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आजादी का अमृत महोत्सव
आर. जगन्नाथन.
भारत की अर्थव्यवस्था को 1947 से आज तक बड़ी सफलताएं जरूर मिलीं, लेकिन बड़ी गलतियों के बाद। इसका सबसे बड़ा उदाहरण 1991 में शुरू हुई आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया थी, जिसने अगले 30 वर्षों तक अर्थजगत में आए बड़े उछाल की नींव रखी। 1991 में आर्थिक सुधार इसलिए नहीं लागू किए गए थे, क्योंकि वे उस समय की सरकार की सुधारवादी सोच के प्रतीक थे, बल्कि वे इसलिए आए, क्योंकि उस समय देश दिवालिया होने के कगार पर था और कुछ माह तक चली चंद्रशेखर सरकार को विदेशी बैंकों से कर्ज लेने के लिए देश का सोना गिरवी रखना पड़ा था।
लेकिन हमें उससे पहले भारत को मिली अन्य बड़ी सफलताओं की चर्चा करनी चाहिए। पहली हरित क्रांति थी और दूसरी श्वेत क्रांति। पहली 1960 के दशक में शुरू हुई और दूसरी उसके काफी साल बाद और उसे सफल होने में भी काफी अधिक समय लगा। काफी समय तक अमेरिका द्वारा दान किए गए खाद्यान्न पर निर्भर रहने के बाद साठ के दशक में हमने हाइब्रिड बीजों और खाद का प्रयोग करने के साथ ही आधुनिक खेती की तकनीक भी अपनाई।
इससे हरियाणा और पंजाब में हरित क्रांति आई। भारत खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बना। दूसरी बड़ी सफलता दुग्ध उत्पादन में आई, जिसमें हम जरूरत से कम दुग्ध उत्पादन करने वाले देश से दुग्ध प्रचुरता वाला देश बन गए। इस क्षेत्र में सहकारी डेयरी को बढ़ावा देकर लगभग सभी प्रदेशों ने अमूल का मॉडल अपनाया और आज पूरी दुनिया का 22 प्रतिशत दूध हम पैदा कर रहे हैं।
लेकिन 1991 में देश के खाली हुए खजाने ने उन उदार नीतियों की बाढ़ ला दी, जिनसे हमें अगले कई वर्षों में बड़ी सफलताएं मिलीं। विदेशी मुद्रा की कमी की वजह से भारत को न सिर्फ लाइसेंस परमिट राज खत्म करना पड़ा, बल्कि ऐसी नीतियां बनीं, जिनसे सॉफ्टवेयर और फार्मास्यूटिकल जैसे निर्यातोन्मुखी उद्योगों को 10 वर्षों के लिए बड़े टैक्स लाभ दिए गए। इन्हीं नीतियों की वजह से टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज, इंफोसिस और विप्रो जैसी दुनिया की महानतम कंपनियां बनीं। इनमें से टीसीएस और इंफोसिस की कीमत तो आज 100 अरब डॉलर से भी अधिक है।
आज हम जेनेरिक दवाइयों और वैक्सीन के दुनिया के सबसे बड़े निर्माता हैं। जेनेरिक दवाइयां बनाने वाली दुनिया की पांच में से दो सबसे बड़ी कंपनियां भारतीय हैं और भारत दुनिया का सबसे बड़ा वैक्सीन निर्माता बन गया है। आज यदि हम कोविड-19 पर ठीक से काबू पा सके हैं, तो उसकी यही वजह है। पहला बड़ा निजी बैंक भी 1991 के बाद लॉन्च किया गया और आज इनमें से कई दुनिया के सबसे कीमती बैंकों में शुमार हैं। अगले एक दशक में लगभग सभी बैंक पूरी तरह डिजिटल हो जाएंगे और पेटीएम एयरटेल और इनके जैसे दूसरे डिजिटल बैंक को काफी उछाल मिलेगा।
