सम्पादकीय

अमृत महोत्सव : संविधान से मिलती है राष्ट्र को ऊर्जा

Neha Dani
26 Jan 2022 1:52 AM GMT
अमृत महोत्सव : संविधान से मिलती है राष्ट्र को ऊर्जा
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किसी भी स्ट्रीम की पढ़ाई करे, सबके लिए संविधान की शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए।

इस वर्ष हम लोग अपनी स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। पिछले सात दशकों में हमने अनेक क्षेत्रों में बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं। मैं समझता हूं कि हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि यही है कि हम अपने गणतंत्र की गरिमा को अक्षुण्ण रख सके हैं तथा अपने देश की एकता और अखंडता को सुदृढ़ कर पाए हैं। वर्ष 1947 में हमें आजादी मिली और वर्ष 1950 में हमने अपना संविधान अपनाया तथा अपने देश को गणतंत्र घोषित किया।

तबसे लेकर अब तक जितने भी लोगों ने देश की बागडोर संभाली, मैं समझता हूं कि देश के विकास में और उसे अक्षुण्ण रखने में उन सबका योगदान रहा है। मैं इस बात से सहमत नहीं हूं कि पिछले साठ वर्षों में कुछ काम नहीं हुआ और मात्र दस वर्षों में ही देश में काम हुआ है। बेशक पिछले दस वर्षों में बहुत से काम हुए हैं, लेकिन उनसे पहले के साठ वर्षों में भी देश में बहुत से महत्वपूर्ण काम हुए हैं। उन सबके योगदान को सराहा जाना चाहिए। वे सभी राष्ट्रीय विभूतियां हैं और उन सबने देश को आगे बढ़ाने, देश का मान-सम्मान बढ़ाने का भरसक प्रयास किया।
उदाहरण के तौर पर देखें तो, एक जमाना था, जब दूध के लिए लाइनें लगती थीं, और हमारा आदमी सुबह चार बजे दूध के लिए लाइन में जाकर लगता था, तब दो बोतल या एक बोतल दूध मिलता था। लेकिन उसके बाद हमारे देश में श्वेत क्रांति हुई और हमारा देश न सिर्फ दुग्ध उत्पादन में आत्मनिर्भर बना, बल्कि दुग्ध उत्पाद का निर्यात भी करने लगा। दुग्ध उत्पादन ही नहीं, डेयरी उत्पादों के निर्यात में भी भारत दुनिया में पहले स्थान पर है।
इसके अलावा, अनाज उत्पादन की बात करें, तो मुझे याद है कि अमेरिका से खाने के लिए लाल गेहूं मंगाया जाता था। आज उस गेहूं को हमारे देश में खाने लायक नहीं समझा जाएगा, लेकिन हम वही खाते थे, क्योंकि वही उपलब्ध था। लेकिन अब देश में इतने अनाज का उत्पादन होता है कि हम उसे विभिन्न देशों में निर्यात करते हैं। विज्ञान, प्रौद्योगिकी, अंतरिक्ष, कृषि, उद्योग-धंधे सभी क्षेत्रों में हमने उल्लेखनीय सफलता हासिल की है।
देश के संविधान की प्रस्तावना में स्वतंत्रता और समानता के जो वादे किए गए थे, उस दिशा में भी हम इन लोकतांत्रिक मूल्यों को अक्षुण्ण रख सके हैं। अगर हम अपने पड़ोसी देशों की तरफ देखें, तो बोलने की स्वतंत्रता, अपना विचार रखने की स्वतंत्रता या तो बिल्कुल नहीं है या उतनी नहीं है, जितनी हमारे देश में है। हमारे देश में प्रधानमंत्री की रोजाना दिन-रात आलोचना होती है, लेकिन किसी का कुछ नहीं होता है।
मैं समझता हूं कि हमारे देश में लोगों को अभिव्यक्ति की बहुत ज्यादा स्वाधीनता है। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता की अति है कि देश के प्रति और सरकार के प्रति जहर उगला जाता है और उसकी भी आजादी है। स्वतंत्रता, लोकतंत्र और राष्ट्रीय एकता को हम सुरक्षित रख सके, यह हमारे गणतंत्र की बहुत बड़ी उपलब्धि है। हालांकि अब तक हमारे संविधान में 104 संशोधन हो चुके हैं, लेकिन अब भी हमारे देश में वही संविधान लागू है, जो 1950 में लागू किया गया था।
