सम्पादकीय

अमेरिका सत्यवादी व चीन झूठा प्रमाणित!

Gulabi
29 Dec 2020 1:09 PM GMT
अमेरिका सत्यवादी व चीन झूठा प्रमाणित!
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दुष्टता व नीचता में रंगे हुए होने से।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सन् 2020 को याद रखेगी पीढ़ियां-2 : सत्य और झूठ, राम और रावण की फितरत में मनुष्य व्यवहार कैसे दो रूप लिए हुए है, उसमें इंसान का क्या बनता है और राष्ट्र-राज्य कैसे देवतुल्य या राक्षसी बने होते हैं इसका साक्ष्य वर्ष था सन् 2020! कैसे? सोचें, क्यों वायरस बना, कैसे फैला? जवाब है चीन के वुहान के लाइव पशु बाजार या वहां की प्रयोगशाला में राक्षसी खानपान, व्यवहार से देश के झूठ में, दुष्टता व नीचता में रंगे हुए होने से। इसे चाहें तो मेरा हिंदू, बाह्मणी पूर्वाग्रह मानें लेकिन है तो है! मेरा मानना है कि जीवित पशु-पक्षियों के लाइव पशुबाजार में लोगों की जिंदा जीव के साथ क्रूरता राक्षसी प्रवृत्ति है। चीन का खाना राक्षसी खाना है। जो जैसा खाता है वह वैसे संस्कार लिए होता है। तभी चमगादड़ का लाइव जैविक अंश मनुष्य के शरीर में घुसा और कोविड-19 का विषाणु पैदा हुआ। पहले भी वायरस की महामारियां चीन से सर्वाधिक फैली हैं। बहरहाल सन् 2019 के आखिर में जब नया वायरस पैदा हुआ तो चीन ने क्या व्यवहार किया? अपनी राक्षसी-नीच प्रवृत्ति के संस्कार में वायरस को छुपाया (यह शक अपनी जगह है कि वुहान की प्रयोगशाला में वायरस पर काम हो रहा था)। दुनिया से सच नहीं बोला। लगभग तीन महीने चीन और उसके प्रभाव में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने सच्चाई को दबाए रखा। दुनिया उसके झूठ में, बहकावे में तब तक रही जब तक चीन से बाहर वायरस जा नहीं पसरा।


इसलिए मैं लिखता रहा हूं कि एक झूठ और तबाह दुनिया! मानव सभ्यता के विकास में सनातनी सत्य है कि छोटे-छोटे झूठों में, झूठ के अहंकार में रावण, उसकी सोने की लंका जली तो महाभारत, महायुद्धों का महाविनाश बार-बार मानवता ने झेला। सवाल है कि चीन और उसके राष्ट्रपति शी जिनफिंग व कम्युनिस्ट सरकार ने क्यों वायरस की हकीकत को दबाए रखा? क्यों झूठ बोला? कारण अहंकार था उसे परवाह नहीं, वह जवाबदेह नहीं कि सच से बदनामी होगी, पोल खुलेगी! जाहिर है वह इस मुगालते, मूर्खता, इस झूठ में जीता हुआ है कि वह सर्वज्ञ-विश्वगुरू है तो भला वायरस के मसले पर भी सच क्यों बोले। क्यों अमेरिका या दुनिया से घटना साझाकर उसे आगाह करे! चीन की झूठी, साजिशी, धूर्ततापूर्ण, राक्षसी प्रवृत्ति के पहलू को अलग रखें और वायरस को छुपाने के एक झूठ पर ही यदि फोकस बना विचार करें तो निष्कर्ष बनेगा कि जिस देश के नेता, उसकी रूलिंग क्लास, राष्ट्र विचारधारा झूठ आश्रित होती है और जो दिमाग से खाली लेकिन अहंकारी, नकलची, जुमलेबाजी में बंधा होता है वह न सत्य व्यवहार लिए हुए हो सकता है और न सच्चा विकास लिए होता है। चीन झूठ पर बना देश है। विचारधारा, शासन शैली, व्यवहार के झूठ ने वहां इंसान को अनुशासित गुलाम श्रमशक्ति में कन्वर्ट किया हुआ है! चीन का विकास सच्चा नहीं है। वह मजदूरों के शोषण, बंधुआगिरी, वैश्विक बौद्धिक संपदा की चोरी, नकल, घटिया-सस्ते सामानों और मोनोपॉली पर पका हुआ है, यही उसकी दुनिया के फैक्टरी बने होने के पीछे की सच्चाई है।

