सम्पादकीय

सभी पक्ष जिम्मेदारी समझें

Subhi
5 Aug 2022 3:12 AM GMT
सभी पक्ष जिम्मेदारी समझें
x
केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पिछले साल ग्लासगो में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित पंचामृत रणनीति को उन्नत जलवायु लक्ष्यों में शामिल करते हुए मंजूरी दे दी। इसका मकसद भारत की अक्षय ऊर्जा पर निर्भरता बढ़ाने और साल 2070 तक उसे जीवाश्म आधारित ईंधन से पूरी तरह मुक्त करने के लक्ष्य की ओर आगे बढ़ना है।

नवभारत टाइम्स: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पिछले साल ग्लासगो में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा घोषित पंचामृत रणनीति को उन्नत जलवायु लक्ष्यों में शामिल करते हुए मंजूरी दे दी। इसका मकसद भारत की अक्षय ऊर्जा पर निर्भरता बढ़ाने और साल 2070 तक उसे जीवाश्म आधारित ईंधन से पूरी तरह मुक्त करने के लक्ष्य की ओर आगे बढ़ना है। भारत सरकार का यह कदम वैसे जलवायु परिवर्तन से संबंधित प्रतिबद्धताओं और उससे जुड़े दायित्वों के प्रति उसकी गंभीरता दर्शाता है, लेकिन कुछ हलकों से यह बात भी उठ रही है कि कैबिनेट के इस ताजा कदम में भारत के अपने कमिटमेंट से पीछे खिसकने के संकेत मिल रहे हैं। कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री मोदी द्वारा ग्लासगो के कॉप 26 सत्र में दिए गए पंचामृत सूत्र में पांच प्रतिबद्धताएं घोषित की गई थीं, जबकि मंत्रिमंडल द्वारा मंजूर प्रतिबद्धताओं में दो का ही जिक्र है। ग्लासगो सम्मेलन में प्रधानमंत्री ने जिन पांच प्रतिबद्धताओं की बात कही थी वे हैं- भारत 2030 तक गैर जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा क्षमता को बढ़ाकर 500 गिगावॉट तक कर लेगा, वह अपनी 50 फीसदी ऊर्जा जरूरतें अक्षय ऊर्जा से पूरी करने लगेगा, अभी से 2030 तक के कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन की कमी करेगा, इकॉनमी की कार्बन तीव्रता में 45 फीसदी से अधिक की कमी लाएगा और, 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल कर लेगा।

इसके बरक्स बुधवार को कैबिनेट की मंजूरी के बाद जारी किए गए प्रेस वक्तव्य में दो ही प्रतिबद्धताओं का जिक्र है- एक 2030 तक कार्बन उत्सर्जन की तीव्रता जीडीपी के 45 फीसदी तक घटाना और दो, 50 फीसदी जरूरतें अक्षय ऊर्जा से पूरी करना। मगर इन आशंकाओं को तूल देने से पहले कुछ तथ्यों पर विचार कर लेना चाहिए। पहली बात तो यह कि ये प्रतिबद्धताएं 2070 तक भारत को नेट जीरो उत्सर्जन के बड़े लक्ष्य से जुड़ी हुई हैं और इस कैबिनेट के ताजा फैसले के बाद जारी प्रेस वक्तव्य में भी इस लक्ष्य का उल्लेख किया गया है। दूसरी बात यह कि भारत के इन लक्ष्यों के प्रति समर्पण का ज्यादा सटीक परीक्षण इस बात से हो सकता है कि ग्लासगो में प्रधानमंत्री द्वारा की गई घोषणा के बाद से अब तक इस दिशा में कितने कदम उठाए या नहीं उठाए गए हैं। इस बिंदु पर हम देखते हैं कि भारत ने इस अवधि में इलेक्ट्रिक वाहनों और बैटरी मैन्युफैक्चरर्स के लिए प्रोडक्शन-लिंक्ड-इन्सेंटिव्स घोषित करने, एनर्जी यूस से जुड़े कानूनों में संशोधन करने और नैशनल हाइड्रोजन प्लान लाने जैसे कई कदम उठाए हैं। मगर इसके साथ ही यह भी समझना होगा कि इस रास्ते पर भारत इकतरफा ढंग से आगे नहीं बढ़ता रह सकता है। विकसित देशों को भी अपनी प्रतिबद्धताओं के प्रति गंभीरता दिखानी होगी। ग्लासगो सम्मेलन में भी भारत ने साफ किया था कि 2030 तक क्लाइमेट फंडिंग के तहत उसे 1 ट्रिलियन डॉलर की सहायता मिलनी चाहिए। उम्मीद की जाए कि नवंबर में इजिप्ट में होने वाले अगले दौर की जलवायु वार्ता में इस पहलू पर गंभीरता से गौर किया जाएगा।


Next Story