सम्पादकीय

खतरे की घंटी

Subhi
2 Sep 2022 5:46 AM GMT
खतरे की घंटी
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व्यापार घाटे पर काबू जरूरी (30 अगस्त) चेतावनियों से भरपूर लेख था। सबसे पहले हमें यह जान लेना चाहिए कि व्यापार घाटा क्या होता है? व्यापार में अगर आयात और निर्यात का मूल्य एक समान हो तो इसे संतुलित व्यापार कहते हैं

Written by जनसत्ता: व्यापार घाटे पर काबू जरूरी (30 अगस्त) चेतावनियों से भरपूर लेख था। सबसे पहले हमें यह जान लेना चाहिए कि व्यापार घाटा क्या होता है? व्यापार में अगर आयात और निर्यात का मूल्य एक समान हो तो इसे संतुलित व्यापार कहते हैं, इसका किसी देश को नुकसान नहीं होता, लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता। अगर निर्यात का मूल्य ज्यादा हो और आयात का मूल्य कम हो तब व्यापार शेष अनुकूल माना जाता है।

इसे अच्छा समझा जाता है, क्योंकि इससे हमें विदेश से आमदनी प्राप्त होती है। लेकिन अगर निर्यात का मूल्य कम हो और आयात का मूल्य ज्यादा हो तो व्यापार में घाटा होता है, इसे प्रतिकूल व्यापार शेष भी कहते हैं। इसमें देश को नुकसान होता है क्योंकि हमें अपने साधन दूसरे देश को देने पड़ते हैं। अगर विपरीत व्यापार शेष लंबे समय तक चले तो वह देश के लिए खतरे की घंटी है ,क्योंकि ऐसा होने से देश के साधन विदेशों में चले जाते हैं और देश के विकास के लिए कम पूंजी देश में रह जाती है।

हमारे देश को इसी लंबे समय के व्यापार घाटे या विपरीत व्यापार संतुलन का सामना करना पड़ रहा है, जो कि देश के लिए खतरे की घंटी है। एक महीना पहले हमारा व्यापार घाटा 31.02 अरब डालर था, जो अब तक का उच्चतम व्यापार घाटा था। एक साल पहले हमारा व्यापार घाटा 10.63 अरब डालर था। यानी अब हमारा व्यापार घाटा पहले के मुकाबले तीन गुना बढ़ गया।

हम विदेश से तेल, पेट्रोल, दवाइयों का कच्चा माल, कोयला, रसायनिक खाद आदि मंगवाते हैं। रूस यूक्रेन युद्ध के कारण हमें कोयला पहले से तीन गुना महंगा मिलने लगा है। इसके अलावा आजकल भारत का रुपया डालर के मुकाबले बहुत कमजोर है। इससे आयात की जाने वाली वस्तुएं हमें महंगी मिलती हैं। आखिर इसका समाधान तो ढूंढ़ना ही पड़ेगा। इसका समाधान यह है कि हमें अपना निर्यात बढ़ाना चाहिए। हमारा व्यापार शेष चीन के साथ बहुत विपरीत है। चीन भारत से बहुत कम चीजें मंगवाता है, लेकिन हम चीन से उससे कई गुना ज्यादा मंगवाते हैं। इसका समाधान यह है कि हमें चीन से मंगाई जाने वाली वस्तुओं का आयात प्रतिस्थापन ढूंढ़ना पड़ेगा और आत्मनिर्भरता बढ़ाना पड़ेगा।

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी की रिपोर्ट में बताया गया है कि हमारे देश में वर्ष 2021 में सड़क दुर्घटनाओं में डेढ़ लाख से ऊपर लोगों की मौत हुई। उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा, इक्कीस हजार से ऊपर, तमिलनाडु में पंद्रह हजार से ऊपर और ऐसे ही आंकड़े देश के विभिन्न राज्यों के हैं। इन सड़क दुर्घटनाओं में दुपहिया वाहनों से दुर्घटनाओं में जान गंवाने वालों का आंकड़ा भी भारी है।

हमारे देश में दिन-प्रतिदिन वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही, वाहनों की संख्या बढ़ने के साथ-साथ सड़क हादसों में भी बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। देश में सड़क हादसों में एक दिन में जितने लोग जान गंवाते हैं, उतने तो आतंकवाद का शिकार नहीं होते। सड़क हादसों के वैसे तो बहुत से कारण है, लेकिन वाहन चलाते समय अधिक भार लादना और तेज रफ्तार भी हादसों का कारण है। इन पर सभी को नियंत्रण करना चाहिए।

ऐसे हादसों के लिए मात्र सरकारों को दोष नहीं दिया जा सकता, बल्कि इसके लिए वे लोग भी कम जिम्मेदार नहीं हैं, जो यातायात के नियमों का पालन मात्र चालान कटने के डर से कभी-कभार करते हैं। अगर लोग सभी यातायात नियमों का पालन गंभीरता से करें तो देश में सड़क हादसे न के बराबर हों। जिस गाड़ी कि जितनी क्षमता हो उसमें उतनी सवारियां बिठाई जानी चाहिए। अगर कोई वाहन चालक ठूंस-ठूंस कर सवारियां बिठाने की कोशिश करे, तो उसके वाहन में बैठेन की भूल कदापि नहीं करनी चाहिए। अगर छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखा जाए तो सफर सुहाना बन सकता है।


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