सम्पादकीय

अमेरिका! झूठ नहीं जीता

Gulabi
23 Jan 2021 5:19 AM GMT
अमेरिका! झूठ नहीं जीता
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बीस जनवरी को दुनिया के हर कोने में सत्य का विश्वासबना।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। बीस जनवरी को दुनिया के हर कोने में सत्य का विश्वासबना। न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया से लेकर यूरोप, ब्रिटेन, जापान, दक्षिण अफ्रीका, अमेरिका, लातिनी अमेरिका आदि के सभ्य समाज, सत्यवादी दुनिया, मीडिया में जो बाइडेन के शपथ के बैनर हेडिंग इस भाव में छपे मानो झूठ से मुक्ति तो लोकतंत्र अनमोल, नाजुक, पर विकट घड़ी में जीत अंततः लोकतंत्र की! जो बाइडेन का भाषण वैश्विक हिट था। तभी गौर करें बाइडेन के भाषण की इन चंद पंक्तियों पर- हाल के सप्ताहों, महीनों ने हमनेएक पीडादायी पाठ पढ़ा है। सत्य है तो झूठ है। झूठ बोला जाता है सत्ता और मुनाफे के लिए। लेकिन हममें से हर की जिम्मेवारी, कर्तव्य है, बतौर अमेरिकी नागरिक के, और खास कर के नेताओं की, जिन्होंने संविधान की कसम, राष्ट्र की रक्षा का प्रण लिया हुआ है कि वे सत्य की रक्षा करें और झूठ को हराएं।


मुझे पता है कि कई अमेरिकी भविष्य की चिंता में होंगे… लेकिन समाधान भीतर जाना नहीं, एक-दूसरे के खिलाफ लड़ते धड़ों का हिस्सा बनने में नहीं है, उन लोगों को देख अविश्वास करने में नहीं है, जो अपने जैसे नहीं लगते, जो अलग तरह से पूजा करते हैं, जो खबर उस तरह, उन सोर्सों से नहीं पाते, जिनसे आप पाते हैं। हमें हर हाल में यह असभ्य झगड़ा खत्म करना होगा। वह असभ्य झगड़ा कि लाल बनाम ब्ल्यू (रिपब्लिकन बनाम डेमोक्रेटिक, मतलब भाजपा बनाम कांग्रेस), शहरी बनाम ग्रामीण, उदारवादी बनाम अनुदारवादी का जो बनाया गया है।… मुझे पता है हमें विभाजित करने वाली ताकतें गहरी हैं और वे वास्तविक हैं, लेकिन मुझे ये भी पता है कि वो नई नहीं हैं। हमारा इतिहास निरंतर संघर्षरत है…उसमें हम जीतते रहे हैं।…फिर जीत सकते हैं बशर्ते कि दिल को सख्त, नफरती बनाने के बजाय आत्मा को खोलें। हमें कुछ ही सहनशीलता व विनम्रतादिखानी है।… यदि ऐसा करते हैं तो हमारा देश मजबूत होगा, अधिक संपन्न होगा, भविष्य के लिए अधिक तैयार होगा और ऐसा परस्पर असहमत होते हुए भी संभव है। विरोध का अधिकार हमारे गणतंत्र का पथप्रदर्शक (the guardrails), उसकी पटरियां है। और शायद देश की ताकत का सर्वाधिक बड़ा कारण।

मुझे सुनें, यदि आप मेरे से असहमत हैं तो कोई बात नहीं। वैसे रहें। यही लोकतंत्र हैं, तभी अमेरिका है। इसलिए आज इस वक्त, इस जगह हम सब नए सिरे से शुरुआत करें। सुनना शुरू करें एक दूसरे को। एक-दूसरे को देखें, समझें, एक-दूसरे का सम्मान करें। राजनीति का अर्थ आग लगाना नहीं होता है, अपने रास्ते से हर चीज को खत्म, बरबाद करना नहीं होता। हर असहमति पूर्ण युद्ध की वजह नहीं होनी चाहिए। और हमें हर हालत में उस संस्कृति को खत्म करना है, जिसमें तथ्य (सत्य) गढ़े जाते हैं, उनके साथ खेला जाता है और उन्हें उत्तरोत्तर आगे बढाया जाता है। (we must reject the culture in which facts themselves are manipulated and even manufactured.)

