सम्पादकीय

अमेरिका का असली संकट

Triveni
16 Jun 2021 2:30 AM GMT
अमेरिका का असली संकट
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अमेरिका की असली मुसीबत यह नहीं है कि चीन आज उसके प्रतिद्वंद्वी के रूप में खड़ा हो गया है।

अमेरिका की असली मुसीबत यह नहीं है कि चीन आज उसके प्रतिद्वंद्वी के रूप में खड़ा हो गया है। उसकी असली मुसीबत यह है कि देश के अंदर करोडों लोगों की निगाह में वहां की व्यवस्था ने साख खो दी है। यही वहां जारी तीखे ध्रुवीकरण का कारण है, जिसकी वजह से जो बाइडेन प्रशासन अपने एजेंडे को लागू कर पाने में पंगु नजर आ रहा है। ये साख क्यों गई? इसका कुछ संकेत हाल में वेबसाइट प्रोपब्लिका.ओआरजी के खुलासे से मिला। इस खुलासे ने अमेरिकी शासकों के इस दावे की पोल खोल दी कि अमेरिकी सिस्टम के भीतर हर व्यक्ति वाजिब टैक्स चुकाता है। वेबसाइट प्रोपब्लिका ने टैक्स विभाग (इंटरनल रेवेन्यू सर्विस- आईआरएस) के 15 साल के गोपनीय दस्तावेजों को हासिल कर जो तथ्य बताए हैं, वे चौंकाने वाले हैं। इसके मुताबिक अमेरिका के सबसे धनी लोग उससे भी कम टैक्स चुकाते हैं, जितना वहां के आम कामकाजी लोग चुकाते हैँ।

मसलन, दुनिया के सबसे धनी व्यक्ति अमेजन कंपनी के मालिक जेफ बिजॉस ने 2007 और 2011 में एक पैसा भी इनकम टैक्स नहीं चुकाया। दुनिया के दूसरे सबसे धनी व्यक्ति टेसला कंपनी के संस्थापक एलन मस्क 2018 में शून्य इनकम टैक्स चुकाया। अरबपति माइकल ब्लूमबर्ग ने हाल के कई वर्षों में, अरबपति निवेशक कार्ल इकान ने दो वित्तीय वर्ष में और अरबपति जॉर्ज सोरोस ने लगातार तीन साल अमेरिका की संघीय सरकार को एक पैसा भी इनकम टैक्स के रूप में नहीं दिया। वॉरेन बुफेट, बिल गेट्स, रुपर्ट मरडॉक और मार्क जकबर्ग सबकी कुछ ऐसी ही मिलती-जुलती कहानी है। प्रोपब्लिका के मुताबिक आईआरएस के दस्तावेज दिखाते हैं कि सबसे धनी लोग हर साल बढ़ती जा रही अपनी अरबों डॉलर की आमदनी का बेहद छोटा हिस्सा टैक्स के रूप में चुका रहे हैं। और गौरतलब है कि वे टैक्स चोरी नहीं करते। बल्कि वे ऐसा वे बिल्कुल वैध ढंग से करते हैं। दूसरी तरफ आम कामकाजी लोगों जैसे-जैसे आमदनी बढ़ती है, उनका इनकम टैक्स भी बढ़ता चला जाता है। साफ यह हुआ है कि अमेरिकन अरबपति जिन उपायों के सहारे टैक्स बचाते हैं, वे आम लोगों की पहुंच से बाहर हैं। अरबपतियों को सबसे ज्यादा आमदनी अपने शेयरों और जायदाद का मूल्य बढ़ने से होती है। ऐसी आमदनी पर अमेरिका में तब तक टैक्स नहीं लगता, जब तक कि उनकी बिक्री ना की जाए। ऐसी सुविधा देने वाले अन्यायपूर्ण किसी सिस्टम की साख अगर खत्म हो, तो उसमें हैरत क्या है?

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