सम्पादकीय

महात्मा गांधी की जयंती पर टैगोर का एक ज़रूरी सबक जो आलोचना और निंदा का अंतर समझाता है

Rani Sahu
2 Oct 2021 12:30 PM GMT
महात्मा गांधी की जयंती पर टैगोर का एक ज़रूरी सबक जो आलोचना और निंदा का अंतर समझाता है
x
15 जनवरी, 1934 को दोपहर 2 बजकर 13 मिनट पर देश में एक भयानक भूकंप आया

नीरज पाण्डेय 15 जनवरी, 1934 को दोपहर 2 बजकर 13 मिनट पर देश में एक भयानक भूकंप आया, जिसकी रिक्टर स्केल पर 8 से भी ज्यादा तीव्रता थी. इस भूकंप में 10 से 12 हज़ार लोगों की जान गई, जिनमें करीब 7 हज़ार अकेले बिहार से थे. आज भी बिहार के कई गांवों में मकानों की पुरानी दीवारें तिरछी या खिसकी हुई दिखती हैं, जिसका कारण उसी भूकंप को बताया जाता है. लेकिन, उस भूकंप के बाद भी एक बयान की वजह से देश में कुछ दिनों तक झटके महसूस किए गए. वो बयान महात्मा गांधी का था. भूकंप को लेकर प्रेस में महात्मा गांधी का एक बयान आया था कि 'ये दलितों के प्रति भेदभाव के बदले में ईश्वर का दंड है'. वर्ष 1934 में ही महात्मा गांधी की हत्या की पहली कोशिश हुई थी (कहा जाता है कि ऐसे कुल 6 प्रयास हुए थे).

