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पर्वत-मालाएं हरी-भरी हों, वन क्षेत्र का विस्तार एवं समुद्री तटों का सिकुड़ना समाप्त हो, जैव-विविधता बरकरार रहे एवं उसका विस्तार हो।
देश में आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने पर 75 सप्ताह का 'अमृत महोत्सव' मनाया जा रहा है। लेकिन आजादी के बाद की पर्यावरण की स्थिति की चर्चा लगभग नगण्य रही या कहें कि 'अमृत महोत्सव' में पर्यावरण के हालात उपेक्षित ही रहे। व्यापक रूप से देखा जाए तो पर्यावरण के सभी भाग - हवा, पानी, भूमि, जंगल एवं जैव-विविधता पर इन 75 वर्षों में काफी विपरीत प्रभाव हुआ है। सभी जीवों के जीने के लिए आवश्यक हवा में इतना प्रदूषण फैला कि वर्ष 2020 में हमारा देश विश्व के पांच सर्वाधिक प्रदूषित देशों में शामिल हो गया। स्विट्जरलेंड की फर्म 'एक्यू एअर' की 2021 की रिपोर्ट के अनुसार दुनियाभर के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में 63 हमारे देश के रहे। मुरादाबाद, कोलकाता, दिल्ली, आसनसोल व जयपुर ज्यादा प्रदूषित बताए गए।
'क्लाइमेट ट्रेंड' की रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश की 99.4 प्रतिशत आबादी प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर है। पिछले 20 वर्षों में (1990 से 2019) वायु-प्रदूषण में 115 प्रतिशत की वृद्धि का आकलन किया गया है। देश के 200 शहरों में वायु-प्रदूषण निर्धारित स्तर से अधिक है एवं 50 शहरों की हालत ज्यादा खराब है। देश के 88 में से 75 औद्योगिक क्षेत्र भी ज्यादा प्रदूषित हैं। 'पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक' में हमारा देश वर्ष 2022 में अंतिम स्थान 180 पर बताया गया, जबकि वर्ष 2020 में यह 168वें स्थान पर था। यह अध्ययन 'येल' व 'कोलंबिया विश्वविद्यालय' तथा 'अर्थ इंस्टीट्यूट' द्वारा किया गया था। इस वर्ष के प्रारंभ में जारी 'एअर-क्वालिटी-लाइफ-इंडेक्स रिपोर्ट' के अनुसार, देश में ऐसी एक भी जगह नहीं है, जो 'विश्व स्वास्थ्य संगठन' के वायु-प्रदूषण के मानकों पर खरी उतरे। वायु-प्रदूषण के प्रभाव से भारतीयों की औसत उम्र भी लगभग 10 वर्ष घट रही है।
दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद विश्व के अधिक ध्वनि-प्रदूषण वाले शहरों में शामिल हैं। उत्तर प्रदेश का मुरादाबाद दुनिया का दूसरा सबसे अधिक शोर वाला शहर बताया गया है। जीवन देने वाला जल भी जानलेवा हो गया है। 'नीति आयोग' के 'जल प्रबंधन सूचकांक' (2018) के अनुसार देश का 70 प्रतिशत पानी पीने योग्य नहीं है एवं 60 करोड़ लोग पानी की कमी से जूझ रहे हैं। 'केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण मंडल' के अनुसार, देश की 521 नदियों में से 351 काफी प्रदूषित हैं। 'राष्ट्रीय-स्वच्छ-गंगा-मिशन' की हाल की एक रिपोर्ट के अनुसार, 97 स्थानों पर जहां गंगाजल की गुणवत्ता का अध्ययन किया गया, वहां का पानी आचमन लायक भी नहीं है। देश की कई बारहमासी या सदानीरा नदियां मौसमी बन गई हैं।
भूजल का दोहन चीन एवं अमेरिका से ज्यादा हो रहा है एवं पिछले कुछ वर्षों में यह 115 गुना बढ़ा है। देश के 360 जिलों के भूजल में नाइट्रेट, क्लोराइड एवं आर्सेनिक की मात्रा बढ़ी है। पिछले वर्षों में वनों में आग लगने की घटनाएं भी काफी बढ़ी हैं। देश के ज्यादातर शहरों के आसपास कचरे के पहाड़ बनते जा रहे हैं। एक आकलन के अनुसार, शहरों में रोजाना 1.5 लाख टन कचरा पैदा होता है, परंतु उचित निपटान केवल 65 प्रतिशत का ही हो पाता है। देश की जलवायु एवं मौसम में अहम भूमिका निभाने वाली पर्वत-मालाएं एवं समुद्री तट भी संकटग्रस्त हैं। पिछले 75 वर्षों में देश में पर्यावरण से जुड़े कई नियम-कानून लागू किए गए, अलग से 'राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण' (एनजीटी) का गठन भी किया गया, परंतु इतना ही पर्याप्त नहीं था। 'एनजीटी' ने कुछ प्रकरणों में जुर्माना लगाया एवं कई स्थानों पर उसके निर्देशों का पालन भी नहीं किया गया। देश में सौर व पवन ऊर्जा का उपयोग जरूर बढ़ा है।
अब ऐसे प्रयास किए जाएं कि आजादी के 100 वर्ष पूर्ण होने के उत्सव में हमारे जल-स्रोत साफ-सुथरे हों, शहरों व गांवों की हवा शुद्ध हो, शोर कम हो, कचरे के पहाड़ न बनें, पर्वत-मालाएं हरी-भरी हों, वन क्षेत्र का विस्तार एवं समुद्री तटों का सिकुड़ना समाप्त हो, जैव-विविधता बरकरार रहे एवं उसका विस्तार हो।
सोर्स: अमर उजाला
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