सम्पादकीय

तेल के दाम पर केन्द्र और राज्य सरकारों में आरोप-प्रत्यारोप के बीच जनता ना-उम्मीद

Rani Sahu
30 April 2022 8:53 AM GMT
तेल के दाम पर केन्द्र और राज्य सरकारों में आरोप-प्रत्यारोप के बीच जनता ना-उम्मीद
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जिस दौरान प्रधानमंत्री मोदी (PM Modi) राज्यों के साथ तेल के दाम (Increased Oil Prices) पर चर्चा कर रहे थे उसी दौरान केंद्र सरकार का एक फैसला आया

प्रशांत सक्सेना

जिस दौरान प्रधानमंत्री मोदी (PM Modi) राज्यों के साथ तेल के दाम (Increased Oil Prices) पर चर्चा कर रहे थे उसी दौरान केंद्र सरकार का एक फैसला आया. उर्वरक पर किसानों की सब्सिडी को सरकार ने 40,000 करोड़ रुपये बढ़ा दिया, जिससे पूरी सब्सिडी ने 1,28,127 करोड़ रुपये के विशाल आंकड़े को छू लिया. इस सब्सिडी के लिए पैसे कहां से आएंगे? इसमें अनुमान लगाने की कोई जरूरत नहीं है क्योंकि सरकारें ईंधन की कीमतों पर टैक्स के अपने हिस्से को लेकर अडिग रहती हैं. करों को लेकर 'तुम्हारे हिस्से और मेरे हिस्से' पर केंद्र-राज्य के बीच टकराव होता है, जो राजनेताओं की वोटों की भूख और चुनाव जीतने के लिए प्रतीत होता है.
राजकोषीय विवेक निर्वाचन क्षेत्रों को संवारने और शिकायतों के निपटारे के आगे मार खा जाता है. प्रधानमंत्री ने बैठक में कोओपरेटिव फेडरलिस्म की बात की यानी सभी मिल कर आगे बढ़ें. मगर जिस तरह के संबंध और राजनीति आज केंद्र और राज्य सरकारों के बीच हैं. यह हंसी का पात्र मात्र बन गया लगता है. प्रधानमंत्री ने रूस-यूक्रेन युद्ध (Russia Ukraine War) को देखते हुए राज्यों से ईंधन पर करों को कम करने की बात कही. "मैं सभी राज्यों से अनुरोध करता हूं कि वर्तमान वैश्विक चुनौतियों के दौरान हमें कोओपरेटिव फेडरलिज्म यानी सहकारी संघवाद के अनुरूप एक टीम की तरह काम करना चाहिए", टाइम्स ऑफ इंडिया ने पीएम को उद्धृत करते हुए लिखा.
पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ रही हैं
अखबार ने कहा कि जिन राज्यों (ज्यादातर भाजपा शासित राज्यों) ने पेट्रोल और डीजल पर वैट में क्रमशः 5 रुपये और 6 रुपये प्रति लीटर की कमी की है, उनका अनुमान है कि उन राज्यों का पिछले साल नवंबर और मार्च 2022 के बीच लगभग 16,000 करोड़ रुपये का राजस्व कम हो गया है. केंद्र को भी हर महीने करीब 8,700 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ क्योंकि उसने इंधन पर उत्पाद शुल्क कम कर दिया. इस बीच सात गैर-भाजपा राज्यों ने नवंबर-मार्च के दौरान टैक्स कम नहीं करके 12,000 करोड़ रुपये कमाए. केंद्र चाहता है कि ये राज्य अपनी दरियादिली से केंद्र की मदद करें.
कोयले की भारी कमी और उसके परिणामस्वरूप बिजली कटौती से जूझ रहे महाराष्ट्र ने कहा, "यह कहना सही नहीं है कि राज्य के वैट के कारण पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ रही हैं." पश्चिम बंगाल की प्रतिक्रिया और भी कठोर रही. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा, हम तीन साल से हर लीटर पेट्रोल और डीजल पर 1 रुपये की सब्सिडी दे रहे हैं. साथ ही, केंद्र पर राज्य के 97,000 करोड़ रुपये बकाया हैं. पीएम का बयान भ्रामक हैं. कांग्रेस नेता भी प्रधानमंत्री की आलोचना करने में पीछे नहीं रहे. पार्टी नेता पवन खेड़ा ने दावा किया कि केंद्र ने पिछले साल पेट्रोल और डीजल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी से 26 लाख करोड़ रुपये कमाए और पांच राज्यों में फरवरी के चुनावों से पहले कीमतों में बढ़ोतरी को कुछ वक्त के लिए रोक दिया.
