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” चूंकि जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन है, फिर भी हर दिन एक कश्मीरी हिंदू की गोली मारकर हत्या की जा रही है
Faisal Anurag
" चूंकि जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन है, फिर भी हर दिन एक कश्मीरी हिंदू की गोली मारकर हत्या की जा रही है. इसलिए अमित शाह के इस्तीफे की मांग करना आवश्यक हो गया है. इसके बजाय उन्हें खेल मंत्रालय दिया जा सकता है, क्योंकि आजकल क्रिकेट में अनड्यू रुचि हो रही है." यह ट्वीट भारतीय जनता पार्टी के नेता सुब्रहमण्यम स्वामी का है. एक ऐसे समय जब कश्मीर के पंडित आतंकवादियों के निशाने पर हैं. केंद्रीय गृह मंत्रालय हो या फिर जम्मू और कश्मीर के उप राज्यपाल, दोनों ही कश्मीरी पंडितों को भरोसा देने में विफल साबित हुए हैं.
कश्मीरी पंडित अपनी सुरक्षा की मांग को लेकर लगातार विरोध कर रहे हैं. पंडितों के संगठन ने दावा किया है कि हालात 1990 की तरह हो गए हैं और जान की रक्षा के लिए पंडित घाटी से पलायन करने लगे हैं. धारा 370 के हटाने के बाद दावा किया गया था कि घाटी में सुरक्षा और शांति के सामान्य माहौल की स्थापना होगी और आतंकवादियों को हमेशा के लिए दफन कर दिया जाएगा.
पिछले 20 दिनों में घाटी में 10 लोगों की निर्मम हत्या की जा चुकी है. दूरदराज के इलाकों में पदस्थापित कश्मीरी पंडित तबादले की मांग पर अड़े हुए हैं. उप राज्यपाल मनोज सिन्हा ऐसा कोई भरोसा देने में अभी तक नाकामयाब रहे हैं, जिससे पंडितों का विश्वास मजबूत हो. उप राज्यपाल मनोज सिन्हा से जब दो दिन पहले कश्मीरी पंडितों का एक प्रतिनिधमंडल मिला, तो उन्होंने कहा कि वे ऐसी कोई गारंटी नहीं दे सकते कि आगे से कोई हिंसा की वारदात नहीं होगी.
इस बयान के बाद कश्मीरी पंडितों ने साफ चेतावनी दी है कि सरकार ने कोई ठोस कदम जल्द से जल्द नहीं उठाया, तो वे पलायन के लिए मजबूर होंगे. घाटी की घटनाओं ने 1990 की याद को ताजा कर दिया है, जब बड़े पैमाने पर हत्याएं हुई थीं और पंडितों ने अपने पूर्वजों की जमीन से पलायन किया था.
इस समय घाटी में कश्मीरी पंडितों के साथ कश्मीरी मुसलमानों की भी हत्याएं हो रही हैं. श्रीनगर में हुए पंडितों के एक प्रदर्शन में कश्मीरी पंडितों के साथ मुसलमानों ने भी भाग लिया और आतंक के खिलाफ आवाज बुलंद किया. इस संदर्भ में जम्मू कश्मीर डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता मोहित भान ने एक महत्वपूर्ण ट्वीट किया है.
मोहित भान ने ट्वीट में कहा है- " अलोकप्रिय राय – राहुल भट, रजनी बाला और विजय कुमार की मौत पर पूरे राष्ट्रीय मीडिया ने सरकार की विफलता और उनकी कश्मीर नीति पर सवाल उठाया न कि एक साल में मारे गए 44 मुसलमानों पर. यहीं से मसला शुरू होता है और इसी तरह आप सभी अलगाव में डालते हैं." यानी घाटी का मसला एक बड़ी आतंकवादी योजना का हिस्सा है, जिसमें सांप्रदायिक सद्भाव की बात करने वाला हिंदू हो या मुसलमान, आतंकियों के निशाने पर है.
केंद्र ने घाटी के ज्वलंत हालात पर एक मीटिंग बुलायी है. लेकिन मुख्य सवाल यह है कि जिन परिवारों के लोगों की हत्याएं की गयी हैं और जो आतंकियों के निशाने पर कभी भी आ सकते हैं, उनमे भरोसा किस तरह पैदा किया जाएगा. उम्मीद की जा रही है कि गृह मंत्रालय इसका जबाव देगा. धारा 370 के हटाए जाने के बाद से ही घाटी में राजनैतिक तौर पर सन्नाटा पसरा है. राजनैतिक संवाद की कोई ऐसी प्रक्रिया नहीं दिखती है, जिसमें संकट का राजनैतिक हल निकाला जाए. पिछले साल जम्मू कश्मीर के नेताओं संग प्रधानमंत्री ने एक मीटिंग की थी. लेकिन इस मीटिंग में कश्मीरी नेताओं का जो दर्द उभरा था, उसके बाद जो कदम उठाए जाने चाहिए थे, वह दिखा नहीं.
हिंसा के वर्तमान दौर ने कई सवाल पैदा कर दिए हैं. पहला और जरूरी सवाल तो यही है कि घाटी के नागरिकों के बीच सुरक्षा का विश्वास किस तरह पैदा किया जा सकता है. कश्मीर मुद्दे पर एक पखवाड़े से भी कम समय में 3 जून को दूसरी उच्च स्तरीय बैठक हो रही है. पिछली मीटिंग में गृह मंत्री ने सक्रिय और समन्वित आतंकवाद रोधी अभियानों की वकालत की थी. साथ ही सुरक्षा बलों को सीमा पार घुसपैठ की घटनाएं न हों, यह सुनिश्चित करने और केंद्र शासित प्रदेश से आतंकवाद का सफाया करने के लिए कहा था.
सुब्रह्मण्यम स्वामी ने एक गंभीर संकट की ओर इशारा किया है. स्वामी अकेले नहीं हैं जो तल्ख टिप्प्णी कर रहे हैं. घाटी के पंडितों के जो बयान सोशल मीडिया पर उपलब्ध हैं, उनमें व्यक्त दर्द और तल्खी भी सुब्रह्मण्यम स्वामी की तरह गृह मंत्री अमित शाह को लेकर असंतोष से भरा है.
सोर्स- Lagatar News

Rani Sahu
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