भारत आए अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने अफगानिस्तान के ताजा हालात पर चिंता जताते हुए वहां साझा रणनीति की जो जरूरत जताई, उसकी पूर्ति कैसे होगी, यह भी उन्हें बताना चाहिए। अमेरिका को यह आभास होना चाहिए कि उसने अफगानिस्तान को एक तरह से अधर में छोड़ दिया है। जो मुट्ठी भर अमेरिकी सैनिक वहां बचे हैं, वे भी अगले माह के अंत तक लौट जाएंगे। अमेरिकी सेनाओं के इस तरह अफगानिस्तान छोड़ने से ही वहां हालात खराब होते जा रहे हैं और तालिबान बर्बरता के साथ मनमानी करने में लगा हुआ है। अमेरिका ने जैसे अफगानिस्तान को अधर में छोड़ा, वैसे ही वह इराक से भी अपनी सेनाएं बुलाने जा रहा है। उसने यही काम वियतनाम में भी किया था और कोरिया में भी। अमेरिका अफगानिस्तान में आतंकवाद का खात्मा करने के इरादे से आया था, लेकिन आज वह उसे एक तरह से उन तालिबान के हवाले करने जा रहा है, जो न केवल खुद आतंकियों जैसी हरकतें कर रहे हैं, बल्कि अलकायदा और ऐसे ही अन्य आतंकी संगठनों को संरक्षण भी दे रहे हैं। यदि अफगानिस्तान पर फिर से तालिबान का कब्जा होता है तो इसके लिए अमेरिका ही जवाबदेह होगा। भले ही अमेरिका यह कह रहा हो कि वह तालिबान पर हवाई हमले जारी रखेगा, लेकिन ये हमले तब कामयाब होंगे, जब अमेरिकी सैनिकों और उसके खुफिया तंत्र की अफगानिस्तान की जमीन पर मौजूदगी हो।