उन्होंने मांग की कि केंद्रीय उत्पाद शुल्क दरों को और कम किया जाना चाहिए. मीडिया ने उनके हवाले से कहा, "आपने राज्यों को जीएसटी का हिस्सा समय पर नहीं दिया और फिर आप राज्यों से वैट को और कम करने के लिए कहते हैं." पार्टी के दूसरे नेता दीपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा, हरियाणा (जहां भाजपा सत्ता में है) में पेट्रोल-डीजल पर सबसे अधिक वैट है. अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कीमत बढ़ने पर ईंधन की कीमतें बढ़ जाती हैं, लेकिन जब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गेहूं की कीमतें बढ़ती हैं तो किसानों को इस पर एमएसपी नहीं मिलता है.
कर और राजनीति
देश में पेट्रोल और डीजल पर दो तरह के टैक्स लगते हैं. केंद्र पांच तरह के ईंधन पर उत्पाद शुल्क और उपकर लगाता है जबकि राज्य सरकारें अतिरिक्त वैट लगाती हैं. अलग अलग वैट की दरों के कारण देश भर में ईंधन की कीमतें अलग होती हैं. विपक्षी दलों का तर्क है कि केंद्र ने ईंधन की कीमतों में बहुत कम कमी की है और पिछले साल 13 राज्यों में 29 विधानसभा सीटों और तीन लोकसभा क्षेत्रों में हुए उपचुनावों में हार के बाद यह केवल डैमेज कंट्रोल एक्सरसाइज है. सत्तारूढ़ भाजपा सरकार ने हिमाचल प्रदेश में तीन विधानसभा सीटें और एक लोकसभा सीट खो दी. राज्य के भाजपा नेताओं ने इसके लिए महंगाई और ईंधन की बढ़ती कीमतों को जिम्मेदार ठहराया.
पेट्रोलियम पदार्थों पर उत्पाद शुल्क लगाने से सरकार का राजस्व वित्त वर्ष 2021-22 की पहली छमाही में 33 प्रतिशत बढ़कर 1.71 लाख करोड़ रुपये हो गया. पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में राजस्व 1.28 लाख करोड़ रुपये रहा था. अगर हम कोरोना के पूर्व के स्तरों की तुलना करें तो वित्त मंत्रालय के तहत लेखा महानियंत्रक (सीजीए) से उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार यह वृद्धि लगभग 79 प्रतिशत रही. रिजर्व बैंक ने केंद्र से एक्साइज ड्यूटी कम करने को कहा है ताकि ईंधन की कीमतें कम हों और उसी अनुपात में मुद्रास्फीति भी कम हो. पेट्रोलियम पदार्थो की बढ़ी कीमतों का सीधा असर भोजन सहित दैनिक उपयोग की वस्तुओं की ढुलाई पर पड़ता है क्योंकि ये बढ़ जाता है. रसोई गैस की बढ़ती कीमत से भी घरेलू बजट बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है.
पेट्रोल और डीजल को जीएसटी के तहत लाने के पेचीदा मुद्दे पर केरल के वित्त मंत्री डॉ थॉमस इसाक ने कहा, "हमें एक ऐसी दर तय करनी चाहिए जो रेवेन्यू न्यूट्रल यानी राजस्व तटस्थ हो ताकि न तो टैक्स प्रभावित हों न ही आय." जीएसटी लागू होने के बाद से कच्चे तेल, पेट्रोल, डीजल, एटीएफ और प्राकृतिक गैस को इसके दायरे से बाहर रखा गया है. अधिकांश राज्यों ने परिवहन ईंधन को जीएसटी के तहत लाने की मांग का विरोध किया है. इसके परिणामस्वरूप न केवल एक समान कीमतें होतीं बल्कि उन्हें वैश्विक कीमतों के हिसाब से कम भी किया जा सकता. केरल उच्च न्यायालय के निर्देशों के तहत पिछली जीएसटी परिषद की बैठक में पांच ईंधन को जीएसटी के तहत लाने की आवश्यकता पर चर्चा हुई मगर जैसा कि अपेक्षित था इसे खारिज कर दिया गया.