हां, इसी भाषण, जो बाइडेन के इसी पहले राष्ट्रपति भाषणके शब्दों की वैश्विक सुर्खियां, बैनर हेडलाइन बनी ऐसी बनी मानो दुनिया के लोग इंतजार कर रहे हों यह सब सुनने के लिए। बाइडेन के शपथ समारोह को दुनिया के तमाम प्रधानमंत्रियों, राष्ट्रपतियों ने देखा और राहत की सांस ली। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन का टेलीविजन देखते हुए कहना था- यह अद्भुत.. उस देश के लिए जो मुश्किल दौर (bumpy period) में गुजरा। यूरोपीय संघ की राष्ट्रपति उर्सुला का कहना था- अमेरिका के इस नए सवेरे की हमें लंबे समय से प्रतीक्षा थी…वापस चार साल बाद व्हाइट हाऊस में यूरोप का दोस्त है। स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सांचेज का कहना था- यह लोकतंत्र की उन कट्टरपंथी दक्षिणपंथियों पर विजय, जिन्होंने महा धोखेबाजी, झूठ, राष्ट्रीय विभाजन व लोकतांत्रितक संस्थाओं के क्रूर दुरुपयोग के तीन तरीके अपनाए हुए थे। अब जरा जर्मनी के राष्ट्रपति स्टीमनर के कहे पर गौर करें- बहुत राहत मिली। लोकतंत्र के लिए अच्छा दिन… ट्रंप प्रशासन में लोकतंत्र को भारी चुनौतियों से गुजरना पड़ा… मगर अंत पर उसने अपने को मजबूत प्रमाणित किया।

अब जरा विश्व मीडिया के शीषकों पर गौर करें। यूरोप में सर्वाधिक बिकने वाले 'बिल्ड' अखबार का बैनर था-अमेरिका में नया युग। ब्रिटेन के घोर अनुदारवादी मिरर का बैनर- इतिहास का दिन… उम्मीद का दिन। टेलीग्राफ की हेडिंग थी- बंद हो असभ्य लड़ाई। टाइम्स की हेडिंग थी- एकजुट होने का समय!

जाहिर है जो बाइडेन ने शपथ समारोह में जो भाषण दिया वह वैश्विक पैमाने पर सुपरहिट था। उन्हीं के भाषण के वाक्य अखबारों के पहले पेज में बैनर थे। बाइडेन ने अपनी और अमेरिका की जिन तीन चुनौतियों (वायरस, सत्य-पारदर्शिता की बहाली और जलवायु संकट) का सामना करने का प्रण लेते हुए अमेरिकियों को एकजुट होने का आह्वान किया उसी के सत्य में लोकतंत्र-अमेरिका में नए सवेरे की दुनिया में सर्वत्र चर्चा है। दुनिया के तमाम सभ्य, सच्चे लोकतांत्रिक नेता यह सुन-सोच मुरीद हैं, आशावान हैं कि झूठ लंबा नहीं चलता। झूठ के रावण की मौत असुर मौत है। सत्य का बिगुल स्थायी है। झूठे, अहंकारी, मूर्ख नेताओं की राजनीति पर विराम लगेगा और सच-झूठ की कसौटी पर उनके साथ सख्ती से पेश आया जाएगा। दुनिया में लोकतंत्र, मानवाधिकार के लिए काम सत्य की सतत जीत है!

लोकतंत्र की जीत, सत्य की जीत और नए सवेरे की गूंज, उम्मीद में अमेरिका से आगे दुनिया कैसे प्रभावित होती है यह वक्त बताएगा लेकिन जो बाइडेन ने पहले दिन ही जिन 17 आदेशों पर दस्तखत किए हैं उससे दिशा बन गई है कि अमेरिका मानवाधिकार, लोकतंत्र, सत्य-पारदर्शिता के आग्रह के सहज दिनों में लौट गया है। पहले दिन व्हाइट हाऊस में पहली प्रेस कांफ्रेस में राष्ट्रपति की प्रवक्ता ने पत्रकारों से कहा- वे सत्य बोलेंगी, पारदर्शी रहेंगी। जब मुझे राष्ट्रपति ने इस रोल पर मेरे से बात की तो हमने तय किया कि पत्रकारों के ब्रीफिंग कक्ष में सत्य और पारदर्शिता को लौटाना है।

सोचें पांच- छह महीने पहले जो बाइडेन को अमेरिका ने, वैश्विक सभ्य समाज ने किस तरह लिया हुआ था? किसी ने नहीं माना था कि डोनाल्ड ट्रंप के आगे बाइडेन कायदे से लड़ भी पाएंगे। लेकिन बाइडेन न केवल लड़े, बल्कि झूठ के आधुनिक महारावण ट्रंप को उस धीर-गंभीरता सेहराया कि उनके कंट्रास्ट से ही वे आज दुनिया में विश्वास और उम्मीद के महानायक हैं। क्या यह बहुत अद्भुत अनुभव नहीं है कि इक्कीसवीं सदी का?


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