पुणे में उनके ऊपर बम से हमला हुआ था. गांधी जी और कस्तूरबा जिस कार में थे, वो बच गई, जबकि उनके आयोजक जिस कार में सवार होकर आगे-आगे जा रहे थे, वो धमाके में उड़ गई. गांधी जी उस वक्त देश भर में दलितों के उत्थान को लेकर आंदोलन कर रहे थे. ऐसे ही एक आयोजन में वो पुणे में थे. बाद में ये तथ्य भी सामने आया कि बापू पर हमला करने वाला एक 'सनातनी' था. हालांकि गांधी जी ने इसपर कहा कि 'मुझे नहीं लगता कोई समझदार सनातनी ऐसी सनक दिखाने का साहस करेगा.' इस घटना की सत्यता चाहे जो हो, इसमें कोई संदेह नहीं कि दलित उत्थान के लिए महात्मा गांधी का आंदोलन शुरू होने के बाद बापू की सुरक्षा ख़तरे में थी.
महात्मा गांधी वर्ष 1934 के भूकंप के बाद बिहार भी गए थे. आज गांधी जयंती के मौके पर बिहार सरकार ने भी महात्मा गांधी के वर्ष 1934 के बिहार दौरे की खुफिया रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी है, जिसे आप इस लिंक https://archives.bihar.gov.in/pdfjs/web/viewer.jsp पर जा कर पढ़ सकते हैं. मिसाल के तौर पर 29 अप्रैल 1934 की एक रिपोर्ट 'Mr. Gandhi's Visit To Gaya' में पीसी टैलेंट्स, बिहार और उड़ीसा सरकार के चीफ सेक्रेट्री लिखते हैं, 'चतरा के रास्ते में जब मिस्टर गांधी शेरघाटी पहुंचे तो कुछ लोगों ने उनके पास आकर पंडाल में चलने का निवेदन किया. लेकिन मिस्टर गांधी ने मना कर दिया, क्योंकि ये उनके तय कार्यक्रम में शामिल नहीं था.' इस खुफिया रिपोर्ट के पहले भाग के पहले ही पन्ने पर 2 फरवरी, 1934 की रिपोर्ट देखिए. कटक, पुरी और बालासोर के एसपी ने लिखा है- 'गांधी के विरुद्ध कई जगहों पर बल पूर्वक प्रदर्शन किए जा रहे हैं. इसमें सनातनिस्ट पार्टी और लेबर पार्टी के लोग शामिल हैं. शांति को ख़तरा होने की स्थिति में ऐसे मौकों पर धारा 144 लगाई जा सकती है.'
जब गुरुदेव बोले- महात्मा के बयान का विरोध होना चाहिए
खैर, उसी वक्त भूकंप को 'ईश्वर के दंड' से जोड़ने वाले महात्मा गांधी के बयान ने भी खासा तूल पकड़ लिया था. इसी को लेकर 28 जनवरी 1934 को रवींद्रनाथ टैगोर ने गांधी जी को एक पत्र लिखा. 'महात्मा जी, मुझे आपके बयान पर यकीन नहीं हो रहा है. लेकिन, अगर ये वास्तव में आपके विचार हैं, तो मुझे लगता है इसका विरोध किया जाना चाहिए.' साथ में टैगोर ने एक लेख भी भेजा और उसे प्रकाशित करने का निवेदन किया. इस चिट्ठी में टैगोर ने ये भी लिखा कि 'मैं आपके बारे में कहे जाने वाली किसी तथ्यहीन बात को लेकर आपकी आलोचना नहीं करूंगा.'
महात्मा गांधी तब 'हरिजन', 'हरिजन बंधु' और 'हरिजन सेवक' नाम से अलग-अलग पत्रिकाएं निकाल रहे थे. हरिजन अंग्रेजी में, हरिजन बंधु गुजराती में और हरिजन सेवक हिंदी में. 'हरिजन सेवक' का प्रकाशन फरवरी, 1933 में दिल्ली में शुरु हुआ था, जिसके संपादक वियोगी हरि थे. महात्मा गांधी ज्यादातर अंग्रेजी और गुजराती में लिखा करते थे. यही वजह है कि 'हरिजन सेवक' में अनुवाद छपता था. अनुवाद की आसानी के लिए सितंबर 1940 में 'हरिजन सेवक' का भी प्रकाशन पुणे से शुरू कर दिया गया, जहां से अंग्रेज़ी का हरिजन पहले से ही छप रहा था.
खैर, टैगोर ने महात्मा गांधी से 'हरिजन' में अपना जवाब छापने का निवेदन किया था. जब टैगोर ने लिखा कि वो गांधी के विरुद्ध किसी भी तथ्यहीन बात को लेकर आलोचना नहीं करेंगे, तभी उन्होंने ये भी लिखा कि 'मैं खुद अपना जवाब प्रेस में नहीं भेज रहा हूं.' दो फरवरी 1934 को महात्मा गांधी ने टैगोर को चिट्ठी लिखी- 'गुरुदेव जैसा कि आपने इच्छा जताई है, इसका प्रकाशन होगा. इसके बाद आप चाहें तो अपना विरोध भी प्रकाशित करवा सकते हैं.'
गांधी के अखबार में छपा गांधी के विरोध में लेख