एक कठिन निर्णय
भारत में रिफाइनरियां अपना मुनाफा कैसे कमाती हैं, इस पर सवाल उठ रहे हैं. "कोई तर्क दे सकता है कि रिफाइनरियों की सबसे बड़ी लागत कच्चे तेल में ही लगती है इसलिए कच्चे तेल की कीमतों में बदलाव पर पेट्रोल, डीजल की कीमतों को कम या बढ़ाना समझ में आता है. हालांकि, भारतीय रिफाइनरियां दुनिया में सबसे जटिल हैं जो न केवल बाजार में उपलब्ध सबसे घटिया कच्चे तेल को भी रिफाइन कर सकती हैं बल्कि अपने मार्जिन को भी अधिकतम करने की क्षमता रखती हैं. ऐसे समय में जब वैश्विक कीमतें आसमान छू रही हैं सरकार के द्वारा रिफाइनरियों के लिए अधिकतम लाभ की मार्जिन तय कर दी जानी चाहिए, वरिष्ठ आर्थिक विश्लेषक, औनिंद्यो चक्रवर्ती ने द ट्रिब्यून में लिखा.
सरकारी अनुमानों के मुताबिक, 22 मार्च से ईंधन की कीमतों में 26 प्रतिशत की वृद्धि हुई है क्योंकि तेल कंपनियों ने यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में उछाल का प्रभाव अपने उपभोक्ताओं पर बैक-टू-बैक मूल्य वृद्धि के माध्यम से देना शुरू कर दिया. ईंधन की लागत में वृद्धि ने भोजन और पैकेज्ड दूध, खाद्य तेल और गेहूं, आदि जैसी दूसरी आवश्यक वस्तुओं के दाम में अप्रत्याशित वृद्धि की है और एक आम घरेलू बजट को तहस-नहस कर दिया है. वैश्विक कच्चे तेल की कीमतें और डॉलर/रुपये की विनिमय दर भारत में तेल की रिटेल कीमतों को प्रभावित करती है क्योंकि देश अपने जरूरत मुताबिक तेल का लगभग 85 प्रतिशत हिस्सा आयात करता है. इस आयातित कच्चे तोल को घरेलू तेल विपणन कंपनियां रिफाइन कर पेट्रोल पंपों पर बेचती हैं. नई दिल्ली के थिंक टैंक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) की एक रिपोर्ट के अनुसार, मार्च 2014 और अक्टूबर 2021 के बीच, पेट्रोल पर सरकार द्वारा लगाया गया टैक्स 200 प्रतिशत से अधिक और डीजल पर 600 प्रतिशत से अधिक बढ़ गया.
"2014 के बाद से डीजल और पेट्रोल पर कर में काफी वृद्धि हुई है … इसलिए यह अब हमें परेशान करने लगा है," अल जज़ीरा ने ओआरएफ में डिस्टिंग्विस्ट फेलो और रिपोर्ट की सह-लेखिका लिडिया पॉवेल के बयान का हवाला दिया. पॉवेल ने कहा, संघीय और राज्य सरकारें दोनों एक दूसरे पर आरोप लगा रही हैं, दोनों एक दूसरे को टैक्स कम करने के लिए कह रही है लेकिन कोई भी वास्तव में इसे कम नहीं कर रहा क्योंकि यह राजस्व का एक बड़ा हिस्सा होता है. कुल मिलाकर मुझे करों में भारी कमी आती नहीं दिख रही है और मुझे लगता है कि लोगों को अब ऊंची कीमतों की आदत डाल लेनी चाहिए.
"यदि आप अपने उत्पाद शुल्क में कटौती करते हैं और दूसरी तरफ उर्वरकों पर अधिक सब्सिडी का भुगतान करते हैं तो आपको उधार लेने की जरूरत पड़ती है और आप ज्यादा राजस्व प्राप्त करने के लिए टैक्स दर को उतना बढ़ा देते हैं जितना उधार लेने की जरूरत थी," अल जज़ीरा ने प्रमुख अर्थशास्त्री और एचडीएफसी बैंक के उपाध्यक्ष अभीक बरुआ के हवाले से कहा. अब भारत को रूस से रियायती दर पर तेल मिलने की बात हो रही है मगर ऐसा होने का अनुमान कम है क्योंकि भारतीय तेल कंपनियों के पास रूसी कच्चे तेल को संशोधित करने की तकनीक उप्लब्ध नहीं है.
Rani Sahu

Rani Sahu

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