सम्पादकीय

तालिबान के 'नरसंहार' के बीच अफगानी महिलाओं का बड़ा कदम, लड़ाकों को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए बना रखी है सेना

Rani Sahu
13 Aug 2021 4:42 PM GMT
तालिबान के नरसंहार के बीच अफगानी महिलाओं का बड़ा कदम, लड़ाकों को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए बना रखी है सेना
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अफगानिस्‍तान के शहरों पर तालिबान के कब्‍जे का सिलसिला लगातार जारी है

विष्णु शंकर। अफगानिस्‍तान के शहरों पर तालिबान के कब्‍जे का सिलसिला लगातार जारी है. एक के बाद एक प्रांतों की राजधानियों पर ताबिलान का कब्‍जा होता जा रहा है. गजनी, कुंदुज़, सरे पुल, ताखर की राजधानी तलोकान, जाओज़जान की राजधानी शिबरगन, समंगन की राजधानी ऐबक, निमरोज़ की राजधानी जरंज, बदख्शां की राजधानी फैज़ाबाद और फराह सूबे की राजधानी, जिसे भी फराह नाम से ही जाना जाता है, पर तालिबान का कब्‍जा जो चुका है. गुरुवार रात तक तालिबान कंधार के साथ ही 12 प्रांतों की राजधानियों को अपने हक में कर चुका है.

