- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- तालिबान से अमेरिका...
x
सोमवार को अमेरिकी संसद के निचले सदन House Of Representatives में Republican और Democrat पार्टियों के सांसद बहुत ग़ुस्से में थे
विष्णु शंकर। सोमवार को अमेरिकी संसद के निचले सदन House Of Representatives में Republican और Democrat पार्टियों के सांसद बहुत ग़ुस्से में थे. मौक़ा था House Of Representatives Foreign Affairs Committee के सामने एक Public Hearing में अमेरिकी विदेशमंत्री, एंथनी ब्लिंकन की पेशी का. विषय था अफ़ग़ानिस्तान और वहां से अमेरिकी फ़ौज की वापसी के बाद बनी स्थिति, जिसमें लाखों लोगों को देश छोड़ कर भागना पड़ा और इस भागमभाग के दौरान शुरुआत में ही हुआ वो आत्मघाती हमला, जिसने 13 अमेरिकी सैनिकों की जान ले ली.
एंथनी ब्लिंकन ने गुस्साए सांसदों से कहा कि अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान कई तरह से जुड़ा हुआ है और वहां उसके बहुत से हित हैं, जिनमें से कई अमेरिका के हितों से मेल नहीं खाते. ब्लिंकन का कहना था कि अफ़ग़ानिस्तान के भविष्य को लेकर पाकिस्तान लगातार दो तरफ़ा खेल खेलता रहा है. इस खेल में उसने तालिबान के सदस्यों को अपने यहां छिपा कर रखा, और मौका पड़ने पर, अमेरिका के साथ, आतंकवाद का मुक़ाबला करने में सहयोग भी किया.
तालिबान से पाकिस्तान के संबंधों पर अमेरिका
जब ब्लिंकन से पूछा गया कि क्या अब पाकिस्तान के साथ अमेरिका के रिश्तों की समीक्षा का समय आ गया है, तो अमेरिकी विदेशमंत्री ने कहा कि अगले हफ़्तों और महीनों में बाइडन प्रशासन यही तय करने का इरादा रखता है कि पिछले 20 साल में अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान की भूमिका क्या रही. अब यह भी तय किया जाएगा कि अमेरिका अगले कुछ साल में दुनिया के इस हिस्से में पाकिस्तान का क्या रोल देखता है.
अमेरिकी सांसद यह जानना चाहते थे कि उनके कहे अनुसार अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान की मुंह में राम बग़ल में छुरी वाली नीति के जवाब में अमेरिका क्या करेगा. टेक्सस से डेमोक्रैट सांसद जोकिन कास्त्रो की मांग थी कि पाकिस्तान और तालिबान के बीच लम्बे समय से चल रहे मधुर संबंधों और संगठन के लीडरों को अपने यहां पनाह देने की पॉलिसी को देखते हुए बाइडन प्रशासन को फ़ौरन पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय संबंधों, और NATO संगठन के बाहर अमेरिका के प्रमुख सहयोगी के दर्जे, दोनों की पुनर्समीक्षा करनी चाहिए. कास्त्रो House of Representatives Foreign Affairs Committee की International Development, International Organisations and Global Corporate Social Impact उपसमिति के अध्यक्ष हैं.
अमेरिका को नहीं पता था कि अशरफ गनी इतनी जल्दी देश छोड़ कर भाग जाएंगे
तालिबान के काबुल पर कब्ज़ा कर लेने के बाद जिस अफ़रातफ़री में अमेरिका की अफ़ग़ानिस्तान से विदाई हुई, इस पर भी अमेरिकी विदेश मंत्री से जवाबतलब हुआ. उनसे पूछा गया कि क्या उन्हें मालूम था कि मुल्क के राष्ट्रपति अशरफ ग़नी देश छोड़ कर भागने वाले हैं तो एंथनी ब्लिंकन का कहना था कि 14 अगस्त की रात उनकी ग़नी से फ़ोन पर बात हुई थी लेकिन इस बातचीत में तो अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति ने अंतिम सांस तक लड़ने की बात कही थी. लेकिन जैसे ही 15 अगस्त को तालिबान राजधानी काबुल की सीमा में दाख़िल हुए, अशरफ ग़नी फ़ौरन मुल्क से भाग खड़े हुए.
