेगा, लेकिन उन अध्यायों का क्या होगा जो शिमला विश्वविद्यालय में गुम हो गए या धर्मशाला केंद्रीय विश्वविद्यालय को नसीब ही नहीं हुए। एक दशक से लावारिस केंद्रीय विश्वविद्यालय के किस परिसर से मंडी यूनिवर्सिटी का परिसर बेहतर होगा। मजाक तो यह है कि शाहपुर, धर्मशाला और देहरा में उच्च शिक्षा का मंत्रोच्चारण करती सेंट्रल यूनिवर्सिटी ने शिक्षा को ही बदनाम किया है, लेकिन राजनीति इतनी चमकी कि कई चुनाव इसी के नाम पर हो गए। मंडी जिला के आगामी विधानसभा चुनाव में 'एक और विश्वविद्यालय' कितना लाभ देता है, देखना होगा। वैसे असफलता के लिए कभी हिमाचल ने बोरियों में भर कर निजी विश्वविद्यालय भी मूंगफली की तरह बांटे थे, लेकिन आज इक्का-दुक्का को छोड़कर बाकी सभी खंडहर में तबदील हो रहे हैं।
Gulabi
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