- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- चिकित्सा जगत के लिए एक...
x
दुनिया भर में रिकॉर्ड कोरोना वैक्सीनेशन के बीच कोविड-19 के घटते मामले महामारी से राहत के संकेत हैं
दुनिया भर में रिकॉर्ड कोरोना वैक्सीनेशन के बीच कोविड-19 के घटते मामले महामारी से राहत के संकेत हैं. बीते दो महीनों में न सिर्फ संक्रमण के मामले कम रहे बल्कि इस महामारी से होने वाली मौतों में भी भारी कमी आई. जहां देश-दुनिया के लोग कोविड-19 महामारी से उबरने में जुटे हुए हैं, वहीं वैज्ञानिक कोरोना जनित एक और संभावित महामारी को लेकर ग्लोबल कम्युनिटी को आगाह कर रहे हैं.
महामारी विशेषज्ञ इस महामारी को 'पोस्ट-कोविड सिंड्रोम', 'एक्यूट कोविड' या 'लॉन्ग कोविड' नाम दे रहे हैं. पोस्ट-कोविड सिंड्रोम से पीड़ित लोगों की भारी संख्या के मद्देनजर इसे अपने आप में एक 'खामोश महामारी' करार दिया जा रहा है. कोरोना महामारी की शुरुआत में गंभीर मामलों से निपटने की प्राथमिकता में पोस्ट कोविड सिंड्रोम या लॉन्ग कोविड की अनदेखी हुई.
लेकिन, फिलहाल इसे सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या के रूप में पहचाना जा चुका है. हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने लॉन्ग कोविड या पोस्ट कोविड सिंड्रोम की पहली बार एक आधिकारिक क्लीनिकल परिभाषा जारी की है. कोविड-19 महामारी के संक्रमण से जूझने के बाद, उसके कुछ लक्षणों के साथ ही जीवन जीने की स्थिति को पोस्ट-कोविड सिंड्रोम नाम दिया गया है.
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक पोस्ट कोविड सिंड्रोम या लॉन्ग कोविड वह स्थिति है, जिसमें कोविड-19 का संक्रमण होने के बाद काफ़ी लंबे समय तक उसके लक्षण या प्रभाव बरक़रार रहते हैं.
संक्रमण से ठीक होने के बाद भी लक्षणों का लॉन्ग-टर्म अनुभव यानी लॉन्ग कोविड
इसी साल जून में यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लंदन की तंत्रिका विज्ञानी एथेना अक्रामी ने 3,500 से ज्यादा लोगों पर किए अध्ययन में पोस्ट-कोविड सिंड्रोम के 200 से अधिक लक्षण पाए थे. इनमें बुखार, थकान, उल्टी, सूखी खांसी, याददाश्त कमजोर होना, सांस लेने में तकलीफ, अनिद्रा, गंध और स्वाद संबंधी समस्याएं, सिरदर्द, डिप्रेशन और एंग्जायटी जैसी मानसिक समस्याएं और मांसपेशीय-कंकालीय दर्द वगैरह शामिल हैं. इन लक्षणों की तीव्रता हमेशा एक जैसी नहीं रहती, लोग बीच-बीच में थोड़ा बेहतर महसूस करते हैं.
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि किसी भी व्यक्ति को कोरोना संक्रमण से उबरने में कम से कम 14 दिन का समय लगता है, लेकिन अगर इसके बाद भी संक्रमण के लक्षण रहते हैं तो उसे गंभीर माना जाता है. कुछ वैज्ञानिक के लिए लॉन्ग कोविड की स्थिति कोई हैरान करने वाली बात नहीं थी. संक्रमण ठीक होने के बाद लंबे समय तक लक्षण बने रहना कई मामलों में पहले भी देखा गया है.
दरअसल, मायेल्जिक एन्सेफलाइटिस या क्रॉनिक फटीग सिंड्रोम (एमई/सीएफ़एस) वायरस संक्रमणों के बाद उपजी एक स्थिति है जिसमें लोग सिरदर्द, थोड़े से काम के बाद काफी थकान जैसे लक्षणों का अनुभव करते हैं.
