सम्पादकीय

अमेरिका वापस आ गया है

Gulabi
13 Nov 2020 4:02 PM GMT
अमेरिका वापस आ गया है
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जो बाइडेन अब अपने सहयोगी रहे देशों को संदेश दे रहे हैं कि ‘अमेरिका वापस आ गया है’।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। जो बाइडेन अब अपने सहयोगी रहे देशों को संदेश दे रहे हैं कि 'अमेरिका वापस आ गया है'। डोनल्ड ट्रंप के दौर की खास बात यह रही कि अमेरिका ने दशकों से पार्टनर रहे देशों को ठुकरा दिया। ट्रंप की अमेरिका फर्स्ट की नीति में बाकी देशों से संवाद और सहयोग की ज्यादा गुंजाइश नहीं थी। इससे दुनिया में बहुपक्षीय पहल को भारी चोट पहुंची। लेकिन अब बाइडेन ने चुनाव जीतने के साथ ही उस दौरान हुए नुकसान की भरपाई की कोशिश शुरू कर दी है।

उन्होंने ब्रिटिश प्रधान मंत्री बोरिस जॉनसन, फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों और जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल से फोन पर बातचीत की है। उन नेताओं से बातचीत के बाद बाइडेन ने अपने गृह राज्य डेलावेयर में पत्रकारों से कहा- "मैं उन्हें बता रहा हूं कि अमेरिका वापस आ गया है। हम खेल में वापस लौट रहे हैं।" बाइडेन ने फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों और ब्रिटिश प्रधान मंत्री बोरिस जॉनसन से भी पिछले दो दिन में बात की है। चुनाव के दौरान बाइडेन के जीतने की स्थिति में उनके और जॉनसन के बीच रिश्तों को लेकर अटकलें लगाई जा रही थीं।

जॉनसन के रिश्ते ट्रंप के साथ घनिष्ठ रिश्ते थे। लेकिन जॉनसन उन विश्व नेताओं में थे, जिन्होंने सबसे पहले बाइडेन को चुनाव में जीत पर बधाई दी। फ्रांस के राष्ट्रपति माक्रों की छवि उदारवादी है। उनके कार्यालय के मुताबिक उन्होंने बाइडेन से बातचीत में कहा कि जलवायु, स्वास्थ्य और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में वे सहयोग करने के लिए तैयार है। जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर ट्रंप प्रशासन का रुख समस्याग्रस्त था।

अमेरिका के पेरिस समझौते से बाहर होने के फैसले को कई यूरोपीय नेताओं ने झटके के तौर पर लिया था। फिर ट्रंप ने यूरोप के के कई उत्पादों पर अतिरिक्त कर भी लगा दिया था। अब ये सारी सूरत बदलने की उम्मीद की जा रही है। जर्मन चांसलर मैर्केल ने बाइडेन को दिए शुभकामना संदेश में कहा था कि वे बाइडेन के साथ निकट सहयोग करेंगी। बाइडेन को दिए शुभकामना संदेश में मैर्केल का स्वर राष्ट्रपति ट्रंप को 2016 में जीत पर दी बधाई से अलग था। तब उन्होंने ट्रंप से लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान करने की बात कही थी। गौरतलब है कि ट्रंप के जीतने के साथ लोकतंत्र के प्रति उनके रुख को लेकर आशंकाएं पैदा हो गई थीं।

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