सम्पादकीय

अमेरिका की बंदूक संस्कृति

Subhi
28 May 2022 3:31 AM GMT
अमेरिका की बंदूक संस्कृति
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दुनिया का सबसे ताकतवर और विकसित राष्ट्र होने का दावा करने वाला अमेरिका इन दिनों घरेलू हिंसा से जूझ रहा है। वैसे तो इस मुल्क में नस्लीय हिंसा और स्कूलों व धार्मिक स्थलों से लेकर सार्वजनिक जगहों पर गोलीबारी की घटनाएं आम हैं,

अभिषेक कुमार सिंह: दुनिया का सबसे ताकतवर और विकसित राष्ट्र होने का दावा करने वाला अमेरिका इन दिनों घरेलू हिंसा से जूझ रहा है। वैसे तो इस मुल्क में नस्लीय हिंसा और स्कूलों व धार्मिक स्थलों से लेकर सार्वजनिक जगहों पर गोलीबारी की घटनाएं आम हैं, लेकिन पिछले कुछ समय में इनमें जिस तेजी से इजाफा होता जा रहा है, उसने अमेरिकी प्रशासन और समाज दोनों को हिला दिया है।

हाल में टेक्सास प्रांत के एक स्कूल में अठारह वर्षीय किशोर ने गोलियां बरसा कर उन्नीस बच्चों और दो शिक्षकों को मार डाला। ऐसे में एक बार फिर यह सवाल सामने है कि आखिर यह हिंसा क्यों हो रही है? क्या इसीलिए कि संवैधानिक प्रावधानों के तहत जनता को हथियार रखने की इजाजत मिली हुई है? अगर ऐसा है तो क्यों नहीं इस कानून को खत्म कर दिया जाए? आखिर कैसे मुक्ति पाई जाए इस बंदूक संस्कृति से?

अमेरिका में बंदूक संस्कृति की नींव सन 1791 में ही पड़ गई थी। उस वर्ष किए गए संविधान के दूसरे संशोधन में नागरिकों को छोटे हथियार खरीदने और रखने का अधिकार दिया गया था। तब अमेरिका ब्रिटिश शासन के अधीन था और वहां कोई स्थायी सुरक्षाबल नहीं था। इसलिए सरकार और प्रशासन ने तय किया कि आम लोगों को अपनी और परिवार की सुरक्षा के लिए हथियार रखने का अधिकार दिया जाए। लेकिन इस अधिकार ने वहां कितनी समस्याएं पैदा कर दी हैं, इसका अंदाजा पचपन साल पहले तत्कालीन राष्ट्रपति लिंडन बेंस जानसन के दौर में लग गया था। तब अमेरिका में करीब नौ करोड़ बंदूकें आम लोगों के पास थीं।

हथियार के मामले में आत्मनिर्भर लोगों के कारण समाज में पैदा हो रही समस्याओं के मद्देनजर ही लिंडन बेंस को यह कहने के लिए मजबूर होना पड़ा था कि अमेरिकी समाज में बंदूकों के कारण हो रही मौतों के पीछे विरासत और संस्कृति का लापरवाह रवैया है। बंदूकों, राइफलों और रिवाल्वर जैसे छोटे हथियारों की यह आत्मनिर्भरता कितना घातक रूप धारण कर चुकी है, इसका उदाहरण सिर्फ इसी वर्ष (2022) में अब तक ऐसी सत्ताईस घटनाओं का घटित होना है।

कानून के तहत छोटे हथियार रखने के इस अधिकार के तहत अमेरिका में प्रत्येक सौ नागरिकों के पास एक सौ बीस से ज्यादा हथियार हैं। स्विटजरलैंड की संस्था स्माल आर्म्स सर्वे ने चार साल पहले आकलन पेश किया था कि अमेरिका की तेंतीस करोड़ की आबादी में नागरिकों के पास मौजूद छोटे हथियारों की संख्या करीब चालीस करोड़ तक पहुंच चुकी है। इसी से जुड़ा एक आकलन यह भी है कि दुनिया की छियालिस फीसद बंदूकें तो अकेले अमेरिकियों के पास हैं, जबकि आबादी के मामले में अमेरिका का योगदान सिर्फ पांच फीसद है।

उल्लेखनीय यह भी है कि अमेरिका के सिवाय ग्वाटेमाला और मैक्सिको दो और देश हैं जहां जनता को संवैधानिक अधिकार के तहत बंदूकें रखने का हक दिया गया था। हालांकि इन दोनों देशों में भी कम ही नागरिकों के पास हथियार हैं। ऐसा इसलिए है कि ग्वाटेमाला और मैक्सिको में छोटे हथियार खुलेआम नहीं बेचे जाते। मैक्सिको में तो बंदूक बेचने वाली ऐसी सिर्फ एक ही दुकान है और उस पर भी सेना का नियंत्रण है। जबकि अमेरिका में तो ऐसी सैकड़ों दुकानें हैं जहां से बंदूकें फल-सब्जी की तरह खरीदी जा सकती हैं।

हथियार खरीदने के लिए वहां लोगों को अपने नाम, पते, जन्मतिथि और नागरिकता की जानकारी देनी होती है। ये हथियार किसने खरीदे, इस जानकारी को संघीय जांच ब्यूरो से साझा किया जाता है जो खरीदार की पृष्ठभूमि जांचने के अलावा सिर्फ यह सुनिश्चित करता है कि कोई खतरनाक अपराधी, नशेड़ी या भगोड़ा अथवा मानसिक रोगी व्यक्ति ऐसा हथियार न खरीद ले।