वैज्ञानिकों के मुताबिक अगर किसी व्यक्ति में चार हफ्तों तक संक्रमण के लक्षण बरक़रार रहते हैं तो उसे एक्यूट कोविड, 4 से 12 हफ्तों तक लक्षण रहते हैं तो ऑनगोइंग सिम्प्टोमैटिक कोविड और 12 हफ्तों के बाद भी कोरोना संक्रमण के लक्षण होने पर उसे पोस्ट-कोविड सिंड्रोम या लॉन्ग कोविड कहा जाता है. इसी साल जून में नेचर जर्नल में प्रकाशित एक शोध रिपोर्ट के मुताबिक वायरस या बैक्टीरिया से संक्रमित हो चुके 253 लोगों पर हुए एक अध्ययन में देखा गया था कि तकरीबन 12 प्रतिशत लोगों में 6 महीने बाद भी थकान, मांसपेशीय-कंकालीय दर्द, तंत्रिका सम्बंधी समस्या और मानसिक सेहत में गड़बड़ी जैसे लक्षण मौजूद थे. यानी पोस्ट-कोविड सिंड्रोम संक्रमण-उपरांत लक्षण हो सकता है.
लान्सेंट में प्रकाशित एक शोध रिपोर्ट के मुताबिक चीनी वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया कि अस्पताल से डिस्चार्ज होने के 12 महीने बाद कोरोना के हल्के लक्षणों वाले मरीजों में से 20 से 30 प्रतिशत और गंभीर मरीजों में 54 प्रतिशत अब तक फेफड़ों से जुड़ी समस्याओं से जूझ रहे हैं. वहीं हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने अपने अध्ययन में पाया कि कोविड-19 संक्रमितों में मधुमेह और मानसिक विकार के रोगी अधिक सामने आ रहे हैं, बजाय उनके जो कोविड की गिरफ्त में नहीं आए. हालांकि पोस्ट-कोविड सिंड्रोम का फिलहाल कोई उपचार उपलब्ध नहीं हैं लेकिन कुछ आंकड़ों और अनुभवों के आधार पर यह ज़रूर कहा जा रहा है कि वैक्सीनेटेड लोगों को कोरोना संक्रमित होने के बाद पोस्ट-कोविड सिंड्रोम होने की संभावना कम होती है.
क्यों होता है पोस्ट-कोविड सिंड्रोम या लॉन्ग कोविड?
यह क्यों होता है? इसके होने की स्पष्ट वजह अभी तक नहीं पता चली है. अभी तक के अनुभव के आधार पर यह देखा गया है कि पोस्ट-कोविड सिंड्रोम का प्रभाव शरीर के किसी भी अंग पर देखने को मिल सकता है, इससे यह प्रतीत होता है कि यह बहुतंत्रीय रोग (मल्टी-ऑर्गन डिजीज़) या रोगों का समूह है. एक अनुमान के मुताबिक लॉन्ग कोविड शरीर के इम्यून सिस्टम के अति सक्रिय होने की वजह से होता है. इससे न केवल इम्यून सिस्टम वायरस को मारता है, बल्कि अपने ही शरीर की कोशिकाओं को भी नुकसान पहुंचाने लगता है. इसलिए स्वास्थ्य विशेषज्ञों को लगता है कि पोस्ट-कोविड सिंड्रोम एक ऑटोइम्यून बीमारी हो सकती है.
इससे जुड़ी दूसरी संभावना यह है कि संक्रमण से उबरने के बाद भी वायरस के अवशेष (जैसे प्रोटीन अणु) शरीर में मौजूद हो सकते हैं. हालांकि वायरस शरीर से लगभग खत्म हो जाता है. भले ही ये अवशेष कोशिकाओं को संक्रमित न करें, लेकिन हो सकता है कि वे शरीर के अंगों को नुकसान पहुंचाते हों. ऐसा हर्पीज या एपस्टीन बार (ईबीवी) जैसे वायरसों में देखा जा चुका है. फिलहाल यह कहना जल्दबाज़ी होगी की इनमें से कौन-सा अनुमान सही है. दुनिया भर में लक्षणों की विविधता के मद्देनजर वैज्ञानिक यह भी कह रहे हैं कि अलग-अलग लोगों के लिए लॉन्ग कोविड की अलग-अलग वजहें भी हो सकती हैं.
