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अमेरिका के अप्रैल के मुद्रास्फीति दर संबंधी आंकड़े पर दुनिया भर की नजर थी
By NI Editorial
अगर महंगाई घटती, तो उससे सारी दुनिया राहत महसूस करती, क्योंकि तब शायद अमेरिकी फेडरल रिजर्व ब्याज दर बढ़ाने की अपनी नीति में कुछ ढिलाई दिखाता। लेकिन मुद्रास्फीति के ताजा आंकड़ों से यह जाहिर हुआ कि अब तक यह नीति महंगाई रोकने में नाकाम है।
अमेरिका के अप्रैल के मुद्रास्फीति दर संबंधी आंकड़े पर दुनिया भर की नजर थी। खुद अमेरिका में इसका बेसब्री से इंतजार किया जा रहा था। अमेरिका के कई बाजार विशेषज्ञों ने कहा था कि वहां मुद्रास्फीति की दर मार्च में अपने चरम बिंदु पर पहुंच चुकी है। इसलिए अब इसमें गिरावट आने की शुरुआत होगी। अगर ऐसा होता, तो उससे सारी दुनिया राहत महसूस करती, क्योंकि तब शायद अमेरिकी सेंट्रल बैंक- फेडरल रिजर्व ब्याज दर बढ़ाने की अपनी नीति में कुछ ढिलाई दिखाता। इस नीति के कारण दुनिया भर के बाजारों में उथल-पुथल मची हुई है। बहरहाल, बुधवार को जब मुद्रास्फीति की आंकड़े जारी हुए, तो उससे यह जाहिर हुआ कि अब तक यह नीति महंगाई रोकने में नाकाम है। कुल मुद्रास्फीति दर में 0.3 प्रतिशत की और बढ़ोतरी हो गई। खास चिंता का पहलू यह सामने आया कि कोर इन्फ्लेशन में 0.6 प्रतिशत तक पहुंच गया। कोर इन्फ्लेशन में ईंधन और खाद्य पदार्थों की महंगाई दर को शामिल नहीं किया जाता है, क्योंकि इन दोनों चीजों के बाजार भाव को अस्थिर प्रकृति का माना जाता है। जबकि कोर इन्फ्लेशन बढ़ने का मतलब है कि महंगाई व्यापक रूप से बढ़ रही है। तो अब प्रश्न उठा है कि अमेरिकी नीति निर्माता क्या करेंगे? एक बात तो तय है कि वे ब्याज दरें बढ़ा कर बाजार में मुद्रा की उपलब्धता घटाने की उनकी नीति जारी रहेगी।
इसका परिणाम होगा कि निवेशकों को डॉलर में निवेश अधिक सुरक्षित और लाभदायक महसूस होगा और वे उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों से अपना पैसा निकालेंगे। उस वजह से उन देशों के शेयर सूचकांकों और उनकी मुद्रा के मूल्य में भारी गिरावट जारी रहेगी। भारत में यह रूझान जारी है और इसका असर गुरुवार को भी देखने को मिला। तो सामने यह आ रहा है कि दुनिया में आर्थिक उथल-पुथल मची हुई है। इसके बीच विश्व बैंक ने उचित ही ये चेतावनी दी है कि श्रीलंका के दिवालिया होने जैसी जो स्थिति बनी, वह महज एक शुरुआत है। बैंक के मुताबिक इस समय दुनिया के निम्न और मध्यम आय 107 देश वैसी मुश्किलें झेल रहे हैं, जिनका परिणाम श्रीलंका जैसी हालत के रूप में सामने आ सकता है। वैसे भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्था के लिए भी संकेत अच्छे नहीं हैं।
Tagsअमेरिका
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Gulabi Jagat
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