- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- लापरवाही से अमेरिकी...
x
यह नहीं कहना चाहता हो
नवंबर, 2008 में लीमन ब्रदर्स के तबाह होने के कुछ ही हफ्ते बाद लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में बड़े अर्थशास्त्रियों की एक बैठक में महारानी ने एक सामान्य प्रश्न पूछा कि इतने बड़े संकट को आते हुए किसी ने कैसे नहीं देखा और तमाम बड़े विशेषज्ञ अनजान बने रहे. इस सवाल पर बैठक में सन्नाटा छा गया. यह एक साधारण सवाल था, लेकिन आज 15 वर्षों के बाद भी इसका ठोस जवाब नहीं दिया जा सका है. उस संकट के बारे में समझाने वाले सिद्धांतों और उत्तरों की तलाश अभी भी जारी है. यह भी हो सकता है कि इसका उत्तर सभी को पता हो, पर कोई भी यह नहीं कहना चाहता हो कि ‘राजा नंगा है.’
महारानी के सवाल के जवाब में ब्रिटेन के बड़े अर्थशास्त्रियों ने तीन पन्ने का एक आलेख लिखा था. उस लेख में जानकार लोगों की विफलता को दोष दिया गया था. उसमें वित्तीय क्षेत्र और राजनीति तथा अभिजनों की आंखें बंद रखने की मनोवैज्ञानिक प्रवृत्ति को भी दोषी ठहराया गया था. संकट के लिए अनेक कारक, जैसे- गलत सलाह, लेखा-जोखा करने वालों की लापरवाही, नियामकों का मुंह फेर लेना, अत्यधिक ऋण बांटना, बिना आय और संपदा के लोगों द्वारा उधार लेना आदि, जिम्मेदार थे.
लेकिन मुख्य रूप से इसके पीछे लापरवाही और दिवास्वप्न उत्तरदायी थे. उस संकट के बाद सिटी बैंक के अध्यक्ष ने 2008 से पहले के वर्षों के बारे में कहा था कि जब तक संगीत बजता रहता है, आपको नाचना होता है. इसका सीधा मतलब यह है कि उनका बैंक जोखिम का पूरा अंदाजा होते हुए भी कर्ज बांटता रहा था. साल 2008 के संकट के बाद कई सरकारों, मुख्य रूप से अमेरिका के नेतृत्व में, कड़े अधिनियम बनाये ताकि ऐसे संकटों को फिर से आने से रोका जा सके, जो अत्यधिक कर्ज बांटने, लापरवाह जोखिम प्रबंधन और अन्य गलत व्यवहारों का नतीजा होते हैं.
अमेरिका में प्रसिद्ध डोड-फ्रैंक विधेयक पारित किया गया. इसके बावजूद हमारे सामने एक बड़ी तबाही मौजूद है. अमेरिका के कैलिफोर्निया स्थित सिलिकन वैली बैंक की तबाही यह इंगित करती है कि 2008 के बाद उठाये गये वैधानिक कदम नाकाफी साबित हुए हैं. वित्तीय संकट के बार-बार आने की आदत होती है तथा बीते तीन दशकों में इनकी आवृत्ति बढ़ गयी है.
विभिन्न संकटों के विवरणों में विविधता है और उनमें कुछ बहुत गंभीर भी नहीं हैं, पर सभी के पीछे के मूल कारण एक जैसे या लगभग समान हैं. यह लालच, फिर भय और बेचैनी, झुंड की मानसिकता, लेखा-जोखा करने वाले या जांचकर्ताओं का ढीलापन तथा नियामकों की लापरवाही का एक मिश्रण है. इस मिश्रण के शीर्ष पर कभी-कभी राजनीतिक दबाव होता है. डूबने से महज तीन सप्ताह पहले फोर्ब्स पत्रिका ने सिलिकन वैली बैंक को अमेरिका के बेहतरीन सौ बैंकों की सूची में शामिल किया था.
एक प्रमुख रेटिंग संस्थान केपीएमजी ने भी इस बैंक को पूरी तरह स्वस्थ बताया था. सिलिकन वैली बैंक के पास लगभग 200 अरब डॉलर जमा थे, जिसमें से 93 प्रतिशत का कोई बीमा फेडरल डिपॉजिट इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन से बीमा नहीं कराया गया था. जमा राशि में से अधिकांश को कर्ज के रूप में नहीं बांटा गया था, बल्कि इन्हें सरकार में या अन्य सुरक्षित बॉन्ड में निवेशित किया गया था. जब ब्याज दर बढ़ने लगी, तो बॉन्ड के मूल्य में गिरावट होने लगी.
अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व द्वारा लगातार दरें बढ़ायी गयी हैं और दर अब लगभग पांच प्रतिशत तक जा पहुंची है. इसका मतलब यह है कि अगर बैंक अपने बॉन्ड बेचता, तो उसे एक-चौथाई दाम भी नहीं मिल पाता. अगर जमाकर्ता अपना पैसा निकालने आते, तो वे पाते कि उनका धन गायब हो चुका है. आखिर बैंक के जोखिम प्रबंधन ने इस स्थिति का अनुमान क्यों नहीं लगाया? फेडरल रिजर्व के जांचकर्ताओं ने बैंक को पहले आगाह क्यों नहीं किया? असल में फेडरल डिपॉजिट इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन ने लूट जाने के जोखिम के कारण ही बैंक को बंद करने का निर्णय लिया.
पैसा निकालने की होड़ में कुछ ही लोगों को अपना धन वापस मिल पाता. बाकी लोगों का सब कुछ लुट जाता, सिवाय उस राशि के, जिसका बीमा था. सिलिकन वैली बैंक का केवल सात प्रतिशत जमा ही बीमित था. इसी कारण पैसा निकालने की होड़ मची और बैंक डूब गया. अब राजनीतिक दबाव के कारण अमेरिकी राष्ट्रपति ने घोषणा की है कि हर जमाकर्ता को उसका पैसा वापस मिलेगा. उन्होंने इसे सरकारी बेलआउट मानने से इनकार किया है, लेकिन यह बेलआउट ही है, जिसके लिए सार्वजनिक धन का उपयोग किया जा रहा है.
फेडरल रिजर्व अब बैंक को बिना जमानत के सस्ता कर्ज देगा ताकि वह जमाकर्ताओं को पैसे लौटा सके. इसी बीच, न्यूयॉर्क स्थित सिग्नेचर बैंक भी बंद हो गया. वैश्विक उपस्थिति वाला स्विट्जरलैंड का सबसे बड़ा बैंक क्रेडिट सुइस भी संकटग्रस्त हो गया है. इसे मामूली दाम पर दूसरे बैंक को बेच कर बचाने की कोशिश हो रही है. बड़े बैंकों का तबाह होना, जो अभी नियंत्रण में है, मंदी की ओर संकेत करता है. इस बार फेडरल रिजर्व समेत केंद्रीय बैंकों ने तुरंत ब्याज दरों में कटौती नहीं की है क्योंकि मुद्रास्फीति उच्च स्तर पर बनी हुई है.
यह वित्तीय संकट, जो भले 2008 से छोटा है, बैंक-आधारित वित्तीय प्रणाली की कमजोरी की ओर संकेत करता है. बैंक जमाकर्ताओं से पैसे लेकर उधार देते हैं तथा आर्थिक वृद्धि में योगदान करते हैं. लेकिन उधार ली गयी रकम परिसंपत्ति बन जाती है, जिसे तुरंत नगदी में नहीं बदला जा सकता है, जबकि जमाकर्ता कभी भी नगदी की मांग कर सकता है. यह विसंगति इसलिए काम करती रहती है क्योंकि इस तंत्र का आधार भरोसा है.
जमाकर्ताओं को भरोसा रहता है कि बैंक में उनका पैसा सुरक्षित है. उन्हें आशा रहती है कि बैंक बहुत अधिक जोखिम लेकर कर्ज नहीं बांटेंगे. उनका विश्वास होता है कि लालच हावी नहीं होगा. वे नियामकों के सतर्क रहने की आशा रखते हैं.
वे लेखा-जोखा करने वालों पर भी विश्वास करते हैं. लेकिन भय और बेचैनी में ये सब स्तंभ ढह सकते हैं और जमाकर्ताओं में भगदड़ मच सकती है. स्वस्थ बैंक भी बैंकिंग व्यवस्था की खामियों की वजह से संकट में आ सकते हैं. इसलिए नियामकों और नेताओं का भरोसा बना रहना चाहिए, जो लोगों से संयमित रहने का आग्रह करते हैं. दुर्भाग्यपूर्ण है कि अक्सर आम लोगों और करदाताओं को दुर्गति की भरपाई के लिए नुकसान वहन करना पड़ता है. लाभ निजी है और घाटा सामाजिक- यह लगातार घटित होता रहता है.
sorce: prabhatkhabar
Tagsलापरवाहीअमेरिकी बैंक संकटग्रस्तNegligenceAmerican banks in troubleदिन की बड़ी ख़बरजनता से रिश्ता खबरदेशभर की बड़ी खबरताज़ा समाचारआज की बड़ी खबरआज की महत्वपूर्ण खबरहिंदी खबरजनता से रिश्ताबड़ी खबरदेश-दुनिया की खबरराज्यवार खबरहिंदी समाचारआज का समाचारबड़ा समाचारनया समाचारदैनिक समाचारब्रेकिंग न्यूजBig news of the dayrelationship with the publicbig news across the countrylatest newstoday
Triveni
Next Story