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By NI Editorial
अमेरिका ने चेतावनी दी थी कि अगर नेपाल ने मदद अस्वीकार की, तो वह नेपाल के साथ अपने पूरे दोतरफा संबंधों पर पुनर्विचार करेगा। उधर चीन ने इसे अमेरिका की जोर-जबरदस्ती बताया था और नेपाल की सरकार से कहा था कि वह स्वतंत्र विवेक से फैसला ले। अंत में अमेरिका भारी पड़ा।
अमेरिकी संस्था मिलेनियम चैलेंज कॉर्पोरेशन (एमसीसी) से 50 करोड़ डॉलर की मदद के लिए हुआ करार नेपाल में न सिर्फ अंदरूनी राजनीतिक टकराव का मुद्दा बना गया था, बल्कि इसको लेकर ये देश दो बड़ी ताकतों के रणक्षेत्र में तब्दील हो गया था। अमेरिका ने साफ चेतावनी दी थी कि अगर नेपाल ने मदद अस्वीकार की, तो वह नेपाल के साथ अपने पूरे दोतरफा संबंधों पर पुनर्विचार करेगा। उधर चीन ने इसे अमेरिका की जोर-जबरदस्ती बताया था और नेपाल की सरकार से कहा था कि वह स्वतंत्र विवेक से फैसला ले। नेपाल के मुख्य विपक्षी दल सीपीएन-यूएमएल तो इसका भारी विरोध कर ही रहा था, सत्ताधारी गठबंधन में शामिल दोनों कम्युनिस्ट पार्टियां भी इसके खिलाफ थीँ। लेकिन अंततः इसका कोई असर नहीं हुआ। करार के संसदीय अनुमोदन के लिए पेश प्रस्ताव आसानी से पारित हो गया। लेकिन जब संसद का सत्र चल रहा था, उस वक्त भी संसद भवन के बाहर इस अनुदान का विरोध हो रहा था। प्रदर्शनकारियों की पुलिस के साथ झड़प भी हुईं। 2017 में एमसीसी ने नेपाल को 50 करोड़ डॉलर अनुदान देने का फैसला किया था। नेपाली सरकार ने इसके लिए समझौता किया।
तब भी नेपाली कांग्रेस के शेर बहादुर देउबा प्रधानमंत्री थे। नेपाली कांग्रेस की दलील है कि यह सहायता देश के सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है। इससे नेपाल के तीन करोड़ लोगों में से दो करोड़ से अधिक आबादी को लाभ होगा। लेकिन अमेरिकी सहायता पैकेज का कम्युनिस्ट पार्टियों की ओर से विरोध किया गया था। अमेरिका ने तब आरोप लगाया कि है कि इस विरोध अभियान के पीछे बीजिंग का हाथ है। जबकि विरोधियों का कहना है कि सहायता नेपाल के कानूनों और उसकी संप्रभुता को कमजोर कर सकती है, क्योंकि देश का परियोजनाओं पर पूर्ण नियंत्रण नहीं होगा। उनका यह भी कहना है कि यह मदद अमेरिका की हिंद-प्रशांत रणनीति का हिस्सा है। इसके तहत अमेरिकी सैनिकों को नेपाल लाया जा सकता है। नेपाल की विपक्षी कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों ने संसद में कहा कि यह समझौता नेपाल को अमेरिका के संरक्षण में लाएगा। इसलिए इसे खारिज कर दिया जाना चाहिए। लेकिन देउबा सरकार ने अपने गठबंधन में शामिल कम्युनिस्ट पार्टियों को मना लिया। उन्हें मुंह छुपाने का एक बहाना दे दिया गया। इसके लिए एक प्रस्ताव पारित कराया गया कि नेपाल का संविधान सर्वोच्च है। लेकिन असल बात यह है कि अमेरिका का प्रभाव अंत में निर्णायक साबित हुआ।
Gulabi
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