16 फरवरी, 1934 को गुरुदेव का बयान 'हरिजन' में एक लेख के रूप में प्रकाशित हुआ. सब्यसांची भट्टाचार्या ने बहुत मेहनत करके एक किताब संपादित की है, जिसका नाम है- 'The Mahatma and The Poet: Letters and Debates between Gandhi and Tagore 1915-1941' इसमें महात्मा गांधी और गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के बीच जिन पत्रों का आपसी व्यवहार हुआ है, उन्हें शामिल किया गया है. इसी पुस्तक में टैगोर के इस लेख का भी ज़िक्र है. हरिजन में प्रकाशित अपने लेख में टैगोर कहते हैं, 'मुझे ये जानकर बड़ा दुखद आश्चर्य हुआ कि महात्मा गांधी ने भूकंप के लिए उन लोगों को ज़िम्मेदार ठहराया है जो छुआछूत को मानते हैं और कहा है कि उन्हीं की वजह से बिहार के कुछ इलाकों में ईश्वर का प्रकोप सामने आया.
ये और ज्यादा अफ़सोसनाक इसलिए भी है क्योंकि देश के एक बड़े हिस्से ने इस तरह के अवैज्ञानिक सोच को स्वीकार भी कर लिया है'. दाद देनी होगी कि टैगोर ने गांधी के बयान को शानदार तर्कों के साथ अनुचित ठहराया और इसे गांधी ने प्रकाशित भी कराया. गुरुदेव आगे लिखते हैं- 'हैरानी की बात है कि महात्मा जी ने एक प्राकृतिक आपदा को लेकर जो बयान दिए हैं, वो उनके विरोधियों के मनोविज्ञान को भी सूट करता है. मुझे हैरानी नहीं होगी अगर वो महात्मा जी और उनके समर्थकों को ही इस भूकंप के लिए ज़िम्मेदार ठहराएंगे. फिर भी, पूरा यकीन है कि हमारी गलतियां चाहे जितनी ताकतवर हो जाएं, उनमें उस संरचना को नीचे खींचने की ताकत नहीं आएगी, जो हमारा निर्माण करती है.'
टैगोर के इस लेख के साथ ही महात्मा गांधी का जवाब भी 'हरिजन' में प्रकाशित हुआ. महात्मा गांधी लिखते हैं- 'अगर गुरुदेव को लगता है कि मैं गलत हूं तो उन्हें पूरा अधिकार है कि अपना विरोध दर्ज कराएं. उनके प्रति मेरा आदर मुझे सिखाता है कि मैं पूरे धैर्य से उन्हें सुनूं. लेकिन उनके बयान को 3 बार पढ़ने के बावजूद मैं अपने उस कहे गए पर कायम हूं. मैं बाढ़, सूखा, भूकंप जैसी आपदा को इंसान की नैतिकता से भी जोड़कर देखता हूं. इसीलिए मैंने नैसर्गिक तौर पर माना कि भूकंप छुआछूत जैसे पाप का नतीजा है. निश्चित रूप से सनातनी ऐसा मान सकते हैं कि भूकंप की वजह मेरा वो अपराध है, जो मैंने अस्पृश्यता के विरुद्ध बोलकर किया है. मैं पश्चाताप और आत्मशुद्धि का हिमायती हूं. मैं बिहार के भूकंप और छुआछूत जैसे पाप के बीच कोई संबंध सीधे तौर पर साबित नहीं कर सकता क्योंकि ये मेरी स्वाभाविक सोच है. लेकिन, ये मेरी कायरता होगी कि हास्यास्पद ठहराए जाने के डर से मैं अपने विचार अपने करीबी लोगों से साझा ना करूं.' महात्मा गांधी ने आगे और स्पष्टता के साथ अपनी बात कही- 'गुरुदेव के इस भरोसे को मैं सही नहीं मानता कि हमारी गलतियां चाहे जितनी ताकतवर हो जाएं, वो हमारा निर्माण करने वाली संरचना को खींचकर नीचे नहीं ला सकतीं. मैं मानता हूं कि हमारी गलतियां इन आपदाओं से कहीं ज्यादा ताकत के साथ उसे नुकसान पहुंचा सकती हैं.'
महात्मा ने अपमानित को सम्मान दिया, उनकी जय हो
इसके पहले 6 फरवरी, 1934 को गुरुदेव टैगोर ने महात्मा गांधी के पक्ष में एक अपील भी जारी की थी. शांतिनिकेतन से जारी किए गए इस बयान में टैगोर लिखते हैं- 'आलोचना और निंदा में फर्क होता है. मैंने खुद महात्मा जी के उस विचार की आलोचना की, जिसमें उन्होंने भूकंप को छुआछूत से जोड़कर देखा. लेकिन, धार्मिक आस्था के प्रति उनकी ईमानदारी का मैं सम्मान करता हूं. सदियों से धैर्य के साथ अपने सिर पर अपमान का बोझ उठाए लोगों के मन में उन्होंने आत्मसम्मान का भाव भरा है. ऐसा चमत्कार करने वाले व्यक्ति के प्रति आदर के अलावा कुछ और हो ही नहीं सकता'. अपने इस बयान के आखिर में गुरुदेव ने गांधी जी से बंगाल आने की अपील भी की और उनके जीवन को भारत के लिए मूल्यवान बताया. ये थी गांधी और टैगोर के रिश्ते की बुनियाद. दोनों यूं ही एक दूसरे को महात्मा और गुरुदेव नहीं कहते थे. बाकी कहने वाले तो दोनों के बारे में कुछ भी कहते हैं.


Next Story