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By NI Editorial
आरसीईपी या सीपीटीपीपी में अमेरिका के ना होने से पैदा हुई कमी की भरपाई उसकी नई पहल नहीं कर पाएगी। दरअसल इंडो-पैसिफिक इकॉनमिक फ्रेमवर्क नाम से हुई इस पहल के कई पहलू अभी स्पष्ट नहीं हैँ।
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने पिछले अक्टूबर में ही ये बता दिया था कि वे एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लिए एक विशेष आर्थिक पहल करेंगे। इस क्षेत्र की अपनी मौजूदा यात्रा में उन्होंने इसकी शुरुआत कर दी। लेकिन इस क्षेत्र के जानकार यह नहीं मानते कि आरसीईपी या सीपीटीपीपी में अमेरिका के ना होने से पैदा हुई कमी की भरपाई नहीं ये पहल कर पाएगी। वियतनाम के प्रधानमंत्री फाम मिन्ह चिन्ह खुलेआम कह चुके हैं कि इंडो-पैसिफिक इकॉनमिक फ्रेमवर्क (आईपीईएफ) नाम से हुई इस पहल के कई पहलू अभी स्पष्ट नहीं हैँ। दरअसल, आईपीईएफ में शामिल होने वाले देशों को व्यापार, श्रम मानदंडों और पर्यावरण कसौटियों के बारे में नए नियम स्वीकार करने होंगे। जाहिर है, विकासशील देशों की नजर में यह आईपीईएफ का नकारात्मक पहलू बना रहेगा। आईईपीएफ में सप्लाई चेन को मजबूत बनाने के नियम शामिल किए गए हैँ।
यह एक तरह से सप्लाई चेन से चीन को बाहर करने की योजना है। लेकिन ऐसा होने पर वह आपूर्ति शृंखला भंग हो जाएगी, जिसमें आसियान देश शामिल हैँ। स्पष्टतः ये देश ऐसी किसी स्थिति के लिए तैयार नहीं होंगे। फिर सवाल यह भी है कि क्या बाइडेन के राष्ट्रपति ना रहने के बाद भी अमेरिका इस पहल पर कायम रहेगा? तो इन अनिश्चितताओं के कारण ऐसी संभावना नहीं दिखती की आईपीईएफ इस क्षेत्र में ज्यादा प्रभावशाली हो पाएगा। यह तो साफ है कि अमेरिकी पहल के पीछे मकसद चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकना है। अमेरिका को उम्मीद है कि आईपीएफ से एशियाई देशों के साथ उसका सहयोग बढ़ेगा। लेकिन उसे यह स्पष्ट भी करना पड़ा है कि नई पहल मुक्त व्यापार समझौता नहीं है। असल में कि पूर्व राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के समय से अमेरिका में आम माहौल मुक्त व्यापार समझौतों के खिलाफ है। इसलिए बाइडेन प्रशासन ने यह स्पष्टीकरण जारी करना उचित समझा। अमेरिका का आकलन है कि इस क्षेत्र से अमेरिका के हट जाने का फायदा चीन को मिला। आरसीईपी के जरिए उसने इस क्षेत्र से प्रगाढ़ आर्थिक संबंध बना लिए। तो अब अमेरिका जागा है। लेकिन इसमें उसने शायद कुछ ज्यादा देर कर दी है।

Gulabi Jagat
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