1991 में आए आर्थिक सुधारों ने देश में टेलीकॉम क्रांति को जन्म दिया, लेकिन नीलामी के दौरान लगाई गई ऊंची बोली की वजह से उपभोक्ता को महंगी सेवाएं मिलीं और कंपनियों की विकास दर भी कम रही। लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में इस मामले को भी हल कर लिया गया और उसके बाद ही देश में टेलीफोन क्रांति आ पाई। आज हमारे देश में 118 करोड़ मोबाइल कनेक्शन हैं और शहरों में प्रति व्यक्ति 1.3 टेलीफोन कनेक्शन हैं। आज विकास की ज्यादा संभावना ग्रामीण क्षेत्रों में है, जहां टेली घनत्व अब भी एक से कम है।
लेकिन वह क्षेत्र, जहां चीन के बाद भारत बहुत लंबी छलांग लगा रहा है, वह है डिजिटाइजेशन। विमुद्रीकरण यानी डिमॉनेटाइजेशन के बाद व्यापार का औपचारिकरण करने का दबाव बढ़ गया है और भारत के पास आज दुनिया का सबसे प्रगतिशील डिजिटल वित्तीय आर्किटेक्चर है। पिछले वर्ष जब अमेरिका कोविड-19 से लोगों को हुए आर्थिक नुकसान से पार पाने के लिए अपने नागरिकों को चेक भेज रहा था, तो भारत ने करोड़ों महिलाओं को केवल एक बटन दबाकर 500 रुपये महीना उनके जनधन खातों में डिजिटल ट्रांसफर के जरिये पहुंचा दिए।
तीन और बड़ी उपलब्धियां-जिनमें से दो वाजपेयी के जमाने की और एक मनमोहन सिंह के शासन काल की हैं। ये हैं-हाईवे और ग्रामीण सड़कों पर बड़ा निवेश-दोनों ही वाजपेयी के समय शुरू हुए और तीसरा है गरीबी में तेजी से आई कमी, जो यूपीए के समय शुरू हुआ। यूपीए के शासनकाल के दौरान विकास में आई तेजी सड़क परिवहन की सुदृढ़ संरचना के बिना संभव नहीं होती। यूपीए के 10 वर्षों के शासनकाल में 27.1 करोड़ भारतीय गरीबी की रेखा से ऊपर आ गए। भारत के इतिहास में गरीबी इतनी तेजी से कभी नहीं घटी।
इनके साथ सरकारी क्षेत्र में भी कुछ बड़ी उपलब्धियां हासिल की गईं, जिनका जिक्र अभी तक अधिक नहीं हुआ। इंदिरा गांधी के दूसरे शासनकाल में शुरू हुई कुद्रेमुख लौह अयस्क परियोजना से शुरू कर भारत ने बड़ी परियोजनाओं को तय कीमत और तय समय-सीमा में ही पूरा करना सीख लिया। इनमें कोंकण रेलवे और दिल्ली मेट्रो को गिना जा सकता है।
1991 के बाद तीन और बड़े परिवर्तन आए-शेयरों का डिमैटेरियलाइजेशन या अमूर्तिकरण, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की स्थापना और शेयर मार्केट के नियामक सेबी का गठन। इनकी वजह से भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली शेयर मार्केट बन गया। कोविड और डिजिटाइजेशन ने भी परिदृश्य बदला। भारत में स्टार्ट अप कंपनियों के लिए इससे बेहतर माहौल नहीं हो सकता था, क्योंकि अब वर्क फ्रॉम होम और ऐप आधारित सेवाएं ही नए मानक बन गए हैं।
कुल मिलाकर, भारत ने कृषि से लेकर सेवा क्षेत्र तक बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं। उसने मैन्यूफैक्चरिंग के उस चरण को छोड़ दिया, जिसमें बहुत से दूसरे देश फंसे रहे। कुछ वर्षों बाद देखना होगा कि मोदी सरकार की 'मेक इन इंडिया' को बढ़ावा देने वाली प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) योजनाओं का कितना असर हुआ। अर्थव्यवस्था और औद्योगिकीकरण के मामले में भारत की कहानी अनोखी है, क्योंकि यह दुर्घटनाओं की वजह से बढ़ी है और इसमें पहले विफलताएं भी मिली हैं।
(लेखक अर्थ विशेषज्ञ और एडिटोरियल डायरेक्टर, स्वराज्य हैं।)
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