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सम्पादकीय
अमेरिका को अपने विरोधाभासी बयानों को रोककर भारत को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना चाहिए
Gulabi Jagat
11 April 2022 6:00 AM GMT
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9/11 के हमलों के बाद, राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने “दुनिया में अत्याचार खत्म करने” की अमेरिकी पहल शुरू की
राकेश शर्मा।
9/11 के हमलों के बाद, राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने "दुनिया में अत्याचार खत्म करने" की अमेरिकी पहल शुरू की और 21 सितंबर 2001 को अमेरिकी कांग्रेस में अपना भाषण दिया. जहां उन्होंने कहा था, "हर किसी को, चाहे वह कोई देश हो या क्षेत्र, एक विकल्प चुनना पड़ता है और एक निर्णय लेना होता है. या तो आप हमारे साथ हैं, या आप आतंकवादियों के साथ." अब अपने छठे हफ्ते में रूस-यूक्रेन युद्ध ( Russia Ukraine War) ने इस विभाजन को चौड़ा कर दिया है और दूसरे राष्ट्रों के लिए 'हमारे साथ या हमारे खिलाफ' के इस विवाद को पुनर्जन्म दे दिया है. अमेरिकी रक्षा सचिव लॉयड ऑस्टिन (America Defence Secretary lloyd Austin) ने सालाना रक्षा बजट पर कांग्रेस की एक चर्चा के दौरान सदन की सशस्त्र सेवा समिति (Armed Services Committee) के समक्ष कहा कि उसे उम्मीद है कि भारत रूसी सैन्य साजो सामान पर अपनी निर्भरता को कम करेगा। उन्होंने आगे कहा, "हम उनके (भारत) साथ लगातार काम कर रहे हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि रूसी साजोसामान में निवेश जारी रखना उनके (भारत) हित में नहीं है।"
अमेरिकी रक्षा सचिव का बयान 'रूसी साजोसामान में निवेश जारी रखना उनके हित में नहीं', बेहद स्पष्ट है. इसी तरह, व्हाइट हाउस के प्रेस सचिव जेन साकी ने भी इस बयान का समर्थन करते हुए कहा अमेरिका का मानना है कि भारत द्वारा रूसी एनर्जी इम्पोर्ट और अन्य वस्तुओं के आयात को बढ़ाना उसके हित में नहीं है.
भारत को अपरोक्ष धमकी
अमेरिका के डिप्टी एनएसए ने अपनी हालिया दिल्ली यात्रा के दौरान इसी तरह की बात कही थी, उन्होंने कहा था, "… वैश्विक पाबंदियों के साये में अमेरिका, रूस से तेल और अन्य वस्तुओं के भारतीय आयात में "तेजी" नहीं देखना चाहता और यूक्रेन के आक्रमण के बाद लगाए गए प्रतिबंधों को दरकिनार करने का प्रयास करने वाले देशों को इसके नतीजे भुगतने होंगे. मुझे नहीं लगता कि कोई भी यह विश्वास करेगा कि अगर चीन एक बार फिर [वास्तविक] नियंत्रण रेखा (LAC) का उल्लंघन करता है, तो रूस भारत की रक्षा के लिए दौड़ता हुआ आएगा."
हालांकि, भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता के मुताबिक, रूस से व्यापार करने को लेकर भारत पर पश्चिमी देशों का किसी तरह का दबाव नहीं है और मौजूदा हालात में भारत का ध्यान रूस के साथ स्थापित आर्थिक संबंधों को स्थिरता के साथ बनाए पर है."
भारत और रूस का संबंध, इतिहास, आपसी भरोसे और दोनों के लिए फायदेमंद सहयोग पर आधारित है. यह एक ऐसी रणनीतिक भागीदारी है जो समय की कसौटी पर खरी उतरी है और इसे दोनों देशों की जनता का समर्थन प्राप्त है. साठ के दशक के मध्य तक सोवियत संघ, भारत को कम लागत वाले हथियारों, टेक्नोलॉजी और सैन्य उपकरणों का एकमात्र आपूर्तिकर्ता बन गया था. 2000 में, राष्ट्रपति पुतिन की भारत यात्रा के दौरान, भारत-रूस साझेदारी ने एक नए गुणात्मक चरित्र, रणनीतिक साझेदारी का रूप अख्तियार किया. रणनीतिक साझेदारी के जरिए भारत के प्रधानमंत्री और रूस के राष्ट्रपति के बीच सालाना बैठकों को संस्थागत रूप दिया गया. 2010 में राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव की यात्रा के दौरान, रिश्ते को विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी का दर्जा दिया गया.
