सम्पादकीय

खफा अरब, क्यों भारत के लिए खास आसियान

Nilmani Pal
17 Jun 2022 10:14 AM GMT
खफा अरब, क्यों भारत के लिए खास आसियान
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आर.के. सिन्हा

राजधानी के दिल लुटियन दिल्ली के तुगलक क्रिसेंट में बना सुंदर भारत-आसियान मैत्री पार्क गवाही है कि भारत आसियान देशों से अपने संबंधों को खास अहमियत देता है। इसका उदघाटन तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने सन 2018 में किया था। राजधानी में बीते दिनों आसियान देशों के विदेश मंत्रियों की भारत ने मेजबानी की। इसमें भारत-आसियान देशों के आपसी संबंधों पर चर्चा हुई। महत्वपूर्ण ये भी है कि ये सम्मेलन तब हुआ जब दुनिया के कई इस्लामिक देशों ने नुपुर शर्मा की हजरत मोहम्मद पर की गई ओछी टिप्पणी पर अपना विरोध जताया था। इनमें इंडोनेशिया और मलेशिया भी हैं। ये आसियान के सदस्य होने के साथ-साथ इस्लामिक देश भी हैं। आगे बढ़ने से पहले बता दें किआसियान दक्षिण पूर्वी एशियाई राष्ट्रों का संगठन है। इसका मकसद है आपस में आर्थिक विकास और समृद्धि को बढ़ावा देना। इसके सदस्य देश हैं- ब्रुनेई, बर्मा (म्यांमार), कंबोडिया, तिमोर-लेस्ते, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम।

चालू साल 2022 को 'भारत-आसियान मैत्री वर्ष' के रूप में मनाया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भारत की 'एक्ट ईस्ट नीति' और व्यापक हिंद-प्रशांत विजन के लिए भारत के विजन में आसियान की केंद्रीय भूमिका को रेखांकित करते रहे हैं. कोविड-19 का असर जब अपने चरम पर था तब भारत ने म्यांमार के लिए आसियान की मानवीय पहल के लिए दो लाख अमेरिकी डॉलर और आसियान के कोविड-19 रिस्पांस फंड के लिए दस लाख अमेरिकी डॉलर मूल्य की चिकित्सा सामग्री का योगदान दिया था। इसके चलते आसियान भारत के प्रति कृतज्ञता का भाव रखता है। भारत और आसियान के बीच व्यापक एवं बहुआयामी संबंध हैं और आगामी भारत-आसियान सम्मेलन में उच्चतम स्तर पर भारत-आसियान सामरिक साझेदारी के भविष्य को नई दिशा देने का अवसर प्रदान करेगा।

भारत-आसियान साझेदारी भले ही कोई बहुत पुरानी ना हो हो, लेकिन दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ भारत के रिश्ते दो सहस्राब्दियों से भी अधिक पुराने हैं। शांति एवं मित्रता, धर्म व संस्कृति, कला एवं वाणिज्य, भाषा और साहित्य के क्षेत्रों में अत्यंत प्रगाढ़ हो चुके ये चिरस्थायी रिश्ते अब भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया की शानदार विविधता के हर पहलू में मौजूद हैं।

भारत ने 1991 के बाद व्यापक बदलावों के साथ दुनिया के लिए अपने दरवाजे खोल दिए थे। तब ही से भारत की विदेश नीति में आसियान बेहद खास हो गया। भारत की आसियान को लेकर 'लुक ईस्ट' नीति एवं 'एक्ट ईस्ट' नीति ऊंची कारोबारी छलांग लगाने में अत्यंत मददगार साबित होते रहे हैं।

आसियान और भारत अब रणनीतिक साझेदार बन गए हैं। आसियान के प्रत्येक सदस्यी देश के साथ भारत की राजनयिक, आर्थिक और सुरक्षा साझेदारी बढ़ रही है। भारत और आसियान अपने समुद्रों को सुरक्षित और निरापद रखने के लिए मिलकर काम करते हैं। भारत-आसियान व्यापार और निवेश प्रवाह बढ़ता जा रहा है। आसियान भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है और भारत आसियान का सातवां सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है। भारत द्वारा विदेश में किए जाने वाले निवेश का 20 प्रतिशत से भी अधिक हिस्सास आसियान के ही खाते में जाता है। सिंगापुर की अगुवाई में आसियान भारत का प्रमुख निवेश स्रोत है। इस क्षेत्र में भारत द्वारा किए गए मुक्त व्यापार समझौते अपनी तरह के सबसे पुराने समझौते हैं और किसी भी अन्य क्षेत्र की तुलना में सबसे महत्वाकांक्षी हैं।

