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सुधीश पचौरी: इस सप्ताह की सबसे अधिक 'घृणावादी खबरें' हैदराबाद ने बनाई। एक दिन भाजपा नेता टी.राजा सिंह 'स्टैंडअप कमेडियन' मुनव्वर फारुकी के 'राम, सीताजी' का 'मजाक' उड़ाने से रुष्ट हुए और 'जैसे को तैसा' वाली बातें करने लगे। प्रतिक्रिया में हैदराबाद की सड़कों पर 'सर तन से जुदा, सर तन से जुदा' होने लगा। तेलंगाना पुलिस ने राजा को पकड़ा। वे जमानत पर बाहर आए, तो फिर प्रदर्शन शुरू हो गए और उनको फिर पुलिस ने धर लिया।
बहसें चैनलों में आ बैठीं और पूछने लगीं कि 'सर तन से जुदा' गैर-कानूनी है कि नहीं? एक बड़े इस्लामवादी नेता कहे कि हम इसे 'कंडेम' करते हैं, लेकिन एक चैनल ने उनका एक वीडियो दिखा कर स्पष्ट किया कि एक ओर ये 'कंडेम' करते हैं, दूसरी ओर ये 'तन से जुदा' वादियों को छुड़वाते भी हैं। एक चर्चक ने कहा कि ये इनकी 'हिप्पोक्रेसी' है।
ऐसी ही बहस में एक 'सर तन से जुदा' नारे लगाने वाला भी दिखा। उसने चैनल पर भी नहीं माना कि उसने कुछ गलत किया। साथ ही वह दूसरा भी दिखा, जिसने खुद माना कि उसने ही हैदराबाद के एक थाने के अंदर जाकर कहा कि अगर… मैं इस शहर को अंगार बना दूगा…
वे समझते हैं कि वे 'घृणावादी' की असलियत उजागर कर रहे हैं, जबकि 'घृणावादी' समझता है कि वह चैनल का उपयोग कर रहा है! गजब का 'कार्स पर्पज' है! फिर एक दिन चैनलों ने कांग्रेस की 'भारत जोड़ो' यात्रा की बड़ी खबर बनाई, लेकिन वह भी हैदराबाद में लगने वाले 'घृणावादी नारों' का मुकाबला न कर पाई। एक दिन तो हैदराबाद में बच्चों और स्त्रियों तक ने सड़क पर आकर 'तन से जुदा' वाले नारे लगाए!
शासक दल के प्रवक्ता कहते रहे कि कानून किसी दोषी को नहीं बख्शेगा, लेकिन उसी दिन यह खबर छाई रही कि एक मुसलिम नेता के आदेश पर एक मुसलिम संगठन के 'कारपोरेटर' ने नब्बे नारेबाजों को थाने से छुड़ा कर रातोरात घर भेजा, जबकि उस संगठन के नेता कहते रहे कि 'तन से जुदा' को हम 'कंडेम' करते हैं! कानून को कोई हाथ में नहीं ले सकता… वक्त का यह कैसा उलटफेर है।
जिसे 'कंडेम' किया जाता है वह और भी 'हिट' होने लगता है! क्या आपने विधानसभा में बहुमत हासिल करने वाले दिन के नीतीश के भाषण को देखा-सुना? नहीं, तो देख-सुन लीजिए, काम आएगा।
एकदम 'वेटेरन नेता' वाला आत्मविश्वास और बात-बात में विपक्ष पर चुटकियां और उनके चुटीले तकिया कलाम कि 'आप समझिए न', 'आप न जानिएगा', 'अभी आप बच्चे हैं', 'आप जान लीजिए न', 'अपने पिता जी से पूछिएगा' और फिर चलते-चलते चौबीस वाला इशारा…
फिर एक दिन कांग्रेस के एक पुराने नेता एक 'संचालन समिति' से इस्तीफा दे देते हैं और फिर एक चैनल पर आकर साफ करते हैं कि 'मैंने कांग्रेस को अपनी जिंदगी दी है। इंदिरा गांधी मुझे लाई थीं। मैंने कोई ओहदा नहीं मांगा। मुझे चेयरमैन बना दिया, लेकिन एक भी संचालन समिति में नहीं बुलाया… मुझे बदनाम न करें…
एक एंकर से बात करते इस पुराने कांग्रेसी नेता का गला भर आता है। एंकर तक विचलन महसूस करता है। मगर इस दर्द का बेदर्द जवाब दूसरा कांग्रेस नेता देता है कि गांधी परिवार ही कांग्रेस को एक रख सकता है… फिर एक दिन एक चैनल खबर देता है कि कांग्रेस के पुराने प्रवक्ता जयवीर शेरगिल ने प्रवक्ता पद से इस्तीफा दे दिया है… सच! प्रवक्ताओं का जीवन तलवार की धार पर रहता है, और जब दल ही दलदल में हो तो और आफत! चले तो कटे, गिरे तो मरे! प्रवक्ता जीव तुम्हारी यही कहानी! फिर शुक्रवार की ऐन सुबह कांग्रेस के एक पुराने नेता गुलाम नबी आजाद भी पार्टी से इस्तीफा दे देते हैं और पांच पेज की चिट्ठी लिख कर कांग्रेस को बेहतर बनाने के सुझाव और अपनी उपेक्षा के दर्द को बयान करते हैं कि अब और अपमान नहीं सहा जा सकता।
लेकिन उनको कायदे से जवाब देने के बजाय अशोक गहलोत कह देते हैं कि उनको कांग्रेस ने पहचान दी (यानी कि आजाद कितने अहसान फरामोश हैं)! फिर कांग्रेस नेता मणिक्कम टैगोर ने दोहत्थड़ मारा कि 'आजाद के इस्तीफे में लिखे शब्द 'आरएसएस' के हैं!' जयराम रमेश ने ट्वीट किया कि 'डीएनए मोदीफाइड' हो गया है! सच! 'देखी जमाने की यारी, बिछड़े सभी बारी बारी'!