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चीन की ‘विस्तारवादी नीति’ के कारण भू-राजनीति तेजी से बदल रही है
ज्योतिर्मय रॉय.
चीन (China) की 'विस्तारवादी नीति' के कारण भू-राजनीति तेजी से बदल रही है. दुनिया में चीन की छवि एक आक्रामक राष्ट्र के रूप में उभरी है. ताइवान (Taiwan) को लेकर अमेरिका चीन आमने-सामने खड़ा है. जापान ने जहां ताइवान और अमेरिका (America) को समर्थन देने का वादा किया है, वहीं रूस चीन को पीछे से थपथपा रहा है. आर्थिक सहायता के नाम पर चीन आर्थिक रूप से कमजोर देशों की अर्थव्यवस्था पर कब्जा जमा रहा है. उन्हें कर्ज के जाल में फंसाकर चीन अपनी उपनिवेश का विस्तार करता रहा है. आलोचकों ने चीन पर उन देशों की संपत्ति 'जब्त' करने का आरोप लगाया है जो अपने कर्ज का भुगतान करने में असमर्थ है. 39 अफ्रीकी देशों को अरबों डॉलर का कर्ज देकर चीन ने वहां अपनी पकड़ मजबूत कर ली है.
चीन के उपनिवेशवाद को रोकने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन 9-10 दिसम्बर को 'समिट फॉर डेमोक्रेसी' का आयोजन कर रहे है. इस 'वर्चुअल इवेंट' में दुनिया के 110 देशों को आमंत्रित किया गया है. चीन और रूस को आमंत्रित नहीं किया गया है. क्योंकि अमेरिकी प्रशासन का दावा है कि दुनिया को तानाशाही से बचाने के लिए इस सम्मेलन को आयोजित किया जा रहा है. हालांकि, आमंत्रित देशों की सूची को लेकर दुनिया भर में आलोचना हो रही है.
'समिट फॉर डेमोक्रेसी' सम्मेलन में लोकतंत्र रैंकिंग को महत्व नहीं दिया गया
आठ दशक से लोकतंत्र और मानवाधिकारों पर काम कर रहे वाशिंगटन के 'फ्रीडम हाउस' के अनुसार, सम्मेलन में आमंत्रित 110 देशों में से 91 देशों में अब लोकतंत्र मौजूद है. दूसरे शब्दों में, 19 देशों में लोकतंत्र अधर में है या लोकतंत्र नहीं है. इनमें अंगोला, कांगो और इराक शामिल है. फ्रीडम हाउस का कहना है कि इन तीन देशों में लोकतंत्र अवरुद्ध है. सम्मेलन में केवल 17 अफ्रीकी देशों को आमंत्रित किया गया है, जो इस महाद्वीप का एक तिहाई हिस्सा हैं. हालांकि सिएरा लियोन, लेसोथो, मेडागास्कर, बेनिन और बुर्किना फ़ासो जेसे देश उन 17 देशों की तुलना में लोकतंत्र सूचकांक में बेहतर रैंक करते हैं, लेकिन उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया. अंगोला, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, इराक, केन्या, मलेशिया, पाकिस्तान, सर्बिया और जाम्बिया जेसे असाधारण रूप से कम लोकतंत्र रैंकिंग वाले देश को भी आमंत्रित किये जाने पर इस सम्मेलन की उद्देश्य को लेकर प्रश्न उठ रहे हैं.
