सम्पादकीय

और क्या हाल हो रहे हैं!

Rani Sahu
21 Sep 2023 7:03 PM GMT
और क्या हाल हो रहे हैं!
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जैसे हर आदमी अमन-चैन से जीवनयापन कर रहा हो, वे हर किसी से छूटते ही पूछते थे – ‘और क्या हाल हो रहे हैं?’ दु:खी आदमी अचकचा जाता था और उसकी समझ में कतई नहीं आता था कि वह उनके इस प्रश्न का क्या उत्तर दे? विवशता में कुछ लोग सब ठीक है, कहकर पिंड छुड़ा लेते थे। एक तरह से और क्या हाल हो रहे हैं, उनका तकिया कलाम था, जिसे वे मौके बेमौके भी काम लेते थे। दरअसल वे मेरे साथी हैं। यदि मैंने कार्यालय से अवकाश ले लिया तो मेरे घर या मोबाइल पर यह पूछना नहीं भूलते थे कि ‘और क्या हाल हो रहे हैं?’ चाहे मैं बीमार हूं या किसी झंझट में फंसा हूं, वे सहज रूप से मुस्कान के साथ यह तकिया कलाम पूछना नहीं भूलते थे। कई साथियों ने तो उनका नाम ही ‘और क्या हाल हो रहे हैं?’ रख दिया था। उन्हें भी उन्हें बुलाने या देखते ही यह कहना याद आ जाता था कि और क्या हाल हो रहे हैं। वे झेंपकर यही कह पाते थे कि बस ठीक हैं। पूछने वाला यदि मजाकिया मूड में होता तो ठहाका लगाकर रह जाता था। उनका मेरा सहकर्मी होना मैं अपना सौभाग्य मानता था। कभी घर आते तो वही तकिया कलाम और मैं बाथरूम में भी होऊं तो यही हाल। मैंने उन्हें कई बार समझाया भी कि यार हालात की नाजुकता देखकर अपना तकिया कलाम स्थगित रखा करें और गाहे-बगाहे महीने-बीस दिन में इस तकिया कलाम को काम में लिया करें। मगर यह तो उनकी जुुबान पर चढ़ चुका था, इसलिए वे विवश व लाचार थे। और क्या हाल हो रहे हैं, पूछकर अन्तर्धान हो जाते थे। फिर उन्हें खोजना अत्यंत जटिल था। दफ्तर में एक दिन एक जरूरी काम वाला आया तो उन्होंने उस पर (अनजाने थे) भी वही मार दिया।
सामने वाला क्रोध में भुनभुनाया – ‘हाल बुरे हो रहे हैं, तभी तो आपके पास आना पड़ा है। पहले, यह बताइये आपने मेरी फाइल आगे भेजी या नहीं?’ वे बोले – ‘मैंने ऐसा क्या अनर्थ कर दिया जो क्या हाल हो रहे हैं, पूछ लिया तो!’ ‘जब मैं कह रहा हूं कि मेरा काम निकाल दें तो इस हाल-चाल की बात क्या है?’ वे कुछ नहीं कह पाये और टालने का अचूक उपाय सोचने लगे। सामने वाला भी तेज-तर्रार था, बोला – ‘कहां खो गये महाशय! मुझे देखो और मेरी बदहाली पर तरस खाकर मुझे ‘और क्या हाल हो रहे हैं’ का उत्तर देने लायक बनाओ।’ उनकी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई और वे जबरन मुस्कान के साथ बोले – ‘घबराते क्यों हैं, आपका भी काम करेंगे।’ सामने वाला यह ‘करेंगे’ का कोई भविष्य नहीं है, काम आज की तारीख में कराऊंगा। टालने का मिक्चर मैं नहीं पी पाऊंगा।’ इस बार वे बगले झांककर मेरी तरफ देखने लगते तो मैंने भी सहज रूप से कह दिया ‘और क्या हाल हो रहे हैं?’ उन्होंने नजरें झुका लीं और मुझे कोई जवाब नहीं दे पाये। इस बार वे खड़े हुए, अलमारी खोली और एक फाइल निकालकर अपनी टेबिल पर रखकर बोले ‘ज्यादा अन्ना हजारे मत बनो, आपका नोट कल जरूर लिख दूंगा।’ सामने वाला बोला – ‘यह शक्ति मुझे उनसे ही मिली है, इसलिए कोई रिश्वत की बात मत करना।’ ‘रिश्वत कौन मांग रहा है, लेकिन बाल-बच्चेदार हूं, कुछ वजन तो चाहिए न।’ – ‘वजन के लिए मैं बैठ जाता हूं आपकी टेबिल पर, मेरा वजन नब्बे किलो है।’ इस बार उन्हें अपनी कृष काया याद आ गई और बोले ‘अभी निकालता हूं, नाराज क्यों होते हो। मैं तो मजाक कर रहा था।’ उन्होंने तत्काल उसका काम कर दिया और उसे रवाना किया, मैंने फिर कहा ‘और क्या हाल हो रहे हैं।’ वे बोले कुछ नहीं और कमरे से निकल गए।
पूरन सरमा
स्वतंत्र लेखक

By: divyahimachal

Rani Sahu

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