सम्पादकीय

यूक्रेन संकट में हमारे लिए एक अहम सबक यही है कि हमें ऊर्जा के मोर्चे पर अपनी रणनीति बदलनी होगी

Rani Sahu
7 March 2022 3:09 PM GMT
यूक्रेन संकट में हमारे लिए एक अहम सबक यही है कि हमें ऊर्जा के मोर्चे पर अपनी रणनीति बदलनी होगी
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यूक्रेन पर रूस के हमले ने हमारे समक्ष ऊर्जा का संकट खड़ा कर दिया है

भरत झुनझुनवाला।

यूक्रेन पर रूस के हमले ने हमारे समक्ष ऊर्जा का संकट खड़ा कर दिया है। कुछ समय पहले अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का दाम लगभग 80 डालर प्रति बैरल था। तब देश में पेट्रोल का दाम लगभग 90 रुपये प्रति लीटर था। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यदि यूक्रेन संकट लंबा खिंचा तो कच्चे तेल का दाम 150 डालर प्रति बैरल तक जा सकता है। तब देश में पेट्रोल की दर बढ़कर 130 रुपये प्रति लीटर तक जा सकती है। यह हमारे आर्थिक विकास के लिए दो प्रकार से नुकसानदेह होगा। पहला यह कि तेल के आयात हेतु हमें अधिक मात्रा में डालर अर्जित करने के लिए औने-पौने दाम पर निर्यात करना होगा। दूसरा यह कि आम आदमी को महंगा पेट्रोल खरीदना होगा। ऐसी स्थिति में उसकी अन्य आवश्यक मदों में खपत कम होगी। इसलिए हमें इस ऊर्जा संकट से निपटने के उपाय पर विचार करना चाहिए। इसका एक उपाय है कि हम ऊर्जा के घरेलू स्रोतों का विकास करें। तब हमें आयातित ईंधन पर निर्भर नहीं रहना होगा। इस दिशा में सरकार ने सौर ऊर्जा को बढ़ाने में सफलता हासिल की है। फिर भी एक मोटे आकलन के अनुसार 2050 में हमारी ऊर्जा की खपत में सौर ऊर्जा का हिस्सा सिर्फ 12 प्रतिशत के करीब रहेगा। इसलिए सौर ऊर्जा जरूरी होते हुए भी समाधान नहीं है।