अमेरिका लोकतंत्र के लिए एक अच्छा उदाहरण नहीं है
एक गुटनिरपेक्ष अंतरराष्ट्रीय थिंक टैंक, 'कॉर्निश एंडोमेंट' के एक वरिष्ठ सदस्य स्टीवन फेल्डस्टीन ने कहा कि आमंत्रित देशों में से 30 प्रतिशत के पास आंशिक या पूर्ण नागरिक और राजनीतिक अधिकार नहीं है. इस लिए बहुत से विश्लेषक इस आमंत्रण सूची को अमेरिकी स्वार्थ के साथ जोड़ कर देख रहे हैं. लेकिन कुछ लोगों ने चीनी धमकियों और निरंतर दमन के सामने ताइवान की लोकतंत्र की इच्छाशक्ती की प्रशंसा की है. अमेरिका में जातिवाद बढ़ रहा है. 17 देशों के नागरिकों के 'प्यू रिसर्च सेंटर' के एक हालिया सर्वेक्षण के अनुसार, 56 प्रतिशत सोचते हैं कि संयुक्त राज्य अमेरिका लोकतंत्र के लिए एक अच्छा उदाहरण नहीं है.
फ्रीडम हाउस लोकतंत्रों की सूची में संयुक्त राज्य अमेरिका, चिली, स्लोवाकिया और कोस्टा रिका से भी नीचे है. वास्तव में, वैश्विक जनसंख्या का 70 प्रतिशत अब या तो गैर-लोकतांत्रिक शासन में रहते हैं या लोकतांत्रिक रूप से पिछड़े देश में. विश्व की केवल 9 प्रतिशत आबादी उच्च प्रदर्शन वाले लोकतंत्रों में रहती है. 'द ग्लोबल स्टेट ऑफ डेमोक्रेसी 2021' की रिपोर्ट के मुताबिक ब्राजील, भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, हंगरी, फिलीपींस और पोलैंड जैसे देशों में लोकतंत्र प्रभावित हुआ है.
अमेरिका में 2024 का राष्ट्रपति चुनाव पारदर्शी होगा?
लोगों के लिए मतदान को अधिक सख्त बनाने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के 19 राज्यों में 33 कानून बनाए गए हैं. कुछ राज्यों में तटस्थ चुनाव अधिकारियों की जगह पार्टी विचारधारा के लोगों को नियुक्त किया गया है. संयुक्त राज्य अमेरिका पिछले महीने स्टॉकहोम स्थित अंतरराष्ट्रीय थिंक टैंक 'इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्टोरल असिस्टेंस' (International IDEA) द्वारा इतिहास में पहली बार प्रकाशित गुमराह लोकतंत्रों की सूची में है. वर्तमान में, उनके देश के नागरिक अमेरिकी चुनाव की विश्वसनीयता को लेकर संदेह में हैं.
गैर-लाभकारी अमेरिकी मीडिया नेशनल पब्लिक रेडियो के एक सर्वेक्षण के अनुसार, केवल 33 प्रतिशत रिपब्लिकन सोचते हैं कि 2024 का राष्ट्रपति चुनाव पारदर्शी होगा. ऐसे में डेमोक्रेसी समिट की सफलता पर सवाल खड़े किए जा सकते हैं. इतिहास अमेरिका के खिलाफ भी बोलता है. जून 2000 में पोलैंड की राजधानी वॉरसॉ में 108 देशों की लोकतंत्र को लेकर बैठकें हुई. इसकी शुरुआत तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री मेडेलीन अलब्राइट और पोलिश विदेश मंत्री ब्रोनिस्लाव जेरेमिक ने की थी. इस में रूस और कई अरब देशों को संभावित लोकतंत्रों के रूप में आमंत्रित किया था.
मानव अधिकारों की रक्षा के लिए वॉरसॉ संधि की शपथ ली गई थी. हालांकि, उस घोषणा पर अमल ज्यादा नहीं देखा गया है. इसके विपरीत, पिछले 15 वर्षों में दुनिया में लोकतंत्र की स्थिति दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है. वॉरसॉ संधि को लागू करने में विफलता का कारण खोजने की कोशिश में, कई लोग कहते हैं कि यह एक विदेश मंत्री स्तर का सम्मेलन था. इसके अलावा, पहल मुख्य रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका और पोलैंड के विदेश मंत्री को करनी थी.
