सम्पादकीय

चुनौतियों के बीच

Subhi
2 Jun 2022 4:43 AM GMT
चुनौतियों के बीच
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वित्त वर्ष 2021-22 की चौथी तिमाही में विकास दर 4.1 फीसद पर आकर ठहर जाना बता रहा है कि अर्थव्यवस्था के समक्ष चुनौतियां अभी कम नहीं हुई हैं और इसे पटरी पर लाने में लंबा वक्त लगेगा।

Written by जनसत्ता: वित्त वर्ष 2021-22 की चौथी तिमाही में विकास दर 4.1 फीसद पर आकर ठहर जाना बता रहा है कि अर्थव्यवस्था के समक्ष चुनौतियां अभी कम नहीं हुई हैं और इसे पटरी पर लाने में लंबा वक्त लगेगा। बस राहत की बात इतनी है कि अर्थव्यवस्था फिर से कोरोना पूर्व की स्थिति में बढ़ने लगी है। हालांकि भारत में महामारी से पहले से ही आर्थिक मंदी असर दिखाने लगी थी। मंगलवार को जारी राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय के आंकड़े बता रहे हैं कि सेवा क्षेत्र के कुछ हिस्सों को छोड़ कर कृषि, वित्त, परिवहन, संचार, विनिर्माण जैसे क्षेत्र फिर से रफ्तार पकड़ने लगे हैं।

यह भी कि अर्थव्यवस्था की बुनियाद कहे जाने वाले कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी, उर्वरक, इस्पात, सीमेंट और बिजली क्षेत्र में भी उत्पादन अप्रैल 2021 के मुकाबले 8.4 फीसद बढ़ा है। इसलिए 2021-22 में अर्थव्यवस्था की दर 8.7 तक आ गई जो पिछले साल शून्य से 6.6 फीसद तक गिर गई थी। हालात कितने सुधरे, इसका पैमाना फिलहाल यही है कि हम संकट के दौर से निकल कर महामारी से पहले वाली स्थिति में कहां तक पहुंच पाए। इसमें तो कोई संदेह नहीं कि पूरा वित्त वर्ष 2021-22 संकटों से भरा रहा, जिसमें महामारी से बचाव के लिए उठाए गए पूर्णबंदी और दूसरे प्रतिबंधों ने अर्थव्यवस्था को ठप कर दिया था।

बीते वित्त की तीसरी और चौथी तिमाही में अर्थव्यवस्था को जो झटके लगे, उनसे वृद्धि दर पर असर पड़ना निश्चित था। फरवरी के आखिरी हफ्ते से चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध ने दुनिया को नए संकट में झोंक दिया है। इसका असर सिर्फ भारत पर ही नहीं, बल्कि ज्यादातर देशों पर पड़ रहा है। इससे आई महंगाई ने देश और जनता दोनों की अर्थव्यवस्था को हिला दिया। हालांकि भारत में महंगाई लंबे समय से बनी हुई है। यूक्रेन संकट की वजह से कच्चे तेल के दामों ने तो सारे रेकार्ड तोड़ दिए। अभी भी इसमें नरमी के कोई आसार लग नहीं रहे।

इसके अलावा अनाज, उर्वरक और धातुओं में भी भारी उछाल आया। रूस और यूक्रेन गेहूं के भी बड़े उत्पादक और निर्यातक देश हैं। इससे दुनियाभर में आपूर्ति शृंखला गड़बड़ा गई। भारत में चौथी तिमाही में इसका जबरदस्त असर देखने को मिला। आर्थिकी जिस रफ्तार से बढ़नी थी, उस पर विराम लग गया। जहां तक बात है तीसरी तिमाही की सुस्ती की, तो इस पर ओमीक्रान और लगातार महंगे होते जिंसों का असर था। जाहिर है, दो तिमाहियों में भारत को दोहरे संकट से जूझना पड़ गया।

अर्थव्यवस्था के लिए इस वक्त महंगाई और आर्थिक वृद्धि दर की चुनौती सबसे बड़ी है। जहां तक महंगाई का सवाल है, तो रिजर्व बैंक पहले ही संकेत दे चुका है कि इससे निपटने में अभी वक्त लगेगा। जैसे हालात हैं, उनसे संकेत भी यही मिल रहे हैं कि यह साल महंगाई की मार में ही निकलेगा। आर्थिक वृद्धि इससे अछूती नहीं रह सकती। मुश्किल यह है कि अगर महंगाई कम नहीं हुई और आर्थिक वृद्धि दर में इजाफा नहीं हुआ, तो रोजगार बाजार जवाब देने लगेगा। बेरोजगारी दर पहले ही ऊंची बनी हुई है।

ऐसे में महंगाई और आर्थिक वृद्धि के संकट की वजह से नौकरियां जाने लगीं तो लोग करेंगे क्या? आंकड़े भले कुछ कहते रहें, पर इस हकीकत से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता कि कोरोनाकाल में जिन करोड़ों लोगों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा था, उनमें से बड़ी संख्या में लोग आज भी या तो बिना रोजगार के हैं या फिर बेहद कम पैसे में काम करने को मजबूर हैं। महंगाई और वृद्धि दर दोनों को साधने के लिए ऐसे व्यावहारिक कदमों की जरूरत है जिनकी प्राथमिकता रोजगार सृजन हो।


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