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अफगानिस्तान में नाकाम होता अमेरिका: अफगान फिर आतंकियों का अड्डा बन सकता है, अन्य देशों के साथ भारत को भी हो सकता है खतरा पैदा
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| [ विवेक काटजू ]: गत 25 जून को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी और राष्ट्रीय पुनर्गठन वाली उच्च परिषद के चेयरमैन अब्दुल्ला अब्दुल्ला से मुलाकात की। बाइडन ने सुरक्षा मोर्चे पर अफगानिस्तान की सहायता के लिए अमेरिकी सहयोग दोहराने के साथ ही स्पष्ट किया कि 11 सितंबर तक अमेरिकी फौजों की वापसी को लेकर उनका फैसला नहीं बदलेगा। तब तक नाटो सेनाओं की भी वापसी हो जाएगी। यह सब तब होगा जब तालिबान ने अभी तक अमेरिकी योजनाओं के अनुरूप कदम उठाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है। अमेरिकी योजना मुख्य रूप से तीन बिंदुओं पर टिकी है। एक, अंतरिम सरकार का गठन, जिसमें अफगान नेता और तालिबान दोनों शामिल होंगे। दूसरा बिंदु संघर्ष विराम और तीसरा अफगानिस्तान के भविष्य की चर्चा से जुड़ा है। चूंकि तालिबान हमले करने और इलाके कब्जाने में जुटा है, इसलिए ये उम्मीदें चकनाचूर हो रही हैं कि अफगानिस्तान में करीब 20 साल से टिके हुए अमेरिका और नाटो की विदाई शांतिपूर्वक हो जाएगी।