जबकि दूसरे महायुद्ध के बाद जितने संविधान लागू हुए, हमारे देश को छोड़कर अन्य देशों में या तो उन्हें खारिज कर दिया गया, या वहां पर सैन्य तंत्र लागू हो गया या नए संविधान आ गए। लेकिन हमारा संविधान देश की एकता और अखंडता के लिए शक्ति का बहुत बड़ा स्तंभ बना हुआ है, जिससे राष्ट्र को ऊर्जा मिलती है।
हालांकि विभिन्न राजनीतिक दल अपनी विचारधारा के अनुसार जब-तब यह आरोप लगाते हैं कि सरकारों ने लोकतांत्रिक संस्थाओं का क्षरण किया है, लेकिन मैं समझता हूं कि हम अपनी लोकतांत्रिक संस्थाओं को जितना स्वतंत्र और अक्षुण्ण रख पाए हैं, उतना कोई और देश नहीं रख पाया है। जहां तक धर्मनिरपेक्षता की बात है, मैं बता दूं कि संविधान में धर्मनिरपेक्षता शब्द नहीं है, बल्कि पंथ निरपेक्षता शब्द है।
इसे संविधान में आपातकाल के दौरान तुष्टिकरण की नीति के तहत संशोधन के जरिये जोड़ा गया था। सही अर्थों में अगर इसे लिया जाए, तो इसका मतलब है कि सभी धर्मों के प्रति, सभी पंथों के प्रति सरकार का एक-सा व्यवहार हो। मैं समझता हूं कि इसमें विवाद की कोई गुंजाइश नहीं है कि हमारे यहां सभी धर्म के लोगों को बराबर की धार्मिक स्वतंत्रता मिली हुई है। हमारे देश में जितने भी अल्पसंख्यक धर्म हैं, उनके प्रति अधिक सहिष्णुता दिखाई जा रही है।
हमारी संसद जनता का प्रतिनिधित्व करती है, क्योंकि जनता द्वारा चुने गए लोग संसद में कानून बनाते हैं। अब सवाल यह है कि जनता का प्रतिनिधि किसे माना जाए, क्योंकि सरकार और विपक्ष, दोनों के सांसद जनता द्वारा ही चुने जाते हैं। लोकतंत्र स्पष्ट रूप से बहुमत का शासन है, ऐसे में बहुमत की सरकार ही जनता की प्रतिनिधि है। जनता द्वारा चुने गए सांसदों के बहुमत की सरकार को जनता का प्रतिनिधि मानें या जो सत्ता परिवर्तन के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं, उन्हें जनता का प्रतिनिधि मानें? भारी बहुमत से बनी सरकार को अगर जनता की आवाज न समझें, तो यह लोकतंत्र नहीं हुआ।
मैं समझता हूं कि पिछले सात दशकों में हमारे गणतंत्र पर आम लोगों का भरोसा काफी बढ़ा है। बीच के कुछ समय में हमने देखा कि हमारे देश में किसी भी राजनीतिक दल को बहुमत नहीं मिलता था। एक-एक वोट से सरकारें गिरीं। लेकिन अब अगर भारी बहुमत से देश में सरकारें बन रही हैं, तो इसके मायने हैं कि लोकतंत्र के प्रति आम लोगों का, पंक्ति के आखिरी व्यक्ति का भरोसा बढ़ा है।
जब बहुमत की सरकारें नहीं बनती थीं या एक-एक वोट से सरकारें गिर जाती थीं, तब कहा जा सकता था कि लोगों का लोकतंत्र पर से भरोसा उठ रहा है, लेकिन सौभाग्य से अब देश में बहुमत की सरकारें बन रही हैं और यह देश के लोकतंत्र के लिए सुखद ही कहा जाएगा। हमारे देश के गणतंत्र के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती सांविधानिक निरक्षरता है। संविधान के बारे में लोगों में शिक्षा और चेतना का अभाव है।
मैं समझता हूं कि सांविधानिक शिक्षा देश में अनिवार्य होनी चाहिए, ताकि लोग लोकतांत्रिक मूल्यों एवं नागरिक कर्तव्यों के बारे में जान सकें। नागरिक अधिकारों की बातें होती हैं, लेकिन नागरिक कर्तव्यों की बातें नहीं होतीं। नागरिकों के मूल कर्तव्यों में सबसे पहला कर्तव्य है, संविधान के अनुदेशों का पालन करना। अब अगर संविधान के बारे में पता ही नहीं है, तो उसका अनुपालन कैसे होगा! इसलिए चाहे कोई किसी भी स्ट्रीम की पढ़ाई करे, सबके लिए संविधान की शिक्षा अनिवार्य होनी चाहिए।


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