दूर के ढोल सुहाने होते हैं और भारत के हम लोगों को पढ़ने, सत्य जानने का कौतुक नहीं है और हम खुद भी क्योंकि झूठ में जीते हुए मुंगेरीलाल विश्वगुरू हैं तो मेरी यह बात पले नहीं पड़ेगी कि विकास और वैभव में लकदक चीन की चीजों से भारत का बाजार भरा पड़ा है तो चीन को झूठा-खोखा कैसे मानें? पर सत्य जानें कि चीन सचमुच दुनिया के पूंजीपतियों, अमेरिका-पश्चिमी समाज की रणनीति (जो अब एक भस्मासुरी गलती साबित हो रही है) से बनी वैश्विक फैक्टरी है। रणनीति यह कि कम्युनिस्ट गुलामी में बंधी पृथ्वी की सर्वाधिक बड़ी आबादी का दोहन कर, सस्ती-अनुशासित वर्कफोर्स से लौह कूटने याकि मेहनत-मजदूरी से औद्योगिक उत्पादन करवाया जाएं। रिचर्ड निक्सन-किसिंजर और देंग शियाओ पिंग ने अपने-अपने स्वार्थ-विजन में तानाशाही में ढले चीनियों से मेहनत करवा कर चीन को बनाने का रोडमैप बनाया और चीन बन गया। पर उससे चीन का मनोविकास नहीं हुआ। उलटे वह और घमंडी, तानशाह, अमानवीय, राक्षसी बना।

हां, कथित विकास के बावजूद चीन के नागरिक आजादी के पंख लिए सत्य के अनंत आकाश में उड़ते हुए, मजा लेते हुए जिंदादिल नहीं हैं। 18वीं-19वीं सदी में चीन में लोग अफीम के नशे में कुंद-मंद जीते थे तो अब कम्युनिस्ट विचारधारा के डंडे और अफीम के वे अनुशासित लोग हैं, जिन पर 21वीं सदी के सन् 2020 में वायरस की आपदा में भी रहम नहीं था। सोचें जिस डॉक्टर को दिसंबर 2019 में वायरस का खटका हुआ उसे जेल में डाला गया, वह मर गया तो आबादी को क्रूरता से बाड़ों में बंद कर मरने दिया गया और खबर लीक नहीं होने दी। पूरे साल चीन वायरस के तमाम तथ्यों, चर्चाओं को हर तरह से दबाए रहा।

चीन के 140 करोड़ लोग बिना लोकतंत्र के हैं, बिना आजादी के हैं। इन 140 करोड़ लोगों पर उम्र भर के लिए राष्ट्रपति बन बैठे शी जिनफिंग और उनके दस-बीस लाख लोगों की कम्युनिस्ट लीडरशीप का राज है। पार्टी के पोलित ब्यूरो से आठ सदस्यों, सेंट्रल कमेटी के चार सौ सदस्य, चीनी संसद के कोई तीन हजार सदस्यों और प्रदेशों में कोई लाख याकि मुश्किल से दस लाख लोगों का सत्तावान वर्ग 140 करोड़ चीनियों की किस्मत का मालिक है। यों कहने को कम्युनिस्ट पार्टी की सदस्य संख्या नौ करोड़ है लेकिन इन सबमें भी हांकने वाला सत्तावान वर्ग, गड़ेरिया वर्ग मुश्किल से दो लाख होगा।

और पता है ये ही शासक हैं, विचारक हैं, अऱबपति हैं और सेनापति, राजनयिक, नौकरशाही की सवारी करने वाले हाकिम हैं। कई तरह से जाहिर है कि चीन की संसद गरीब-सर्वहारा जन प्रतिनिधियों का जमावड़ा नहीं है, बल्कि खरबपतियों का क्लब है। दुनिया के सर्वाधिक अमीर खरबपतियों का जमावड़ा है चीन की संसद! एक रपट अनुसार सौ खरबपति-पूंजीपति सांसद हैं! मतलब रियल एस्टेट, ईंधन, तकनीक, निर्माण क्षेत्र के उद्योगपतियों का जमावड़ा है चीन की संसद। राबिन ली, पोनी मा, ली ज्यून (Pony Ma of Tencent, Robin Li of Baidu and Lei Jun of Xiaomi) जैसे नामी खरबपति चीन कम्युनिस्ट पार्टी के रीति-नीति निर्धारक सांसद हैं। रपट अनुसार चीन के धनी 209 चीनी सांसदों में हर की धन-संपदा दो बिलियन यूआन से अधिक है। इन अमीरों की कुल संपदा बेल्जियम-स्वीडन जैसे अमीर देशों की जीडीपी से भी ज्यादा। एक तथ्य और जानें कि चीन की उत्पादकता, वैश्विक फैक्टरी होने की हकीकत में वहां सरकारी विशाल कंपनियों का अहम रोल है। देश की पांच सौ महाकाय कंपनियों में से 310 कंपनियां सरकारी हैं। इनकी रेवेन्यू टॉप 190 निजी कंपनियों से चार गुना अधिक है। ये आंकड़े कुछ पुराने हैं लेकिन मोटा बुनियादी तथ्य स्थायी है कि वहां सरकारी कंपनियों के कंट्रोल में आर्थिकी और उत्पादकता, निर्यात है और इन तमाम सार्वजनिक प्रतिष्ठानों के बॉस कम्युनिस्ट नेता और उनके प्रोफेशनल गुर्गे हैं तो चीन का सत्तावान समूह, एलिट, उसकी संसद, असेंबलियों की बुनावट में सरकारी कंपनियों के पार्टी मालिक और प्राइवेट कंपनियों के खरबपतियों का वर्चस्व है।