पाकिस्तान भरोसे के काबिल नहीं है
डेमोक्रैट पार्टी के सांसद, Bill Keating, House of Representatives की Foreign Affairs Subcommittee on Europe, Eurasia, Energy, and the Environment और House Armed Services Committee के अध्यक्ष होने के साथ साथ आतंरिक सुरक्षा मामलों के एक्सपर्ट भी हैं, उन्होंने कहा कि साफ़ है पाकिस्तान कई साल से अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी हितों को लेकर निगेटिव रोल अदा करता रहा है.
Bill Keating का कहना था कि पाकिस्तान ने तालिबान को संगठित किया, पहचान दी और बिखराव के बाद 2010 में फिर से पाल पोस कर मज़बूत बनाया. पाकिस्तान की इंटेलिजेंस एजेंसी ISI के हक़्क़ानी नेटवर्क के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध हैं. हक़्क़ानी नेटवर्क अमेरिकी सैनिकों की मौत का ज़िम्मेदार है. प्रधानमंत्री, इमरान खान ने काबुल पर तालिबान के कब्ज़े का जश्न मनाया और कहा कि यह ग़ुलामी की ज़ंजीरें तोड़ने सरीखा है.
Bill Keating ने भी जोकिन कास्त्रो की तरह अफ़ग़ानिस्तान में पाकिस्तान के रोल को भरोसे के लायक नहीं बताया और अमेरिका पाकिस्तान संबंधों की पुनर्समीक्षा की मांग की. अमेरिकी सांसदों के इस सख्त रवैय्ये के पीछे दो बातें हैं. पहली तो यह कि जिस तरह अमेरिका को अफ़ग़ानिस्तान से भागना पड़ा, उसने अमेरिका के पूरे नेतृत्व को झकझोर कर रख दिया है. इस बात पर बहस जारी है और इसको लेकर बाइडन प्रशासन की भारी आलोचना हो रही है.
तालिबान को नज़रअंदाज़ करना अंतर्राष्ट्रीय जगत के लिए गंभीर परिणाम ला सकता है
दूसरी बात, और यह भारत के लिए काफी महत्व रखती है, ये है कि अमेरिका में भारत के राजदूत तरनजीत सिंह संधू ने पिछले दिनों वाशिंगटन में दोनों पार्टियों के सांसदों और सिनेटरों से संपर्क बना उन्हें दक्षिण और मध्य एशिया की परिस्थितियों की पूरी जानकारी दी है. अब अमेरिका और उसके मित्र देशों के लिए पेचीदा हालात बन गए हैं. ये देश तालिबान को पसंद नहीं करते और उसे मान्यता देने से गुरेज़ कर रहे हैं. लेकिन सबको यह मालूम है कि तालिबान के साथ सीमित ही सही, लेकिन संपर्क बनाये रखना होगा, नहीं तो ग़रीबी और जंग की मार से लाचार अफ़ग़ानिस्तान में नागरिकों के लिए अस्तित्व का संकट खड़ा हो जाएगा.
जब 1996 से 2001 के बीच अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान पहली बार क़ाबिज़ हुए थे, तब सिर्फ तीन देशों – पाकिस्तान, क़तर और सऊदी अरब ने उस सरकार को मान्यता दी थी. इस बार पाकिस्तान और चीन बढ़ चढ़ कर तालिबान की वकालत कर रहे हैं, कि अब ये बदल गया है और पड़ोसी देशों और अंतर्राष्ट्रीय जगत के लिए तालिबान को नज़रअंदाज़ करने के गंभीर परिणाम हो सकते है. क़तर की विदेशमंत्री ने रविवार को अफ़ग़ानिस्तान के प्रधानमंत्री मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद से काबुल में मुलाक़ात की. किसी भी विदेशी सरकार के वरिष्ठ अधिकारी की यह पहली काबुल यात्रा थी. हालांकि अभी तक अंतरराष्ट्रीय समाज की तरफ से अफ़ग़ानिस्तान के लिए 1.1 अरब डॉलर की सहायता का ऐलान हो चुका है लेकिन इस मुल्क को संभालने के लिए और ज़्यादा करने की ज़रुरत है. भारत ने भी कहा है कि वह पिछले 20 साल अफ़ग़ानिस्तान के साथ खड़ा था और आज भी है.
Next Story