अमेरिका नए चीनी-उपनिवेशवाद के विरुद्ध मनोवैज्ञानिक युद्ध का सहारा ले रहा है
यह सम्मेलन ऐसे समय हो रहा है जब चीन अपनी विस्तारवादी नीति के कारण आक्रामक होता जा रहा है. विश्व बाजार व्यवस्था में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए चीन कर्ज के जाल से कमजोर देशों पर अपनी पकड़ मजबूत कर रहा है. चीन अमेरिका को चुनौती देकर खुद को आर्थिक महाशक्ति के रूप में स्थापित करना चाहता है. ताइवान को लेकर चीन और अमेरिका के बीच मतभेद युद्ध के कगार पर है. ताइवान मामले में जापान अमेरिका के साथ खड़ा है और चीन को रूस का समर्थन प्राप्त है.
ऐसे में अमेरिका द्वारा इस तरह का सम्मेलन आयोजित करना भू-राजनीति की दिशा में एक कूटनीतिक प्रयोग है. मौजूदा हालात में अमेरिका नए चीनी उपनिवेशवाद के विरुद्ध मनोवैज्ञानिक युद्ध का सहारा ले रहा है. मनोवैज्ञानिक युद्ध का अर्थ है एक ऐसी लड़ाई जिसमें युद्ध जीतने का प्रयास हथियारों या तर्क से नहीं, बल्कि सभी दलों के मन और दिमाग और उनकी सोच को नियंत्रित करके किया जाता है.
लोकतन्त्र स्थान-काल और स्थानीय विचारधारओ पर निर्भर है
लोकतन्त्र भिन्न-भिन्न सिद्धान्तों का एक मिश्रण है, जिसकी सफलता स्थान-काल और स्थानीय विचारधारओं पर निर्भर है. शासक का पूर्ण बहुमत होना स्वस्थ्य लोकतंत्र का प्रतीक माना जाता है. लेकिन जिस चुनाव के जरिए शासक का चयन किया जा रहा है, उसमें पारदर्शिता और विश्वसनीयता होनी चाहिए. लोकतंत्र मे विपक्षी दल की स्वच्छ भूमिका और भागीदारी उतनी ही महत्वपूर्ण होती है, जितनी सरकार का बहुमत होना.
दुर्भाग्य से, यह देखा गया है कि कई लोकतांत्रिक देशों में विपक्ष की सत्ता के लिए राजनीति का गिरता स्तर लोकतंत्र के लिए खतरा बन जाता है. सरकार को सत्ता से हटाने के लिए सोशल मीडिया के माध्यम से क्षेत्रीय मुद्दों का अंतर्राष्ट्रीयकरण किया जाता है, जो जाने-अनजाने भू-राजनीतिक षड्यंत्र का हिस्सा बन जाते हैं.
लोकतंत्र उपनिवेशवाद से अधिक मानवतावादी है
लोकतंत्र की सफलता अब विश्व वाणिज्य से भी जुड़ी हुई है, जो भू-राजनीति को प्रभावित करती है. विश्व महाशक्ति की लड़ाई में चीन जहां लोकतंत्र को हथियार के रुप में इस्तेमाल करना चाहता है, वहीं अमेरिका लोकतंत्र को चीन के खिलाफ हथियार की रुप में इस्तेमाल करना चाहता है. सत्ता की लालसा में विपक्ष अब छोटे से छोटे क्षेत्रीय मुद्दों का भी अंतर्राष्ट्रीयकरण कर रहा है, जिसका सीधा प्रभाव स्थानीय सरकार पर देखा जा सकता है. यह लोकतंत्र के सिद्धांत के खिलाफ है. ऐसे में अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन के इस लोकतंत्र सम्मेलन की सफलता और असफलता पर सवाल उठाए बिना लोकतंत्र पर चर्चा होनी चाहिए. क्योंकि लोकतंत्र उपनिवेशवाद से ज्यादा मानवतावादी है. इसलिए बाइडेन के इस प्रयास का स्वागत किया जाना चाहिए.
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