पश्चिमी अफगानिस्‍तान के हेरात पर भी अब तालिबान का कब्‍जा है और मुल्क के दक्षिण में हेलमंद सूबे की राजधानी लश्कर गाह पर कब्ज़े के लिए तेज़ लड़ाई चल रही है. दुनिया हैरत में है कि जिस तेज़ी से तालिबान के लड़ाके अफगानिस्‍तान के उत्तर और पश्चिम के इलाकों पर अपना कंट्रोल कायम करते जा रहे हैं, देश की राजधानी, काबुल, कब तक उनके क़हर से महफूज़ रह पायेगी. मुल्क का दक्षिणी इलाका तो ऐतिहासिक तौर से तालिबान का गढ़ रहा ही है.
तालिबान से लड़ने और उन्‍हें मुंहतोड़ जवाब देने के लिए तैयार हैं ये महिलाएं
आज बात करें अफगानिस्‍तान की महिलाओं की, जिनको तालिबान के शासन में, हुकूमत के लिहाज से शायद सबसे ज्‍यादा खोना पड़ेगा. चिंता की बात है कि कंधार, ग़ोर, कुंदुज़ और ग़ज़नी में महिलाओं पर पाबंदियों का दौर नाफिज हो चुका है. महिलाओं और बच्चियों की पढ़ाई, घर से बाहर आने-जाने, पहनावे, खासकर हिजाब और बुर्क़ा पहनने में कोई कोताही न हो यह साफ कर दिया गया है.
लेकिन आज हम आपको बताएंगे अफगानिस्‍तान की उन बहादुर महिलाओं के बारे में, जो ऐसी बंदिशों के बावजूद अपनी जिंदगी इज्‍जत के साथ जीने पर आमादा हैं. ये महिलाएं तालिबान से लड़ने और उनको मुंहतोड़ जवाब देने को तैयार हैं लेकिन उसकी शर्तों को मान कर, समर्पण करना इन्हें गवारा नहीं है. अफगानिस्‍तान के पुरुष प्रधान समाज में तालिबान के खिलाफ लड़ाई के मैदान में महिलाओं का मुक़ाबला करना शर्म की बात मानी जाती है.
अफगानिस्‍तान में महिलाओं का हथियार उठाना आसान नहीं
शायद इसलिए ग़ोर सूबे में महिलाओं के एक गुट ने निशाना लगाना और हथियार चलाना सीख लिया है. यहां तक तो ठीक था, ये महिलाएं अपने हथियारों के साथ अपने घरों से निकली, फोटो खिंचवाए और उन्हें सोशल मीडिया पर शेयर भी किया. आप मानेंगे अफ़ग़ानिस्तान में ऐसा करने के लिए हिम्मत चाहिए. आने वाले दिन ग़ोर की इन हिम्मती महिलाओं के लिए मुश्किल भरे हो सकते हैं, लेकिन ये सभी चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हैं.
सलीमा मज़ारी बल्ख सूबे के चारकिंत ज़िले की गवर्नर हैं. सलीमा हज़ारा मूल की हैं और इनकी पढ़ाई ईरान में हुई, क्योंकि 1979 में जब पूर्व सोवियत संघ ने अफगानिस्‍तान पर कब्ज़ा कर लिया था और देश के हालात बहुत बिगड़ गए थे तब अपने माता-पिता के साथ सलीमा भी ईरान चली गईं थीं. सलीमा ने स्वदेश वापस लौट कर 2018 में चारकिंत के गवर्नर की पोस्ट के लिए आवेदन किया और चुन ली गईं.
चारकिंत की गवर्नर ने अपने जिले के लोगों के लिए बंदूक भी उठाई
पिछले तीन साल में सलीमा ने न सिर्फ चारकिंत का प्रशासन संभाला है बल्कि जब भी ज़रुरत पड़ी है बंदूक उठा कर अपने ज़िले और इसके 30 हज़ार निवासियों की सुरक्षा की है. चारकिंत अकेला ऐसा इलाका है जहां कई हमलों के बावजूद तालिबान कब्ज़ा करने में कामयाब नहीं हुए हैं. सबसे अच्छी बात यह है कि क्या औरत और क्या मर्द, चारकिंत के सभी बाशिंदे उनकी बात मानते हैं और इज़्ज़त करते हैं. लेकिन अफ़ग़ानिस्तान में सभी महिलाएं हुनर की धनी ज़रूर हो सकती हैं, लेकिन किस्मत सबका साथ दे ये ज़रूरी नहीं है.
तालिबान ख़ासतौर पर सहाफ़ियों यानी जर्नलिस्टों से बेहद खफ़ा रहते हैं. इन्होंने देश के मीडिया ग्रुप्स को हिदायत दे रखी है कि वे अपने खिलाफ अफ़ग़ान सरकार के किसी नेगेटिव प्रसारण को बर्दाश्त नहीं करेंगे. तालिबान के हाथों कई महिला जर्नलिस्ट्स को हमलों का सामना करना पड़ा है. इसी साल जून में अरियाना न्यूज़ चैनल की मशहूर एंकर मिना काहिरी को उनकी कार में IED यानी बम लगा कर उड़ा दिया गया. साल 2019 में, पूर्व एंकर और कल्चर एडवाइज़र मीना मन्गल को दिन दहाड़े काबुल में गोली मार दी गई. जब वे कार के इंतज़ार में खड़ी थीं.
2020 में ग़ोर सूबे में कमर गुल के माता पिता को तालिबान के उग्रपंथियों ने गोली से उड़ा दिया. लेकिन ये बहादुर लड़की डरी नहीं, भागी भी नहीं. इसने और इसके 12 साल के भाई ने लड़कर तीन तालिबानी हमलावरों को मार डाला. तालिबान अब अफ़ग़ानिस्तान पर अपना राज क़ायम करने के बहुत क़रीब है. इस बार इस संगठन का और पाकिस्तान जैसे इसके हामियों का कहना है कि 1996 से लेकर 2001 तक राज करने वाला तालिबान अलग था और इस बार मुल्क पर काबिज़ होने वाला तालिबान बिलकुल अलग है.
इससे बड़ा झूठ हो नहीं सकता. मिसाल के तौर पर तालिबान अभी भी महिलाओं को पुरुषों के सामान अधिकार देने से इंकार करते हैं. उनक कहना है कि इस्लाम इसकी इज़ाज़त नहीं देता. बीते 20 साल में उनका नज़रिया बदला हो, ऐसा मानने की कोई वजह नहीं है. इसलिए अंतरराष्ट्रीय समाज को अब बहुत सजग रहने की ज़रुरत है, नहीं तो आने वाले दिन महीने और साल अफगानिस्‍तान की महिलाओं और बच्चियों के लिए बहुत तक़लीफ़देह होंगे.


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