गौरतलब है कि कोरोना काल में समाज में पैदा हुए खौफ के कारण अमेरिकियों ने ऐसे हथियार और भी ज्यादा संख्या में खरीदे। एक रिपोर्ट के मुताबिक जनवरी 2019 से अप्रैल 2021 के बीच वहां पचहत्तर लाख वयस्कों ने पहली बार बंदूक खरीदी। हाल के दो-ढाई वर्षों में अमेरिका में और एक करोड़ दस लाख लोगों के पास बंदूकें आ गईं, जिनमें करीब पचास लाख खरीदार तो नाबालिग ही थे।

ऐसे हथियार खरीदारों में से आधी संख्या महिलाओं की भी रही, जो यह दर्शाता है कि महिलाएं अपनी सुरक्षा के लिए वहां की पुलिस और कानून पर ज्यादा भरोसा नहीं कर पा रही हैं। लेकिन हथियारों की यह खरीदारी अमेरिकी समाज और सरकार के लिए कितनी गंभीर समस्या बन गई है, इसे 1968 से 2017 के बीच गोलीबारी में हुई पंद्रह लाख मौतों के संदर्भ से समझा जा सकता है। ये बंदूकें दूसरों की जान लेने के काम ही नहीं आ रहीं, बल्कि आत्महत्याओं के इजाफे का सबब भी बन रही हैं।

यूएस सेंटर्स फार डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन (सीडीसी) का आकलन बताता है कि वर्ष 2020 में अमेरिका में जो पैंतालीस हजार मौतें बंदूकों से हुई गोलीबारी की वजह से हुईं, उनमें आधे से ज्यादा यानी चौवन फीसद मामले आत्महत्या के थे। इस चिंता को अमेरिका में वर्ष 2016 में कराए गए एक अध्ययन में पहले ही प्रकट कर दिया था कि वहां आत्महत्या की बढ़ती दर के पीछे अहम कारण हर घर में बंदूक की मौजूदगी है। स्पष्ट है, जब हथियारों का इतना बड़ा जखीरा किसी देश और समाज में खुलेआम मौजूद होगा, तो उससे जुड़े खतरे भी उतने ही बड़े होंगे।

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने भले ही ऐसी घटनाओं पर चिंता जताई है और सवाल उठाए हैं, पर इसका एक सच यह है कि वहां मौजूद इस बंदूक संस्कृति को बड़े पैमाने पर राजनीतिक संरक्षण हासिल है। अमेरिकी राजनीति में ऐसे कुछ गुट सक्रिय हैं जो बंदूकों की खुलेआम खरीद-फरोख्त जारी रखने के लिए भारी राजनीतिक दबाव बनाए रखते हैं।

नेशनल राइफल एसोसिएशन नामक यह समूह इतना ताकतवर है कि पैसे के बल पर अमेरिकी कांग्रेस के सदस्यों को प्रभावित करने में कामयाब हो जाता है। कहा तो यह भी जाता है कि यह समूह अमेरिकी चुनावों तक में भारी पैसा झोंकता है। यही वजह है कि संबंधित कानून में फेरबदल की इच्छा और ऐसी कोशिशें सिरे नहीं चढ़ पाती हैं, जबकि खुद अमेरिकी जनता इससे जुड़े कानून में बदलाव की हिमायती है।

गौरतलब है कि दो साल पहले वहां कराए गए एक सर्वे में बावन फीसद लोगों ने बंदूकों की खरीद-फरोख्त संबंधी कानून में सख्ती अपनाने के पक्ष में वोट किया था। राजनीतिक दल डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थकों में से इनक्यानवे फीसद ने भी ऐसी सख्ती की हिमायत की थी, जबकि रिपब्लिकन पार्टी की ओर से सिर्फ चौबीस फीसद ही ऐसी सख्ती के समर्थन में थे। कानून में कोई तब्दीली नहीं चाहने वालों का प्रतिशत सिर्फ पैंतीस था।

एक अहम प्रश्न यह है कि अमेरिका में आखिर लोग पुलिस-प्रशासन पर भरोसा क्यों नहीं करते? उन्हें ऐसा क्यों लगता है कि किसी भी अपराध से खुद को सुरक्षित रखने का सबसे अच्छा उपाय खुद के पास हथियार रखना ही है? एक साल पहले प्यू रिसर्च सेंटर ने इस सवाल का जवाब पाने के लिए जो सर्वेक्षण कराया था, उसमें सामने आया था कि यह समस्या खुद अमेरिकियों को भी काफी परेशान कर रही है।

बंदूक से जुड़ी हिंसा देश के बजट घाटे (49 फीसदी), हिंसक अपराधों की दर (48 फीसदी) और कोरोना वायरस संकट (47 फीसदी) जितनी ही बड़ी है। चूंकि इन सभी समस्याओं से पार पाने में सरकारें निरंतर विफल हो रही हैं, इसलिए जनता का भरोसा प्रशासन और सरकार से उठता जा रहा है। इसी वजह से वे बंदूकों की शरण में जा रहे हैं।


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