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- और कितने हर्ष महाजन
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By: divyahimachal
हिमाचल कांग्रेस का एक और कार्यकारी अध्यक्ष भाजपा में शामिल हो गया, लेकिन पार्टी की चुनाव मशीनरी को न खोने की परवाह, न पाने की इच्छा। हर्ष महाजन का भाजपा में जाना कांग्रेस की खाना खराबी का संकेत है और चुनाव से ठीक पहले ताबूत की कील की तरह पार्टी को घायल कर रहा है। आश्चर्य है कि जो पार्टी पिछले उपचुनावों में तीन विधानसभा क्षेत्रों और एक संसदीय क्षेत्र जीत कर आगे दिखाई दे रही थी, उसके संगठन की दुर्दशा इस हद तक पहुंच गई कि हर्ष महाजन जैसा वरिष्ठ नेता अलविदा कह रहा है। बेशक इस हालत के कई कर्णधार हैं, लेकिन जिस तरह संगठन को शक्ल देते हुए दिल्ली दरबार के तथाकथित नेता आस्तीन चढ़ा रहे थे, उनका मुलम्मा उतर गया।
डुबोने की वर्तमान स्थिति के सबसे बड़े कर्णधार प्रदेश प्रभारी राजीव शुक्ला को माना जाए या हर्ष महाजन के आरोपों पर गौर करते हुए हिमाचल के मां-बेटे पर गौर किया जाए। जो भी हो वसंत आने से पहले कांग्रेस की पतझड़ अब शायद ही रुके, क्योंकि उम्मीदवारों की सूची की पेचीदगियां बता रही हैं कि कहां कितना आक्रोश बाकी है। हालांकि हम यह नहीं कह सकते कि हर्ष महाजन पर ऐसी कौन सी पुष्प वर्षा भाजपा कर पाएगी। जो व्यक्ति पिछले चुनावों में अपनी गैरहाजिरी दिखा चुका हो, उसका मतदाताओं से संपर्क कितना सुदृढ़ होगा या भाजपा फिर से ऐसे कांग्रेसियों को पुनस्र्थापित करने का जोखिम उठाएगी। भाजपा का रिवाज बदलने को उतारू ऐसे नेताओं के दामन में दाग नहीं है यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन भगवाधारी होकर हर्ष महाजन की तोपें जिस तरह वीरभद्र सिंह परिवार की तरफ घूमी हैं, उसका अर्थ समझना श्रेयस्कर होगा। जो नेता वीरभद्र सिंह के चुनाव का राज्यस्तरीय प्रबंधन करता रहा हो, उसे प्रतिभा सिंह व विक्रमादित्य सिंह से शिकायत क्यों हुई। क्या राजनीति के इस घराने को अब अपने लिए 'राजतिलक' की जगह तलवार निकालने की नौबत आ पड़ी है। क्या पार्टी को रामलाल ठाकुर के आंसुओं का बोध नहीं हुआ या पर्दे के पीछे चीखते संदर्भों की गूंज नहीं सुनाई दी।
कांगे्रस के बीच व्यक्तित्व की लड़ाई स्पष्ट है और बिना जीते सत्ता के केंद्र में शक्तिशाली होने की लालसा भी दिखाई दे रही है। टिकटों की कतार में जो पेंच बचे हैं, उनसे आर पार होने की महत्त्वाकांक्षा अगर झगड़े पर आ गई, तो और कितने हर्ष महाजन निकलेंगे, कोई अंदाजा नहीं लगा पाएगा। हालांकि कांग्रेस के लिए यह समझना आसान है कि किस विधानसभा क्षेत्र में किसकी लोकप्रियता, मेहनत व राजनीतिक पलड़ा भारी है, फिर भी फसाद खड़े करके, पार्टी की दर्शकदीर्घा आनंदित है। अगर फंसी हुई सीटों में अवज्ञा के सुर नहीं भांपे गए, तो पार्टी को टूट फूट से भगवान भी नहीं बचा सकता। भाजपा का मिशन रिपीट इस ताक में है कि कब कांग्रेस का छिक्का टूटे और बने बनाए समीकरण बदल जाएं। दूसरी ओर टिकट कटाई के अभिशाप से भाजपा भी शायद ही मुक्त होगी। तीस विधायकों के टिकट कटने की घोषणा अगर 'अवांछित व रुष्ठ कांग्रेसियों' के आगमन से पूर्ण होती है, तो उस युवा पीढ़ी का क्या होगा जो अपनी ही सत्ता के बावजूद पार्टी की दरियां बिछा-बिछा कर खुद को संभावित प्रत्याशी घोषित कर चुकी है।
रोचकता तो भाजपा की टिकट कटौती से भी पैदा होगी, लेकिन कांग्रेस छोडक़र फिलहाल कुछ नेता भाजपा का रोमांच बढ़ा रहे हैं। हर्ष महाजन का भाजपा में आना कांग्रेस की भीतरी अस्थिरता को पुख्ता कर गया और अगर टिकट आबंटन व नेतृत्व के असंतुलन से पार्टी के भीतर चौराहे बने, तो मिशन रिपीट के रक्षा कवच पहनाने कई कांग्रेसी नेता वर्तमान सत्ता को अपनी शक्ति दे सकते हैं। अब सवाल यही है कि क्या कांग्रेस आने वाले समय में हर्ष महाजन या पवन काजल जैसे नेताओं को रोकने का प्रयास करेगी या प्रदेश तथा राष्ट्रीय संगठन अपनी लुटिया डुबोने के लिए हिमाचल में और प्रयोग करेंगे।
Rani Sahu
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