व्यापक पैमाने पर अध्ययन की दरकार
पोस्ट-कोविड सिंड्रोम के मामलों को दर्ज करना और उन पर गंभीरता से चर्चा होना बीते कुछ महीनों में ही शुरू हुआ है, इसलिए अभी इस बारे में स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं कहा जा रहा है. चूंकि महामारी का कुल समय ही लगभग 1.5 वर्ष है इसलिए स्वास्थ्य विशेषज्ञ यह स्पष्ट तौर पर नहीं बता पा रहे हैं कि किसी में ये लक्षण एक वर्ष से अधिक समय तक भी देखे जा सकते हैं या नहीं.
फिलहाल साफ तौर पर यह नहीं कहा जा सकता कि यह कुछ ही लोगों को क्यों होता है और ज्यादा खतरा किसे है. हालांकि स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि यह काफी हद तक उम्र पर निर्भर करता है. विश्लेषण में यह पाया गया कि 20 से 30 साल की उम्र के लोगों में एक-दो प्रतिशत लोग ही पोस्ट-कोविड सिंड्रोम से पीड़ित पाए गए,
वहीं 60 साल से अधिक उम्र वालों में यह आंकड़ा पाँच प्रतिशत तक पाया गया. वहीं बच्चों की बात करें तो, चूंकि बच्चों को कोविड संक्रमण होने का खतरा कम होता है इसलिए यह मानकर चला जा रहा है कि उन्हें पोस्ट-कोविड सिंड्रोम का खतरा भी कम होगा. अभी तक की समझ के मुताबिक ज्यादा खतरे में कौन है इसका पूर्वानुमान लगाने में उम्र, लिंग और संक्रमण के पहले हफ्ते में लक्षणों की गंभीरता अहम हैं.
आंकड़ों के आधार पर पोस्ट-कोविड सिंड्रोम की गंभीरता पर गौर करें तो ब्रिटेन में बीस हजार लोगों पर हुए एक अध्ययन में कोरोना से संक्रमित होने वाले तकरीबन 20 प्रतिशत लोगों के पोस्ट-कोविड सिंड्रोम से भी पीड़ित होने की बात कही गई थी. वहीं, भारत में एक निजी अस्पताल द्वारा किए गए एक काफी छोटे सैंपल साइज वाले अध्ययन में तकरीबन 31 प्रतिशत लोगों में संक्रमण से उबरने के तीन महीने बाद भी पोस्ट-कोविड सिंड्रोम के लक्षण होने की बात कही गई है.
लेकिन हमारे यहां इससे जुड़े कोई ठोस और विश्वसनीय आकड़ें अभी तक किसी भी संस्थान द्वारा जारी नहीं किए गए हैं. फिलहाल, देश और दुनिया में इसको लेकर बड़े पैमाने पर अध्ययन की जरूरत है ताकि मल्टीडिसिप्लिनरी पोस्ट कोविड क्लीनिक विकसित करके लॉन्ग कोविड या पोस्ट-कोविड सिंड्रोम से जूझ रहे लाखों लोगों की सहायता की जा सके. अस्तु!
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
प्रदीप, तकनीक विशेषज्ञ
उत्तर प्रदेश के एक सुदूर गांव खलीलपट्टी, जिला-बस्ती में 19 फरवरी 1997 में जन्मे प्रदीप एक साइन्स ब्लॉगर और विज्ञान लेखक हैं. वे विगत लगभग 7 वर्षों से विज्ञान के विविध विषयों पर देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में लिख रहे हैं. इनके लगभग 100 लेख प्रकाशित हो चुके हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक तक की शिक्षा प्राप्त की है.
Next Story