तो चीन क्या है? तानाशाह अरबपति-पूंजीपति कम्युनिस्टों की 140 करोड़ मजूदरों के शोषण की एक फैक्टरी। सत्य है इससे वहां मजूदरों की हालात खाते-पीते खुशहाल मध्य वर्ग वाली बनी है लेकिन इन पर शासन करने वाले लाख कम्युनिस्ट नेता तो वे अरबपति-खरबपति हैं, जिनका सपना 140 करोड़ गुलाम लोगों की मेहनत से दुनिया को अपने धंधे के सिल्क रोड में बांधने, अपने तौर-तरीकों में रिझा कर दुनिया पर राज करने का है। इसलिए चीन का सत्य वीभत्स और राक्षसी है। यह रावण की वह लंका है, जो मजदूरों के शोषण से निर्मित है। उसका वैभव शोषण, झूठ और अहंकार वे कई राक्षसी दशानन रूप है, जिसमें सुधार की गुजांइश रत्ती भर नहीं है। उस नाते वर्ष 2020 में दुनिया ने वायरस से सचमुच जाना कि चीन कैसा संहारक है! वह मानव सभ्यता की जान से कैसे खेल सकता है बिना किसी खेद, शर्म व पश्चाताप के!

ठीक विपरीत सन् 2020 में अमेरिकी नागरिकों ने मानवता की लाज रखी! भरोसा बनवाया। उन्होंने सच्चाई को जीता झूठ-मूर्खता-अहंकार के रावण डोनाल्ड ट्रंप को हराया। अमेरिकी नागरिकों ने सन् 2016 में धनिक प्रवृत्ति के अरबपति डोनाल्ड ट्रंप को राष्ट्रपति चुनने की इतिहासजन्य गलती की थी। ध्यान रखें कि राक्षसी कम्युनिस्ट व्यवस्था वाले चीन की तुलना में मानवीय आजादी की उड़ान पर बने पूंजीपति अमेरिका वह देश है, जहां कि संसद में शायद ही कभी खरबपति सांसद हुआ हो। फर्क पर गौर करें कि चीनी कम्युनिस्ट संसद में खरबपति भरे हुए तो अमेरिकी संसद में एक खरबपति नहीं। मैंने कभी नहीं सुना, पढ़ा कि अमेरिकी खरबपतियों याकि फोर्ड से जेफ बेजोस, वॉरेन बफे, बिल गेट्स, स्टीव जॉब्स आदि में कभी कोई सांसद या नेता बना हो। अमेरिकी सीनेट-प्रतिनिधि सभा याकि संसद में कभी अंबानी-बिड़ला-टाटा जैसे नाम नहीं मिलेंगे। अमेरिकी इतिहास में पहली बार ही एक खरबपति उर्फ डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति बना था।

और उसके अनुभव का निचोड़ सन् 2020 का वर्ष है। डोनाल्‍ड ट्रंप ने राजनीति को धंधे, ब्रांडिंग-मार्केटिंग, मुनाफे की व्यापारी तासीर में खेला। ग्राहकों को रिझाने के लिए झूठ-दर-झूठ। झूठ और पैसे की ताकत में उन्होंने आजादी की वैश्विक मशाल, ज्ञान-विज्ञान-खोज-सत्य के देव पुरुषार्थ की लोकतांत्रिक व्यवस्था को बरबाद, खत्म करने के दसियों काम किए। अमेरिका के भीतर कलह बनवा दी। देश का दुनिया में मखौल बनवा दिया। संस्थाओं का दुरूपयोग किया, उन्हें खोखला बनाया। ऐन वक्त तक लगा रहा कि झूठ, विभाजक राजनीति, ब्रांडिंग-मार्केटिंग से डोनाल्ड ट्रंप वापिस जीतेंगे। लेकिन धन्य अमेरिका और धन्य अमेरिकी नागरिक जो उन्होंने डोनाल्ड ट्रंप और उनके झूठ को नकारा। उनकी जगह सहज-सामान्य-लोकतांत्रिक मिजाज वाले नेता जो बाइडेन को राष्ट्रपति चुना।

मतलब पशु से मनुष्य को अलग जीव परिभाषित करवाने वाले मानवाधिकारों, व्यक्ति स्वतंत्रता-आजादी, पुरुषार्थों के समान अवसरों में ज्ञान-विज्ञान-सत्य पर जीवन जीने वाला अमेरिका मुक्त हुआ एक धूर्त-मूर्ख-राक्षसी भस्मासुर से। इसका दुनिया के लिए, इस पृथ्वी के लिए क्या मतलब है, यह नए दशक में बहुत समझ आएगा। तभी मैं चीन और अमेरिका के 2020 के व्यवहार को पृथ्वी के देव-असुर समुद्र मंथन का अहम पहलू मानता हूं।


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