सम्पादकीय

कांग्रेस को एक और झटका, जनता और कार्यकर्ताओं को कोई नया विचार नहीं दे पा रही पार्टी

Gulabi Jagat
21 Aug 2022 4:41 PM GMT
कांग्रेस को एक और झटका, जनता और कार्यकर्ताओं को कोई नया विचार नहीं दे पा रही पार्टी
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आनंद शर्मा ने हिमाचल प्रदेश कांग्रेस की चुनाव संचालन समिति के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र देकर पार्टी को वैसा ही झटका दिया है जैसा कुछ दिनों पहले गुलाम नबी आजाद ने जम्मू-कश्मीर कांग्रेस की चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर दिया था। ये त्यागपत्र यही बता रहे हैं कि कांग्रेस में कुछ भी ठीक नहीं है। ये दोनों नेता उस समूह के मुखर सदस्य हैं जो पार्टी में सुधार और बदलाव के पक्ष में आवाज उठाता रहा है। इस समूह के एक प्रमुख सदस्य कपिल सिब्बल तो कांग्रेस ही छोड़ चुके हैं और एक अन्य सदस्य मनीष तिवारी लगातार पार्टी की रीति-नीति से असहमति व्यक्त करते चले आ रहे हैं।
इस सबसे यदि कुछ स्पष्ट हो रहा है तो यही कि गांधी परिवार पार्टी के असंतुष्ट नेताओं को संतुष्ट करने के लिए अपेक्षित कदम नहीं उठा रहा है। यह सही है कि आनंद शर्मा कोई बड़े जनाधार वाले नेता नहीं, लेकिन उनके इस तरह किनारे होने से हिमाचल प्रदेश के कांग्रेस नेताओं का मनोबल तो प्रभावित होगा ही। यही बात गुलाम नबी आजाद के जम्मू-कश्मीर कांग्रेस की चुनाव अभियान समिति से अलग होने के बारे में कही जा सकती है।
कांग्रेस जिस तरह एक लंबे अर्से से अपने आंतरिक द्वंद्व में उलझी हुई है, उससे वह लगातार कमजोर होती जा रही है। अनेक राज्यों में उसकी हैसियत तीसरे-चौथे नंबर के राजनीतिक दल की बनकर रह गई है। नि:संदेह राष्ट्रीय दल का उसका दर्जा बरकरार है और उसके साथ अभी भी करीब बीस प्रतिशत वोट हैं, लेकिन धीरे-धीरे वह एक क्षेत्रीय दल में परिवर्तित होती जा रही है। इसका एक प्रमुख कारण गांधी परिवार की ओर से पार्टी को अपने हिसाब से चलाना है।
इससे बड़ी विडंबना कोई नहीं हो सकती कि राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद से पार्टी को कामचलाऊ तरीके से चलाया जा रहा है। कोई नहीं जानता कि कांग्रेस को अपना नया अध्यक्ष कब मिलेगा? एक ओर राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष पद फिर से स्वीकार करने को तैयार नहीं और दूसरी ओर वह पर्दे के पीछे से पार्टी को संचालित भी कर रहे हैं।
यह माना जा रहा था कि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर के विधानसभा चुनाव में खाली हाथ रहने के बाद कांग्रेस अपने तौर-तरीके बदलेगी, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। अब तो ऐसा लगता है कि कांग्रेस में सुधार और बदलाव की इच्छाशक्ति ही नहीं रह गई है। यह ठीक है कि विभिन्न मुद्दों पर कांग्रेस अपनी आपत्ति, असहमति और विरोध दर्ज कराती रहती है, लेकिन उसके नेता देश की जनता और यहां तक कि अपने कार्यकर्ताओं और समर्थकों को कोई नया विचार नहीं दे पा रहे हैं।


दैनिक जागरण के सौजन्य से सम्पादकीय
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