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- अमृत महोत्सव:...
आदित्य नारायण चोपड़ा: आजादी के 75 वर्ष पूरे करने तक आते-आते नए भारत का उदय हो रहा है। नए भारत का अर्थ सशक्त, सक्षम, समर्थ और आत्मनिर्भर भारत है। देश के सामने अनेक चुनौतियां आईं लेकिन देश ने मजबूती के साथ उसका सामना किया। आत्मनिर्भर भारत की यात्रा लगातार जारी है। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत के विकास की कहानी काफी साधारण रही। दशकों तक बंद रही अर्थव्यवस्था का पालन करते रहे। अर्थव्यवस्था के क्षेत्रों पर नौकरशाही हावी होती रही और लाइसैंसी राज और परमिट राज का बोलबाला रहा। पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के कार्यकाल में उदारीकरण की नीतियों का दौर शुरू हुआ। जिसके बाद निजी और विदेशी दोनों तरह के निवेशों की बाढ़ आ गई। यह आम धारणा है कि 1956 की औद्योगिक नीति ने भारतीय अर्थव्यवस्था को बढ़ने से रोक दिया था तो वहीं 1991 की औद्योगिक नीति ने भारतीय अर्थव्यवस्था में विकास के सभी रास्ते खोल दिए थे। अर्थव्यवस्था का स्वरूप तब बदलना शुरू हुआ जब भारत ने सक्रिय रूप से वैश्वीकरण को अपनाना शुरू किया। 2022 तक आते-आते भारतीय अर्थव्यवस्था में जबरदस्त सुधार हुआ। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के 8 वर्ष के शासन के दौरान देश की अर्थव्यवस्था बेहतर हुई। इस दौरान देश ने नोटबंदी, गिरता शेयर बाजार, कोरोना महामारी, रूस-यूक्रेन युद्ध समेत कई उतार-चढ़ाव देखे। इन सबके बावजूद भारत सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में शीर्ष स्थान पर बरकरार है। पिछले वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्ता में 8.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई। कोरोना महामारी ने जब दुनिया में दस्तक दी तो इसने आर्थिक रूप से दुनिया के तमाम बड़े देशों की कमर तोड़ दी। भारत पर भी इसके प्रभाव पड़े, लेकिन भारत अन्य विकसित देशों की तरह घुटने पर नहीं आया। अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी जैसे देश जो खुद को तथाकथित ताकतवर मुल्क बताते हैं, उनकी अर्थव्यवस्था को कोरोना महामारी ने तहस-नहस कर दिया। यहां तक कि आईएमएफ ने यहां तक कह दिया था कि दक्षिण अमेरिका के हर तीन में से एक व्यक्ति को अपनी नौकरी खोनी पड़ सकती है। हालांकि भारत इसके बावजूद भी कहीं ना कहीं अपनी अर्थव्यवस्था को उतने नीचे गिरने से बचा पाया, जितने अनुमान लगाए जा रहे थे। प्रधानमंत्री मोदी जब केन्द्र में आए थे तो भारत की जीडीपी लगभग 112 लाख करोड़ रुपए की थी, जो आज बढ़कर 232 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा की हो गई है। आज भारत दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और प्रधानमंत्री मोदी ने 2025 तक भारत की जीडीपी को 5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। जब कोरोना महामारी के चलते देश के तमाम उद्योगों की कमर टूट गई थी, तब इससे उबरने के लिए मोदी सरकार ने एक राहत पैकेज की घोषणा की थी, जिसके तहत कोविड से प्रभावित सैक्टरों के लिए 1.1 लाख करोड़ रुपए का पैकेज का ऐलान किया गया था। इसमें से हेल्थ सैक्टर को 50 हजार करोड़ रुपए और अन्य सैक्टर के लिए 60 हजार करोड़ रुपए दिए जाने की बात हुई थी। इसके साथ ही छोटे कारोबारियों को मदद देने के लिए मोदी सरकार ने क्रेडिट गारंटी योजना की भी शुरूआत की। जिसके तहत माइक्रो फाइनेंस इंस्टीट्यूट से छोटे कारोबारी 1.25 लाख तक का लोन ले सकते हैं और इस लोन की अवधि 3 साल होगी, जिसकी गारंटी सरकार देगी।मेड इन इंडिया, मेक इन इंडिया और वोकल फॉर लोकल जैसे नारों के साथ मोदी सरकार ने शुरू में ही यह दिखा दिया था कि वह स्टार्टअप को लेकर कितना उत्सुक है। यही वजह रही कि महामारी के बावजूद भारत में नए स्टार्टअप तेजी से ग्रो कर रहे हैं। अब तक देश की 100 स्टार्टअप कम्पनियों ने यूनिकॉर्न क्लब में शामिल होने का तमगा हासिल कर लिया है और इस साल अभी तक भारत की 22 स्टार्टअप कम्पनियां यूनिकॉर्न क्लब में शामिल हुई हैं, जबकि 44 स्टार्टअप कम्पनियां पिछले साल इस क्लब में शामिल हुुई थीं। नरेन्द्र मोदी सरकार ने लगभग 75 महीने पहले स्टार्टअप इंडिया कार्यक्रम शुरू किया था, जो भारत में 10 फीसदी हर साल बढ़ रहे हैं। देश में नई स्टार्टअप कम्पनियों की संख्या 2021-22 में बढ़कर 14,000 से अधिक हो गई है। एक सम्भावना के अनुसार भारत में इसके जरिये प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दोनों मोर्चे पर 14 लाख लोगों को नौकरियां मिली हैं।आज भारत दुनियाभर के निवेशकों के लिए एक आकर्षक और पसंदीदा बाजार है। प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद वर्ष 2021-22 में देश में रिकार्ड तोड़ एफडीआई आया। विदेशी कम्पनियों ने भारत में मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट स्थापित किए। कभी मोबाइल और इलैक्ट्रोनिक उपकरण के मामले में भारत विदेशी कम्पनियों पर निर्भर था। अब यह सब चीजें देश में ही बन रही हैं। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार की स्थिति भी काफी संतोषजनक है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के डिजिटल इंडिया के नारे के साथ देश की अर्थव्यवस्था लगातार बढ़ रही है।