भारत-रूस संबंध
निश्चित तौर पर, रक्षा क्षेत्र भारत और रूस के संबंधों के बीच सबसे मजबूत स्तंभ है और यह समय की कसौटी पर खरा उतरा है. रूस के सहयोग से भारत ने हथियारों की खरीदारी और विकास के जरिए रणनीतिक क्षेत्र में अपनी क्षमता बढ़ाई है. यह संबंध, पारंपरिक क्रेता-विक्रेता से विकसित होकर, संयुक्त उत्पादन और विकास, का हो गया है, जिसमें टेक्नोलॉजी शेयरिंग पर जोर दिया जा रहा है.
भारत के मेक इन इंडिया कार्यक्रम में भागीदार बनने के लिए रूस ने प्रतिबद्धता दिखाई है. भारतीय सेना हथियारों के अपने जखीरे में, जिनमें टैंक, आर्टिलरी गन और मिसाइल सिस्टम शामिल हैं, बड़े पैमाने पर रूसी हथियारों का इस्तेमाल करता है. भारत ने रूस से एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम खरीदने के लिए भी समझौता किया है, जिस पर अमेरिकी कानून Countering America's Adversaries Through Sanctions Act (CAATSA) के तहत पाबंदी लगाए जाने का खतरा मंडरा रहा है.
अमेरिका-भारत संबंधों को लेकर विरोधाभास हैं
प्रसंगवश, पूर्व, दक्षिण एशिया, मध्य एशिया पर उपसमिति द्वारा 02 मार्च 2022 को, अमेरिका-भारत संबंधों को लेकर जारी बयान में विरोधाभास हैं, दक्षिण और मध्य एशिया के सहायक सचिव डोनाल्ड लू ने कहा था कि, "भारत के साथ अमेरिका का संबंध प्रमुख साझेदारियों में से एक है, जो एशिया, अमेरिका और दुनिया की सुरक्षा तय करेगा. यह एक ऐसा रिश्ता है जिसे हमें सही दिशा में लेना जाना चाहिए. भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा डिफेंस टेक्नोलॉजी आयातक है. पिछले 22 वर्षों में, भारत द्वारा अमेरिकी रक्षा खरीद $20 बिलियन से अधिक हो गई है, और भारत $2.1 बिलियन में छह अतिरिक्त P-8I समुद्री निगरानी विमान खरीदने पर विचार कर रहा है. 2011 के बाद से, भारत ने रूस से अपने हथियारों के आयात में 53 फीसदी की कमी की है और अमेरिका व दूसरे भागीदारों से अपनी रक्षा खरीद में वृद्धि की है, साथ ही साथ अपनी घरेलू उत्पादन क्षमता भी बढ़ाई है."
निश्चित रूप से पिछले दशक में भारत ने अपनी रक्षा खरीद का दायरा बढ़ाया है. भारत ने फ्रांस के साथ राफेल विमान खरीदे.
भारतीय सेना इजरायल के साथ भी बड़े पैमाने पर सैन्य साजोसमान खरीद रही है, जिनमें अनमैन्ड एरियल व्हीकल (UAV) सर्चर और हेरोन शामिल हैं. दिसंबर 2018 में Adani Defence and Elbit systems ने रक्षा क्षेत्र में भारत-इजराइल के बीच पहले ज्वाइंट वेंचर की शुरूआत की. इसके तहत उच्च तकनीक और कम लागत वाले Hermes 900 मल्टी यूज UAV का निर्माण किया जाना है. भारत द्वारा खरीदा गया SPYDER (सरफेस-टू-एयर Python-5 Derby) का मीडियम रेंज (एमआर) वर्जन वर्टिकल लॉन्च के जरिए टारगेट इंटरसेप्शन उपलब्ध कराता हैजिससे 80 किमी के दायरे का एक सुरक्षात्मक घेरा तैयार होता. रक्षा क्षेत्र में मेक-इन-इंडिया को बढ़ावा देने के लिए, इजरायल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज (IAI) और रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) द्वारा अधिकांश मिसाइलों को संयुक्त रूप से विकसित किया जाएगा.