यही नहीं, इसके परिणामस्वरूप दक्षिण-पूर्व एशिया में पर्यटन के सबसे तेजी से बढ़ते स्रोतों में अब भारत भी शामिल हो गया है। इस क्षेत्र में रहने वाले 60 लाख से भी अधिक प्रवासी भारतीय, जो विविधता में निहित और गतिशीलता से ओत-प्रोत हैं, हमारे लोगों के बीच आपसी मानवीय जुड़ाव बढ़ाने की दृष्टि से अद्भुत हैं।

भारत-आसियान को बुद्ध धर्म भी जोड़ता है। अगर बात म्यांमार की करें तो भारत और म्यांमार के बीच 1600 किलोमीटर से ज्यादा लंबी साझा जमीनी और समुद्री सीमा है। दोनों के बीच मित्रता की जड़ें धार्मिक और सांस्कृवतिक परम्पराओं में निहित हैं और दोनों की साझा बौद्ध बिरासत हमें उतने ही घनिष्ठि रूप से बांधे हुए है जितना पुराना हमारा ऐतिहासिक अतीत है। गांधीजी ने कई बार म्यांमार का दौरा किया था। बालगंगाधर तिलक को तो कई साल के लिए रंगून भेजकर देश निकाला दे दिया गया था। भारत की आजादी के लिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आह्वान ने म्यां मार में बहुत से लोगों को उद्वेलित कर दिया था।

इस बीच,आसियान में मलेशिया भारत के तीसरे सबसे बड़े व्यासपारिक साझेदार के रूप में उभर कर सामने आया है और भारत में निवेश करने वाला आसियान देशों में से महत्व‍पूर्ण निवेशक है। हिंद महासागर में केवल 90 समुद्री मील की दूरी पर स्थित भारत और इंडोनेशिया दो सहस्त्राब्दियों से सभ्यता आधारित एक संबंध की निरंतरता को साझा करते हैं।चाहे यह ओडिशा में वार्षिक बालीजात्रा का उत्सव हो या रामायण और महाभारत की कहानियां जो कि पूरे इंडोनेशियाई भूक्षेत्र में दिखती हैं, यह अनोखे सांस्कृतिक तंतु एशिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्रों के लोगों को एक विशेष मैत्रीपूर्ण रिश्ते में बांधते हैं।

आज, रणनीतिक सहयोगियों के रूप में, भारत-इंडोनेशिया सहयोग राजनीतिक, आर्थिक, रक्षा एवं सुरक्षा, सांस्कृतिक एवं लोगों के बीच संबंधों जैसे सभी क्षेत्रों में फैला हुआ है। आसियान में इंडोनेशिया हमारा लगातार सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी बना हुआ है। भारत और इंडोनेशिया के बीच द्विपक्षीय व्यापार पिछले 10 वर्षों में 2.5 गुना बढ़ा है। इसके साथ ही,भारत और कंबोडिया के बीच परंपरागत और मैत्रीपूर्ण संबंध सभ्यताओं पर आधारित हैं जो गहराई से जुड़े हुए हैं। अंगकोर वाट मंदिर का भव्य ढांचा हमारे प्राचीन ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक संबंधों का एक शानदार गवाह और भव्य प्रतीक है। 1986-1993 के मुश्किल समय में अंग्कोर वाट मंदिर का पुनरुद्धार और पुनर्स्थापन कार्य करने में भारत गौरवान्वित हुआ। और सिंगापुर की संक्षिप्त में चर्चा किए बगैर हम भारत-आसियान संबंधों के साथ न्याय नहीं कर सकते। सिंगापुर पूर्व के साथ हमारे प्रवेश का मुख्यी मार्ग है, यह हमारा प्रमुख आर्थिक साझेदार है और महत्वपूर्ण सामरिक सहयोगी भी है जिसकी झलक कई क्षेत्रीय और वैश्विक मंचों में परिलक्षित होती है। 16 भारतीय शहरों से सिंगापुर के लिए सप्ताह में 240 सीधी उड़ानें उपलब्ध हैं। सिंगापुर की यात्रा करने वाले पर्यटकों की संख्या की दृष्टि से भारतीय पर्यटक समूह तीसरे स्थान पर है।

तो कुल मिलाकर बात यह है कि भारत के लिए आसियान देश व्यापारिक, सांस्कृतिक तथा सामरिक दृष्टि से बहुत खास हैं। भारत- आसियान सम्मेलन में उन तमाम बिन्दुओं पर विशेष रूप से चर्चा हुई, जिससे कि दोनों को दीर्घकालिक लाभ हो।

(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)

Nilmani Pal

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