दूसरा उपाय पनबिजली का है, जिसके तमाम पर्यावरणीय दुष्प्रभाव हैं। इसका दायरा बढ़ाने से जितना हमारे नागरिकों के जीवन स्तर में ऊर्जा की खपत बढऩे से सुधार होगा उससे ज्यादा नुकसान उन्हीं के जीवन स्तर में पर्यावरण की क्षति से होगा। इसके कारण विस्थापन एवं प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति उत्पन्न होती है। तीसरा उपाय एथनाल है। हम गन्ने से ईंधन बना सकते हैं, परंतु यहां हमारी खाद्य सुरक्षा का प्रश्न है। जब हम कृषि भूमि से एथनाल का उत्पादन करेंगे तो उसी अनुपात में गेहूं, धान और सब्जी का उत्पादन कम हो जाएगा। इससे हमारी खाद्य सुरक्षा प्रभावित होगी। साथ ही अति दोहन से हमारी भूमि की गुणवत्ता में भी गिरावट आएगी।
चौथा उपाय थोरियम आधारित परमाणु ऊर्जा का है। परमाणु ऊर्जा बनाने के लिए यूरेनियम का उपयोग किया जाता है, जो हमारे पास कम मात्रा में उपलब्ध है। यूरेनियम का विकल्प थोरियम है, जो हमारे पास पर्याप्त मात्रा में है, लेकिन इससे ऊर्जा बनाने की तकनीक का विकास नहीं को सका है। पिछले 20 वर्षों से हम इसमें विशेष प्रगति नहीं कर पाए हैं, जबकि चीन शीघ्र ही थोरियम आधारित परमाणु ऊर्जा के प्रायोगिक संयंत्र का परीक्षण करने जा रहा है। यदि थोरियम पर सरकार विशेष ध्यान दे तब भी इसके विकास में 15 वर्ष लग जाएंगे और तब तक इस स्रोत से हमारी ऊर्जा की पूर्ति होना असंभव है। अत: अपनी ऊर्जा सुरक्षा को हम घरेलू ऊर्जा के उत्पादन को बढ़ाकर स्थापित नहीं कर सकते हैं। हमारे पास एकमात्र विकल्प है कि हम अपनी ऊर्जा की खपत कम करें।
नेचर पत्रिका के अनुसार विश्व के ऊपरी तबके की 10 प्रतिशत जनता द्वारा दुनिया की 50 प्रतिशत ऊर्जा खपत होती है। जाहिर है कि यदि हम ऊपरी वर्ग द्वारा ऊर्जा की खपत में कटौती करें तो ऊर्जा की खपत में भारी कमी आ सकती है। इसी पत्रिका के अनुसार निजी कार एवं बाइक का उपयोग ऊर्जा की खपत का एक प्रमुख स्रोत है। अत: पेट्रोल की अधिक खपत करने वालों के लिए उसकी अलग दर निर्धारित कर उसमें वृद्धि की जाए। उससे अर्जित टैक्स का उपयोग बस एवं मेट्रो सेवा के विस्तार के लिए किया जाए। तब ऊर्जा की खपत में गिरावट आएगी और मेट्रो आदि के विस्तार से आम आदमी के जीवन स्तर में सुधार भी होगा। मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि निजी वाहन की तुलना में मेट्रो से सफर करना ज्यादा उत्तम होता है, क्योंकि तब आप अपने समय का उपयोग अखबार आदि पढऩे के लिए कर सकते हैं। इसलिए सरकार को चाहिए कि ऊपरी वर्ग द्वारा एक सीमा से अधिक ऊर्जा की खपत पर टैक्स लगाए
ऊर्जा की खपत कम करने का दूसरा उपाय है कि हम सेवा क्षेत्र को महत्व दें। सेवा क्षेत्र की तुलना में मैन्यूफैक्चरिंग में दस गुना बिजली की खपत होती है। जैसे स्टील प्लांट में भारी मात्रा में बिजली लगती है, जबकि साफ्टवेयर प्रोग्राम बनाने में बिजली की खपत न्यून होती है। यदि हम 'मेक इन इंडिया' के स्थान पर 'सर्व्ड फ्राम इंडिया' का नारा दें तो उतनी ही आय को अर्जित करने में केवल दसवें हिस्से के बराबर ऊर्जा की जरूरत होगी।
ऊर्जा की कम खपत करने का तीसरा उपाय है कि ऊर्जा के उपयोग में सुधार करें। जैसे कार का न्यूनतम एवरेज अधिक हो तो उतने ही पेट्रोल से कार से हम ज्यादा दूरी का सफर कर सकते हैं। इसी तरह साधारण बल्ब के स्थान पर एलईडी बल्ब के उपयोग को बढ़ाया जाए। यदि हम एलईडी बल्ब का उपयोग करने के साथ-साथ सड़कों पर बल्ब की संख्या में भी वृद्धि करते जाएंगे तो कुल ऊर्जा की खपत कम नहीं होगी। इसलिए कुशलता में सुधार आवश्यक है, परंतु यह भी हमारी समस्या का मूल समाधान नहीं है। अंतत: हमको ऊर्जा की खपत को ही कम करना होगा। इसका सर्वश्रेष्ठ उपाय है कि हम ऊर्जा की प्रोग्रेसिव प्राइसिंग करें यानी अधिक खपत करने वालों के लिए बिजली और पेट्रोल के दाम में वृद्धि करें। यह भी विचारणीय है कि क्या ऊर्जा की खपत से हमारा जीवन स्तर वास्तव में सुधरेगा? अर्थशास्त्री अमत्र्य सेन कहते हैं कि कम खपत में साधु सुखी होता है। यानी खपत और सुख का संबंध अनिवार्य नहीं है। हम देखते हैं कि जिन लोगों की खपत अधिक होती है, उन्हें स्वास्थ्य आदि समस्याएं भी अधिक परेशान करती हैं। आधुनिक अर्थशास्त्र मानता है कि खपत से सुख अर्जित होता है, लेकिन यह सही नहीं है। साधु कम खपत में सुखी है, क्योंकि उसका बाहरी जीवन उसके अंतर्मन के सामंजस्य में है। वहीं ऊपरी वर्ग अधिक खपत में भी दुखी है, क्योंकि उसके बाहरी जीवन का अंतर्मन से विरोध रहता है। इसलिए हमें इस भ्रम से निकलना चाहिए कि ऊर्जा की अधिक खपत में वृद्धि से ही हमारा जीवन स्तर सुधरता है। हमें एक नए अर्थशास्त्र की रचना करनी होगी, जिसमें हम मनुष्य के सुख को प्राथमिक माने, न कि उसकी खपत को। इसके लिए हमें ऊर्जा की खपत बढ़ाने के बजाय कम ऊर्जा में बेहतर जीवन स्तर हासिल करने के उपायों पर ध्यान देना होगा। जब तक हम इस दिशा में कदम नहीं उठाएंगे तब तक हमारी ऊर्जा की खपत बढ़ती रहेगी और हमारे समक्ष ऊर्जा का संकट बना रहेगा।
Rani Sahu

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