इजराइल ने कई कमियों को पूरा किया है
रेडी-टू-यूज तकनीक उपलब्ध करा कर, इजराइल ने कई कमियों को पूरा किया है. पिछले दशक में अमेरिका, भारत के लिए हथियारों के सबसे बड़े आपूर्तिकर्ता देशों में से एक के तौर पर उभरा है. यहां से हमें एयरक्राफ्ट, हेलीकॉप्टर और मिसाइल प्राप्त हो रहे हैं, जिनका मूल्य करीब 22 बिलियन डॉलर है. इनमें P-8I Poseidon लंबी दूरी के समुद्री गश्ती विमान और C-130J परिवहन विमान के लिए रिपीट ऑर्डर शामिल हैं. तीनों भारतीय सेनाओं के लिए 3 अरब डॉलर (22,147 करोड़ रुपये) मूल्य के 30 एमक्यू-9 प्रीडेटर-बी ड्रोन जैसे सौदे किए जा रहे हैं.
भारत को सही तकनीक और उपकरण के सप्लायर, छोटी और लंबी अवधि में वाजिब दाम, तकनीक हस्तांतरण और स्पेर-पार्ट मैनेजमेंट के क्षेत्र में सही फैसले लेना है. इस संदर्भ में, भारत और अमेरिका के बीच रक्षा प्रौद्योगिकी और व्यापार पहल (DTTI), रक्षा प्रौद्योगिकियों को साझा करने और सह-उत्पादन व सह-विकास के लिए साझेदारी बढ़ाने के उद्देश्यों को पूरा करने में असफल रही है.
अमेरिका का भारत को हाई एंड जेट-इंजन तकनीक देने से इनकार
भारत और अमेरिका ने आधिकारिक तौर पर रक्षा सहयोग को निलंबित कर दिया था क्योंकि अमेरिकियों ने भारत को हाई एंड जेट-इंजन तकनीक देने से इनकार कर दिया था. जाहिर है, अमेरिकी निर्यात नियंत्रण के कारण जेट इंजन तकनीक पर सहयोग नहीं बन पाया. DTTI इस बात को समझ नहीं पाई कि कौन सी निर्यात योग्य तकनीक भारत के लिए उपयोगी होगी और अमेरिकी निर्यात नियंत्रण के संदर्भ में कई तरह की चुनौतियां हैं.
दूसरी ओर, भारत और रूस के रक्षा मंत्रियों की सह-अध्यक्षता में सैन्य और सैन्य-तकनीकी सहयोग पर अंतर-सरकारी आयोग (IRIGC-MTC) एक सफल पहल रही है. दिसंबर 2021 में तय चार समझौतों में सबसे महत्वपूर्ण, इंडो-रूस राइफल्स प्राइवेट लिमिटेड (IRPL) के माध्यम से AK-203 असॉल्ट राइफलों के निर्माण का समझौता था, जिसकी संख्या 6,01,427 है.
रूसी-यूक्रेन युद्ध पर भारतीय रुख
रूसी-यूक्रेन युद्ध पर भारतीय रुख और विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की अनुपस्थिति ने भी स्पष्ट रूप से यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का समर्थन किया है और बातचीत के जरिए शांति स्थापित करने प्रयास किया है. भारत को भी अपने विरोधियों की ओर से चिंताएं हैं, और इसके लिए सशस्त्र बलों का आधुनिकीकरण जरूरी है. हालांकि, आत्मनिर्भरता के लिए गंभीर प्रयास भी किए जा रहे हैं, लेकिन छोटी और मध्यम अवधि के सैन्य आधुनिकीकरण के लिए आयात पर निर्भर रहना पड़ता है, और भारतीय हित में रक्षा खरीद के सर्वोत्तम मानकों की तलाश करनी होती है.
सेक्रेटरी ऑस्टेन के 'रूसी साजोसमान में निवेश जारी रखना उनके (भारत के) हित में नहीं', या यहां तक कि 'हमारे साथ या हमारे खिलाफ' जैसे बयानों को, अमेरिकी निर्यात नियंत्रण व्यवस्था और बिना शर्त निर्यात, जिसकी भारत को जरूरत है, के साथ मेल खाना चाहिए.
(लेखक रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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