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- और कितनी कच्ची

शिमला की कच्ची घाटी अपनी व्यथा को चित्रित करती हुई हिमाचल के शहरी विकास को प्रश्नांकित करती है। भले ही अब हम शहरी विकास का कोई नुक्ता पकड़ कर कोस लें या एक साथ कई परिसर खाली करवा दें, लेकिन उस अभिशप्त माहौल को दुरुस्त नहीं कर पाएंगे जिसके चलते राजनीति ने टीसीपी कानून की धज्जियां उड़ा दीं। पहली बार सुधीर शर्मा के मंत्रित्व में यह आभास हुआ था कि शहरी विकास मंत्रालय का भी कोई वजूद है, वरना अधिकांश मंत्रियों ने इस दायित्व को समझा ही नहीं। वर्तमान सरकार में भले ही पहले शहरी विकास मंत्री सरवीण चौधरी को विभाग से हटाना पड़ा, परंतु यह परिवर्तन भी रास नहीं आया। कच्ची घाटी के विध्वंसक नजारों से पहले हमें याद करना होगा कि किस तरह शहरी विकास योजनाओं का उल्लंघन करती व्यवस्था को प्रश्रय दिया गया। कमोबेश हर चुनाव से पूर्व यह जुस्तजू रही कि किसी तरह शहरी परिधि से गांव के कंकाल को अलग करके शहरीकरण को शर्मिंदा किया जाए। अगर शहरी विकास के साथ अमृत योजना या स्मार्ट सिटी परियोजनाएं न जुड़तीं, तो हिमाचल आंख मूंदे शहरीकरण को नजरअंदाज करता रहा है।
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